Wednesday, December 14, 2011

कोई लाकर मुझे दे -------

एक छोटी सी बच्ची ने मुझ से पूछा क्या आप का ये लेपटाप कही भी संदेश पहुचा सकता है ? हैं मेरा उत्तर था हैं उसने एक कागज का टुकड़ा जो कुछ पुराना और मुड़ा हुआ था मेरी टेबिल पर रख दिया  देखिये उसमे क्या लिखा  था ......
कोई लाकर मुझे दे --------
कुछ रंग भरे फूल,
 कुछ खट्टे मीठे फल
थोड़ी बांसुरी की धुन
 थोडा जमुना का जल
कोई लाकर मुझे दे
 एक सोने जड़ा दिन
 एक रूपों भरी रात
एक फूलो भरा गीत
 एक गीतों भरी बात
 कोई लाके मुझे दे
 एक टुकड़ा छाव  का
 एक धुप की घडी
  एक बदलो का कोट
 एक धुप की छड़ी
 कोई लाके मुझे दे
 एक छुटी वाला दिन
 एक अच्छी सी किताब
 एक मीठा सा सवाल
 एक नन्ना सा जवाब
 कोई लाकर मुझे दे
इस कविता के अंत में लिखा था भगवन जी ये सब अगर नहीं दे सकते तो हम बच्चो की दुनिया बड़ो से अलग
कर दो बड़े तो हमेशा लड़ते रहते है  ......    

Sunday, November 27, 2011

थोडा सा रूमानी हो जाये



क्या आप ने चिडियों  को चाह -चाहते  हुए देखा है ?सुबह की ओस को पत्तों से गिरते हुए ? पेड़ो को हवाओं के साथ झूमते  हुए ? कितने दिनों से नंगे पैर घास पर नहीं चले है . कितने दिन पहले अपने उगते हुए सूर्य को देखा था .क्या डालती शांम को पक्षियों को उनके घर जाते देखा ? सूर्य को उसके घर जाते हुए ? आप सब कहेगे नहीं इस भागती  - दोड़ती जिन्दगी में  फ़ुरसत कहाँ  मेरा भी ऐसा ही  विचार  था  अगर  मेरे  साथ  कुछ  ऐसी घटना ना घटती. मुझे स्कालरशिप  कि परीक्षा देने पंचमढ़ी से इटारसी जाना था अगर आप पहाड़ पर कभी कुछ दिन तक रहे हो तो आपको पता ही  होगा पहाड़ी मौसम का कुछ पता नहीं होता वो तो बस बच्चों कि तरह होता है ,  खैर जिस दिन हम चले उसके दूसरे दिन हमारा पेपर होना था ये तब कि बात है जब मैं कक्षा आठ में थी . हम बस से चार बजे पंचमढ़ी से निकले पंचमढ़ी से इटारसी का रास्ता करीब ढाई- तीन घंटे का है इसलिए कोई जल्दी नहीं थी हमें  सात  बजे तक इटारसी पहुंच  जाना था इसलिए हम सब निश्चिंत थे. छोटे- छोटे सपने आँखों में ले कर हम चल पढ़े . अरे ..... ये क्या कुछ दूर जाकर बस रुक गई सपने टूटे आशा छूटी मैं सबसे आगे बडबडाते हुए बस से उतरी बाधा किसी को अच्छी नहीं लगती लेकिन बस से उतरने के बाद  जो मैंने  देखा वो अविस्मरणीय था. पहाड़ों के बीचो- बीच  में हम थे आस-पास अंगिनित पेड़ जिन पर जाते हुए सूर्य कि रौशनी पड़ रही थी मनो जैसे पेड़ो ने स्वर्ण आभूषण पहन रखा हो   पत्ते ऐसे झूम रहे थे मानो  उन पर  सुरूर छा गया हो . सूर्य अपनी किरणों को अपनी बहो में  समेटते हुए पहाड़ों के पीछे छुप रहा था . पक्षी आकाश में ऐसे मस्ती में  विचरण कर रहे थे, जैसे ससुराल में नयी नवेली दुल्हन अल्हड़ता  के साथ लेकिन अनुशासित होकर डोलती है . पास में बहती हई छोटी  सी पहाड़ी नदी को तो मैंने पहली बार ध्यान से देखा लगा जैसे किसी नव यौवना ने अपने पैरो में डेर सारे  घुंघरू बांध कर नटराज का रूप धारण कर लिया हो. तभी चीतल (हिरण की तरह होता है  ) का झुंड अपने बच्चों को ऐसे चिपकाये नजर आए जैसे माँ अपने छोटे  बच्चों को साँझ होने पे अपने आँचल में ले लेती है. तभी दूर कंही चिड़िया ने अपनी मधुर वाणी से मुझे स्वप्न लोक से धरातल पर ला दिया बस का ड्राइवर हमें बुला रहा था में शुक्रगुज़ार थी उस ड्राइवर कि जिसने हमें उस पुरानी बस में बिठाया वो अगर ख़राब नहीं होती तो में उन एहसास से नहीं गुजरती जिनसे गुज़री. सच कहूं उस यात्रा के बाद से ही मेरे ज़िंदग़ी जीने के नज़रिया में फर्क आ गया .
कामकाजी ज़िंदग़ी को सुखद बनाने के लिए ये ज़रूरी है कि हम कुछ पल सुबह के लिए, बारिश देखने के लिए, ओस को गिरते हुए देखने के लिए चिड़ियों को चहचहाते हुए देखने के लिए  निकले. कभी बारिश में भींग कर देखे ये ईश्वर कि वो  नियामत है जो न सिर्फ ज़िंदग़ी देती है बल्कि ज़िंदग़ी सुखद बना देती है (कभी राजस्थान के जेसलमेर के सुदूर इलाकों में जाकर देखे) पेड़ो को नए पत्ते पहनते हुए देखे फूलों पर रंग उतरते हुए देखे आप का मन इंद्रधनुषी हो जायेगा क्यो कि ये रंग सिर्फ प्रकृति का ही नहीं आप के सपनों का भी होगा . 
आप जब सब कुछ पा  कर भी एकदम अकेले महसूस करे, ज़िदगी अगर रुकी, थकी. बेमानी लगे तो ज़रूरी है उसके खोए हुए अर्थ की तलाश करे जो शायद इस. भागती-दोड़ती   ज़िदगी को सुखद बनाने का ये आसन सा रास्ता है. आपने हृदय  के तारों  को इतना   संकीर्ण मत करे. पता नहीं क्यों प्रगति एवं ज्ञान के तथाकथित पराकाष्ठा के स्तर तक के विकास के बावजूद हम इन  जीवों की अभिव्यक्ति को समझ नहीं पाए या समझना नहीं चाहे.

पेड़ ,पौधे, आकाश ,पशु-पक्षी .वर्षा ,वन, नादिया जिस दिन से आप इनके हो गए उसी  दिन आप  बिना कुछ खोये अपने पूरे अस्तित्व को पा लेंगे. रूमानी हो जाये धीरज के साथ ,धीरज रखिये ज़िदगी का लुफ्त ले .         
            

                                      नीचे की तस्वीरे पचमढी और इटारसी के रास्ते के प्राकृतिक दृश्यो की है
            


                                 
                                     
                      
 मैंने देख ही लिया एक दिन
 सूरज को आँखें मलते 
 नदियो को इठलाते हुए
 चिड़ियों को चहचहाते हुए
 फूलों में रंग आते हुए 
 फिर देखा  उनको शरमाते हुए 
 सारस को देखा प्यार में खो जाते हुए 
 पेड़ो को देख झूम-झूम के गीत गाते हुए 
 इन सबको देख कर धरती को मुस्कुराते हुए 
 और एक दिन मैंने देखा अपने को 
 इन सब में खो जाते हुए ,
 अपनी जिन्दगी को बच्चो सा मुस्कुराते हुए 
 मैंने देखा......... 

Saturday, November 12, 2011

बेचैनी


आज आफिस में मैं बहुत ही अच्छे मूड में हूँ अपनी फाईल निपटा के नागर जी दवरा लिखित चैतन्य महाप्रभु किताब के आखरी चार पन्ने समाप्त करती हूँ मन खुश है कोई भी ऐसे महापुरुष के बारे में पढ कर मेरा मन हमेशा ही प्रफुल्लीत हो जाता है होटो से अपनी लिखी हुई एक पुरानी कविता फूट पड़ी तब तक मन हुआ चाय  पी जाये घंटी पे हाथ जाता ही है की चपरासी के दर्शन होते है मैम जी बाटनी मैम आप से मिलना चाहती है आरे मैं आश्चर्य चकित होती हूँ उन्हें परमिशन की क्या आवश्यकता आने दो ,जी वो कहा कर चला जाता है .
  अरे  सुगंधा  जी क्या बात है सब ठीक तो है मेरे आफिस में आप टीचर तो कभी भी आ सकते है फिर ये औपचारिकता क्यों ?
 सुगंधा   जी - मैम आज बात सिर्फ पढाई की नहीं है 
मैं - तो जो है वो कहो , और सुगंदा जी शुरू हो जाती है मैम - मैं इस महीने  लेट आई कई वार उसका उस दिन  वो कारन था उस दिन जो नहीं आ पाई सही टाइम से उसका ......... वो मुझे कारण  गिनाती है और लगातार तीस मिनिट तक वो अपनी सारी समस्या मुझे सुना कर प्रसन्न दिखाई देती है . सुगंधा   जी कहती है मैम मै बहुत बेचैन थी आप ने मेरी समस्या सुन ली अब मेरी बेचैनी दूर हो गई . बेचैनी भी बड़ी आजीब होती है जब होती है तो उसके आगे हमें कुछ नहीं दिखाई पड़ता ऐसा लगता है की ये इक रस्ते की और इशारा कर रही होती है . हमारे जेहन मे जब रास्ता साफ होता है , तो बेचैनी नहीं होती. वहा तो होती ही तब है , जब कुछ धुंधला होता है . सो वहा रस्ते  की धुंधलाहट ही बेचैनी है . और यह सचमुच सकारात्मक हो सकती है और वहा सकारात्मक तब होती है जब हम उस बेचैनी के सुर को पहचानते है . और कुछ करने को तैयार हो जाते है . हम अपनी इच्छा को कर्म मे बदलने की ठानते है तो बेचैनी कम हो जाती है . जब- जब हमें कुछ अधूरापन होता है तो बेचैनी होती है उसे भरने के लिए हमें कुछ करना होता है यही शायद बेचैनी का सुर है . आखिर उस बेचैनी के बिना हम अपना अधूरापन कैसे दूर कर सकते है . बेचैनी के वारे मे इतना सब सोचते-सोचते पता ही नहीं चला कब घर जाने का टाइम हो गया . चपरासी अन्दर आता है मैम चाये लाऊ ये मुझे टाइम की याद दिलाने की उसका तरीका है मैं जानती हूँ वो बेचैन है पान मसाला खाने के लिए जो मेरे जाने
 के बाद ही हो सकता है मैं उसकी बेचैनी समझते हुए अपनी सीट छोड़ देती हूँ . घर का ख्याल आते ही मैं बेचैन हो जाती हूँ अरे मुझे तो अभी बहुत सा काम .................                

Wednesday, September 21, 2011

थोडा सा रूमानी हो जाये


क्या आप ने चिडियों  को चाह -चाहते  हुए देखा है ?सुबह की ओस को पत्तों से गिरते हुए ? पेड़ो को हवाओं के साथ झूमते  हुए ? कितने दिनों से नंगे पैर घास पर नहीं चले है . कितने दिन पहले अपने उगते हुए सूर्य को देखा था .क्या डालती शांम को पक्षियों को उनके घर जाते देखा ? सूर्य को उसके घर जाते हुए ? आप सब कहेगे नहीं इस भागती  - दोड़ती जिन्दगी में  फ़ुरसत कहाँ  मेरा भी ऐसा ही  विचार  था  अगर  मेरे  साथ  कुछ  ऐसी घटना ना घटती. मुझे स्कालरशिप  कि परीक्षा देने पंचमढ़ी से इटारसी जाना था अगर आप पहाड़ पर कभी कुछ दिन तक रहे हो तो आपको पता ही  होगा पहाड़ी मौसम का कुछ पता नहीं होता वो तो बस बच्चों कि तरह होता है ,  खैर जिस दिन हम चले उसके दूसरे दिन हमारा पेपर होना था ये तब कि बात है जब मैं कक्षा आठ में थी . हम बस से चार बजे पंचमढ़ी से निकले पंचमढ़ी से इटारसी का रास्ता करीब ढाई- तीन घंटे का है इसलिए कोई जल्दी नहीं थी हमें  सात  बजे तक इटारसी पहुंच  जाना था इसलिए हम सब निश्चिंत थे. छोटे- छोटे सपने आँखों में ले कर हम चल पढ़े . अरे ..... ये क्या कुछ दूर जाकर बस रुक गई सपने टूटे आशा छूटी मैं सबसे आगे बडबडाते हुए बस से उतरी बाधा किसी को अच्छी नहीं लगती लेकिन बस से उतरने के बाद  जो मैंने  देखा वो अविस्मरणीय था. पहाड़ों के बीचो- बीच  में हम थे आस-पास अंगिनित पेड़ जिन पर जाते हुए सूर्य कि रौशनी पड़ रही थी मनो जैसे पेड़ो ने स्वर्ण आभूषण पहन रखा हो   पत्ते ऐसे झूम रहे थे मानो  उन पर  सुरूर छा गया हो . सूर्य अपनी किरणों को अपनी बहो में  समेटते हुए पहाड़ों के पीछे छुप रहा था . पक्षी आकाश में ऐसे मस्ती में  विचरण कर रहे थे, जैसे ससुराल में नयी नवेली दुल्हन अल्हड़ता  के साथ लेकिन अनुशासित होकर डोलती है . पास में बहती हई छोटी  सी पहाड़ी नदी को तो मैंने पहली बार ध्यान से देखा लगा जैसे किसी नव यौवना ने अपने पैरो में डेर सारे  घुंघरू बांध कर नटराज का रूप धारण कर लिया हो. तभी चीतल (हिरण की तरह होता है  ) का झुंड अपने बच्चों को ऐसे चिपकाये नजर आए जैसे माँ अपने छोटे  बच्चों को साँझ होने पे अपने आँचल में ले लेती है. तभी दूर कंही चिड़िया ने अपनी मधुर वाणी से मुझे स्वप्न लोक से धरातल पर ला दिया बस का ड्राइवर हमें बुला रहा था में शुक्रगुज़ार थी उस ड्राइवर कि जिसने हमें उस पुरानी बस में बिठाया वो अगर ख़राब नहीं होती तो में उन एहसास से नहीं गुजरती जिनसे गुज़री. सच कहूं उस यात्रा के बाद से ही मेरे ज़िंदग़ी जीने के नज़रिया में फर्क आ गया .
कामकाजी ज़िंदग़ी को सुखद बनाने के लिए ये ज़रूरी है कि हम कुछ पल सुबह के लिए, बारिश देखने के लिए, ओस को गिरते हुए देखने के लिए चिड़ियों को चहचहाते हुए देखने के लिए  निकले. कभी बारिश में भींग कर देखे ये ईश्वर कि वो  नियामत है जो न सिर्फ ज़िंदग़ी देती है बल्कि ज़िंदग़ी सुखद बना देती है (कभी राजस्थान के जेसलमेर के सुदूर इलाकों में जाकर देखे) पेड़ो को नए पत्ते पहनते हुए देखे फूलों पर रंग उतरते हुए देखे आप का मन इंद्रधनुषी हो जायेगा क्यो कि ये रंग सिर्फ प्रकृति का ही नहीं आप के सपनों का भी होगा . 
आप जब सब कुछ पा  कर भी एकदम अकेले महसूस करे, ज़िदगी अगर रुकी, थकी. बेमानी लगे तो ज़रूरी है उसके खोए हुए अर्थ की तलाश करे जो शायद इस. भागती-दोड़ती   ज़िदगी को सुखद बनाने का ये आसन सा रास्ता है. आपने हृदय  के तारों  को इतना   संकीर्ण मत करे. पता नहीं क्यों प्रगति एवं ज्ञान के तथाकथित पराकाष्ठा के स्तर तक के विकास के बावजूद हम इन  जीवों की अभिव्यक्ति को समझ नहीं पाए या समझना नहीं चाहे.

पेड़ ,पौधे, आकाश ,पशु-पक्षी .वर्षा ,वन, नादिया जिस दिन से आप इनके हो गए उसी  दिन आप  बिना कुछ खोये अपने पूरे अस्तित्व को पा लेंगे. रूमानी हो जाये धीरज के साथ ,धीरज रखिये ज़िदगी का लुफ्त ले .          
            

                                      नीचे की तस्वीरे पचमढी और इटारसी के रास्ते के प्राकृतिक दृश्यो की है
            


                                   
                                     
                      
 मैंने देख ही लिया एक दिन
 सूरज को आँखें मलते 
 नदियो को इठलाते हुए
 चिड़ियों को चहचहाते हुए
 फूलों में रंग आते हुए 
 फिर देखा  उनको शरमाते हुए 
 सारस को देखा प्यार में खो जाते हुए 
 पेड़ो को देख झूम-झूम के गीत गाते हुए 
 इन सबको देख कर धरती को मुस्कुराते हुए 
 और एक दिन मैंने देखा अपने को 
 इन सब में खो जाते हुए ,
 अपनी जिन्दगी को बच्चो सा मुस्कुराते हुए 
 मैंने देखा......... 


Friday, September 9, 2011

मन की अभिलाषा

मुझे भी साधना के पथ पर चलना सिखा दो तुम , मेरे " मैं " को मेरे मन से हटा दो तुम
मैं अब इस संसार में रुकना  नहीं चाह रही हूँ , चाह कर भी इसकी नहीं बन पा रही हूँ
 मुझे उस संसार का पता बता दो तुम 
मुझे भी साधना के पथ.....................................................................

.जो साधन -पथ तुम ने सुझाया उस से लौट आई  मैं, उस साधन- पथ साधना को कहाँ जान पाई मैं
मुझे "साधना"  का बोध करा दो तुम 
मुझे भी साधना के पथ............................................................................................

बहुत कुछ जानते हो तुम पर ना जान पाई मैं, समझ , समझ के भी ना समझ पाई मैं
मुझे भी आलौकिक संसार के दर्शन करा दो तुम
मुझे भी साधना के पथ.................................................................................

ज्ञान के जिस पथ पे ना जा पाई मैं, तुम्हारे चरणों के अतरिक्त  ना कुछ देख पाई मैं
उस के प्रथम पथ से दिव्य साधना का ज्ञान दे  दो तुम
मुझे मुझे भी साधना के पथ ............................................................................................


सदा जाग्रत  और सतत रहना मैंने तुम से ही जाना है, समय का सदुपयोग  हो ये भी माना है
मेरी क्षुद्र द्रष्टि  को व्यापक रूप दे दो तुम 
मुझे भी साधना के पथ.........................................................................................................................

मेरी दशा और परिस्थितियों को सार्थक दिशा ना दे पाई मैं, ध्यान की गंभीरता के रस तत्व  को कहाँ जान पाई मैं
मुझे बस श्वास - क्रिया  रस चक्र का रस चखा  दो तुम 
मुझे भी साधना के पथ ..................................................................................................

तुम्हारे चरणों में गहन निष्ठा और अडिग  आस्था  मेरी,  हर कामना  मैं अब कामना   मेरी  
मुझे उस दिव्य प्रेम  का एहसास करा दो तुम
मुझे भी साधना के पथ ..................................................................................................................

चित्त शुध्दि और आत्मा को कहाँ पवित्र कर पाई मैं, अपने जीवन में कर्तव्य- निष्ठा, सयंमशीलता ना ला पाई मैं
मेरे मस्तिष्क की हर बाधा हटा दो तुम
मुझे भी साधना के पथ..............................................................................................

तुम्हारे चरणों में मेरा  जो ध्यान केन्द्रित  होता  है, मन का हर कोना  दिव्य ज्योति से रोशन होता है
उस दिव्य -ज्योति  को मन में हर पल बसा  दो तुम
मुझे भी साधना के पथ ..........................................................................................................

मेरी वो  दिव्य- ज्योति मेरी आराधना  है , बस अभी  यही  मेरी साधना है 
मेरी आराधना  से साधना को मिला दो  तुम
मुझे भी साधना के पथ................................................................................................












Friday, August 19, 2011

तृष्णा की है सारी दुनिया

तृष्णा की है सारी दुनिया 
प्रलोभन का इसमे वास 
नहीं मिलेगा कोई यहाँ 
जिस पर कर तू विश्वास

क्यों व्याकुल हो मन भटकता
क्यों सहता ये प्रलाप
हर और घात ही घात 
निराशा का भीषण आघात 

शव जैसी ये भौतिक उपलब्धि 
व्यर्थ का सारा विज्ञान
उन्माद जैसी ये प्रगति 
करती मानव को परेशान 

भटक- भटक तू जीवन में फसता
दिन- रात दोड़ता, कमाता तू
अब आया जीवन संध्या काल 
तब जाना ये है मायाजाल 

Wednesday, August 17, 2011

अभिलाषा

आँखों की कोरों से कुछ गीला -गीला गिरता है
दिल से भी कुछ रुकता- रुकता झरता है
कसक सी उठती है दिल में,
बसंत में पतझड़ सा लगता है
आँखों की कोरों.................................
हर बार कहा हर बार रहा 
उनसे मेरा जो नाता है,
ना माना मीत मेरा वो सब,
उसे बंधन , जकड़न सा लगता है
आँखों की कोरों................................
ना जाने वो प्यार की भाषा 
ना जाने मन की अभिलाषा
कसक सी उठती है दिल में
ये शहर अंजाना लगता लगता है
आँखों की कोरो..................................
ना समझ सकी अब तक उनको 
ना समझ सकी अब तक अपने को 
ये प्यार बेगाना लगता है
ये रोग पुराना लगता है
आँखों की कोरों. ...................................

Monday, August 8, 2011

ना बांधू उनसे मैं मन को

सब कहते है मन बंधता है , ना बांधू  उनसे मैं मन को
बंधी गाठ खुल जाये ,वो  तो ना घुल पाए 
ना बांधू .............................................
जग में तो सब बंधते है , बंधन से  ही सब चलते है 
ऐसा जग में सब कहते है, में ना मानू इन सब को  
ना बांधू ....................................................
अगर तू सुनता है मौला, इतनी फ़रियाद मेरी सुन ले 
उनके मन से मेरा मन ,ऐसे घुल जाये 
नदिया सागर में जैसे मिल जाये 
ना बांधू .......................................
बंधन में विश्वास नहीं , ऐसे जीने की आस नहीं 
बंधी - बंधाई ये परिभाषा , मेरी समझ में ना आये 
ना बांधू .......................

Thursday, June 23, 2011

वादियों और फिजाओं ने गढ़ी प्यार की नयी परिभाषा - डॉ किरण मिश्रा



मैंने अलसाई सी आंखे खोली है.लेटे-लेटे खिड़की से दूर पहाड़ो को देखा पेड़ो  और पहाडियों की श्रंखलाओ के पीछे सूर्य निकलने लगा है, हलकी - हलकी  बारिश हो रही है, चिड़िया गा रही है कुछ धुंध  भी है जो पहाड़ो से रास्ता बना कर होटल की खिड़की से मेरे कमरे मैं आ रही है . पहाड़ो मैं मेरा बचपन बीता  है फिर आज नया क्या है कुछ अलग सा एहसास ये चुपके से कौन आया है मेरे पास पहाड़ो के पीछे से या उस झील की गहराई से जो चाँदी के तारो की तरह चमक रही है, मैं उसे टटोल ही नहीं पा रही हूँ. कौन है जो मन के दरवाजे से दस्तक दे कर चुप खड़ा है, मुझे  लगता है मेरा होना न होना होकर रहा गया है मेरी रुह मेरा साथ ऐसे छोड़ रही है जैसे पहाडियों की ऊची चोटी से बर्फ धीरे -धीरे पिघल रही है,  मुझे लग रहां  है किसी ने मेरा हाथ थाम  लिया है मुझे ले चला है झील के किनारे फिर देवदार के घने जंगलो की तरफ .  पहली बार इस यात्रा में मैं खुद को महसूस कर पा रही हूँ. मुझे लग रहा है कि नैनीताल की सारी धरती मेरे साथ नाच रही है आकाश नाच रहा है देवदार अन्य पेड़ो के साथ नाच रहे है. 
कहते है जब आप प्रेम में  जीते है तो हर तरफ फूल ही फूल खिल उठते है चारो और हरियाली छ जाती है और पहले से ही आप हरित प्रदेश में हो तो..... प्रेम  फूलो की खुशबू  की तरह आपके तन-मन में बहता है . मुझे लग रहा है देवभूमि में किन्ही दो प्रेमियों का मानस- रस सहज ही प्रवाहित हुआ होगा तभी इस भूमि में स्नेह  बहता  है उसी ने मेरे तन- मन को पागल कर दिया है. नशा, उन्माद, काव्य, नृत्य, गीत हजारो रूपों में अपनी पुरी मौलिकता  से मेरे अन्दर प्रस्फुटित हो रहा है. आज अचानक इस देवभूमि में, मैं प्रेम की बात क्यों कर रही हूँ . कौसानी के सन सेट  पॉइंट पर बैठी -बैठी मैं सूर्य को पहाडियों के पीछे डूबता देख रही हूँ. ऐसा ही होता है प्रेम भी   
जब हम किसी के प्रेम में डूब जाते है तो हमारा जीवन साधारण  ऐसा ही सुन्दरतम हो जाता है जैसा कौसानी के सन सेट  पॉइंट पर सूर्य डूब रहा है पहाड़िया उसे अपने आगोश में छुपा रही है किसी बाँहे फैलाये प्रेमिका की तरह आज मैं एस सन सेट पॉइंट से दुआ करती हूँ की दुनिया का कोना- कोना प्यार की ख़ुशबू से महक उठे . किसी को किसी से नफरत ना हो, धर्म जाति सबसे ऊपर हो जाये प्रेम . जो प्यार में है प्यार करते है जिनके साथ उनका प्यार है वो इन पंक्तियों  को पढ़  कर सहमत होगे उनके लिए प्रेम का अर्थ भी यही है . प्रेम सबसे ऊपर है . वो गुलजार साहब कहते है ना की पांव के नीचे जन्नत तभी होगी जब सर पर इश्क  की छाँव होगी
भवाली का कनचनी मंदिर, अल्मोड़ा , कौसानी, रानीखेत का कलिका मंदिर  गोल्फ लिंक, हैदा खान मंदिर नैनीताल का भीम ताल , सात ताल , नौकुचिया ताल, हनुमानगढ़ी, केव गार्डन बर्न पत्थर, वाटर घुमते  हुए मुझे लगा की ना जाने कितने जोड़े प्रेम में डूबे हुए इन स्थानों  में घुमे होंगे एक दूसरे के असितत्व  में अपनी हर ख्वाहिश   का रंग घोलते   हुए इन  मंदिरों, गुफाओं, जंगलो, पहाडियों को अपने प्रेम का स्पर्श करते हुए यंहा से निकले होंगे तभी एस देवभूमि में एक अजीब तरह की मादकता है, नशा, शांति है सम्पूर्णता है मैं महसूस कर रही हूँ उन सब की संवेदना को. कितना सुन्दर कितना सुखद एक पूरे  व्यक्तित्व को सम्पूर्ण  रूप से अपने अन्दर समाहित करना . 
हर वो इंसान जिसे किसी भी रूप में प्यार चाहिए यानी जिन्दगी उसे नैनीताल  में हिमालय दर्शन जरूर करना चाहिए दूर हिम श्रंखलाए दिख रही है मानो  प्रेम  की परिभाषा सिखा रही है कह रही है देखो हम हिम श्रंखलाओ  को, हम मुक्त है कभी  बंधते बांधते  नही हमेशा पिघलते रहते है बस प्रेम भी ऐसा ही है जो मुक्त करता है बंधता नहीं जिसके साथ हम रहते है उसे हम सुख से ही नही भरते बल्कि उसके भीतर के बंद दरवाजो को खोलते भी चलते है. उसके वास्तविक रूपों को साकार करते है जब हम पिघलते है हमारे पिघलने सब साफ होकर साफ-साफ दिखने लगता है . तुम भी ऐसा ही करो जमो नहीं पिघलो  किसी के प्यार में तभी प्रेम के चरम को पाओगे. यह उदात्तता  नही यह साधना है . हिम श्रंखलाओ से प्रेम का एक नये रूप का परिचय पाकर जब मई  लवर्स  पॉइंट पहुंची तो ऐसा  लगा की किसी ने मेरी रूहों को छुआ है लवर्स  पॉइंट भी क्या खूब जगह है आप एक साथ वह पर बैठेगे तो पायेगे जैसे की देह छुट गयी है और आपकी आत्मा एक दुसरो में बध  गयी है और ऐसे बध गई है की आप एक दूसरे  की संभावनाओ को देख सकते है, उन्हें संवार  सकते है. यह पर आकर बुद्धि नहीं दिल की सुनते है दिल में छुपे प्रेम को सुनते है बुद्धि रूपी गणित की नही प्रेम को पाने का द्वार  तो प्रेम है गणित नहीं यह आकर ही ये समझ पाते  है. आप के प्रेमी  या प्रेमिका  शरीर से बढकर एक आत्मा है और किसी की आत्मा को दुखाया नहीं करते उनके मन और मस्तिष्क का ख्याल रखिये लवर्स  पॉइंट कुछ ऐसा ही मुझे समझा गया और शायद मेरे साथ सारी कायानत को सदियों से समझाता चला आ रहा है तभी नैनीताल की वादियों में प्यार के गीत आज भी गूंजते है और सदियों तक गूंजते रहेगे और ये गूंज आकाश, धरती  हर वो जगह फैल जाय जहां    ईष्या, अत्याचार, पाखंड , आतंक है, इसी आशा में मैंने अपना सर गाड़ी की सीट पर टिका लिया .

              




















                                            सबके दिलों में ऐसे ही प्यार की ज्योति जलती रहे 

Friday, June 10, 2011

दर्द का उद्धार

सामाजिक  संरचना तथा सामाजिक व्यवस्था का स्वरूप इस बात पर निर्भर करता है की उसके अंतर्गत स्त्रियो की स्थिति कैसी है. स्त्रियों की स्थिति भारतीय समाज में कैसी है और कैसी होनी चाहिए ये विवाद का विषय रहा है. मै इस  विवाद में नहीं पड़ना चाहती क्योकि मेरा मानना है कि अगर आप में गुण है तो एक न एक दिन आप को उपयुक्त स्थान मिलेगा चाहे समाज हो या घर भारतीय स्त्री के साथ ऐसा ही हुआ है आज उसने अपनी स्वतंत्र  पहचान बनाई है सामाजिक निरर्थकता को पूर्णतय समझते हुए. अगर भारतीय नारी चिरपरचित समर्पित पत्नी और वत्सल्मयी माँ है तो वैराग्य में साध्वी गणिका के रूप में स्वतंत नारी अस्त्र-शस्त्र एवं शासन में प्रवीन वीरांगना , स्वतन्त्रता आन्दोलन में संघर्षरत, साहित्य में सृजनशील, कलाओ में निपुण रही है.लेकिन में इस लेख  के माध्यम से बात करुगी आज की नारी की.आज  की नारी  अधिक जागरूक. अधिक साहसी, अधिक  आत्मनिर्भर है फिर क्या कारन है की वो आज भी पीड़ित है में यह कोईआंकड़े  नहीं दुगी जो ये बताये की आज की नारी कितने प्रतिशत खुश या दुखी है. नविन  सामाजिक परिवेश में नारी अपने आप को कहा पति है ? ये विचारणीय प्रश्न है क्या आज की नारी समाज, घर, संस्क्रती, आर्थिक सम्बन्ध, पुरषों के साथ उसके सम्बन्ध, स्वयम के प्रति उसका नजरिया, शिक्षा के प्रति उसका नजरिया बदलने के वाबजूद अपने को अकेला, कमजोर, दुखी नहीं पति है ? अब जबकि समाज में नारी ने अपने आस्तित्व की नई परिभाषाए लिख दी है तो फिर वो दुखी, एकांगी क्यों ? यह पर में बता दू की सबसे ज्यादा कामकाजी महिलाये ही इसका शिकार है. इसमे कोई दो राय  नहीं हो सकती  की बहुत कुछ  बदला है पर इस बदलाव  को देखने  वालो  का नजरिया नहीं बदला .सहन , समझोता , करना,खुशियों   का परित्याग  और कल्याण  करने  जैसे कई सामाजिक दवाब स्त्री के ऊपर पड़ते है. अगर हम भावनात्मक खुशि और जिंदगीभर संतुष्ट  जीवन जीने का अवसर खो देने की बात न करे तब भी सामाजिक मानदंडो को बनाए रखने की कीमत स्त्री के जीवन पर नि: संदेह काफी ज्यादा पड़ती है. प्रतिकूल सम्बन्ध का स्पष्ट भौतिक प्रभाव स्त्री के स्वास्थ्य पर पड़ता है फिर पुरे समाज पर, जिसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए.जब लगातार घर में विरोधी या नकारात्मक और तनाव से भरा माहौल का सामना करना पड़े या समाज में तो स्त्री क्या करे ? एक उतर ये हो सकता है कि जीवन का फिर से निर्माण करे  जो कि  समाज  में  एक  स्त्री  के  लिए  आनेतिक  माना जाता  है    या  समझोता  कर  ले  जो  क़ि स्त्री  बहुतायत  में  करती  है  . फिर  बात  वाही  जा कर   रूक  जाती  है  क़ि  स्त्री    के  लिए  जीवन  सीधा- साधा   क्यों  नहीं  होता  ? उसे  हमेशा  जी  अच्छा , ठीक , आप  जो  कहेगे , इन शब्दों  को  लेकर  ही  क्यों  जीवन  जीना  पड़ता  है . में इस लेख के माध्यम से कोई विवाद नहीं खड़ा करना चाहती हू और ना ही तथाकथित स्त्री आन्दोलन क़ि हिमायती हूँ मैं तो अपने विचारो के साथ तमाम उन स्त्रियों क़ि मन क़ि बात रख रही हूँ जो सिर्फ अपने विचार घर, समाज में रखना चाहती है उसे मानने के लिए बाध्य नहीं करना चाहती है .लेकिन अब समय आ गया है क़ि स्त्रियों को ये तय करना ही पड़ेगा क़ि उन्हें किसी और के द्वरा बने -बनाये समाज में रहना है या अपना आशियाना खुद बनाना है. आशियाना बनाते समाये हमें किसी और के नज़रिये क़ि जरुरत नहीं है अगर हमें जरुरत महशुश हुई तो एक बार फिर हमारे हिस्से हमेशा क़ि तरहा दुःख, संत्राप, अकुलाट ही आएगी. स्त्री जाती को जीवन के अर्थ खुद खोजने होगे ये ध्यान   रख कर क़ि सारी मानव जाती के सृजन के साथ-साथ उसे संस्कारी भी बनाना है .      


         

Sunday, June 5, 2011

विचार करे अगर मानवता जिन्दा है?

बाबा राम देव के मुद्दे पर ब्लॉग जगत से ले कर फेस  बुक तक तमाम बाते हो रही है कुछ बाबा के साथ है कुछ सरकार  के साथ में इस बहस में कि  क्या  सही और क्या  गलत है नहीं पड़ना चाहती पर एक बात सारी मानव जाति से पूछना चाहती हूँ की हम क्या गुलाम  युग में जी रहे है हम अपने दिल की आवाज को शांति के साथ लोकतान्त्रिक  सरकार के सामने नहीं रख सकते और क्या बात रखने पर हमारे साथ गुलाम युग के जैसा 
व्यवहार किया जायगा ? अब समाये आ गया है कि हम अपने व्यवहार पर चिंतन करे क्या हम मानव है या ....? ये घटना किसी सरकार विशेष का मुद्दा नहीं है कि सरकार ने बाबा और उनके समर्थको के साथ क्या किया या बाबा क्या कर रहे थे बात सिर्फ ये है कि जो हो रहा था उसके ऊपर कारवाही का तरीका अमानवीय था सारी मानव जाति को इस पर विचार करना चाहिए हम क्या मानव है ...? विचार करे अगर मानवता जिन्दा है और इस घटना पर अपने विचार व्यक्त करे.
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Thursday, June 2, 2011

हर टापर लडकी में तुम्हारा अक्स दिखता है शमशुन: Shamshun, the untold Story

 
हर साल की तरह दसवी बारहवी  के परीक्षा परिणाम आ गए है . ज्यादातर वर्षो की तरह लडकियों ने ही बाजी  मारी है. अपने घर के व अपने छोटे मोटे कामो को कर के  आज फिर मुझे कई वर्षो पूर्व का वाकया याद आ गया . तब हम होशंगाबाद में रहते थे "वो" हमारे घर के पीछे बने छोटे से घर में रहती थी तब वो हाई स्कूल  में पढ़ती  थी उसके पिता फेरी लगाने का कम करते थे माँ रजाई धुनने का मै अपने घर की खिड़की से जो की ऊँची पहाड़ी पर था उसके कम करने को देखती रहती थी उसके घर मै उसकी बड़ी बहन जिसकी शादी हो चुकी थी और माँ पिता के आलावा कोई नहीं था वो अपने पढाई   के खर्च को चलने के लिए कभी- कभी चुडिया बेचती कभी पोस्टर -कलेंडर, मेरी दोस्ती भी उससे अजीब तरह से हुई मुझे जानवर पालने का शौक था कुत्ते द्वारा  सताए  जाने के बाद (उसने मेरी फ्राक फाड़ डाली थी )मैने बिल्ली पाली जिसने मेरे मुंह पर पंन्जा मारा (मेरे द्वारा  उसका ज्यादा मुंह साफ करने के कारण  ) तब मैने घर पर घोषणा की अब मै कुत्ते - बिल्ली नहीं पालूगी माँ ने कहा तोता पाल लो नहीं तोता नहीं मैने जवाब दिया वो मुझे इसलिए अच्छा नहीं लगता था वो हरदम बोलता रहता था और मेरे साथ खेलता ही नहीं था मैने तब खरगोश पालने की इच्छा व्यक्त की मेरी इच्छा  तुरंत मान ली गयी मेरा उससे मिलना भी इसी कारण  हुआ मुझे खरगोश के लिए हरी -हरी दूब चाहिए थी माँ ने मुझे सुझाया पीछे शमशुन दीदी रहती है उससे कहा दो वो रोज दूब  ले आएगी. वो रोज दूब  लाने  लगी और बस हमारी दोस्ती चल पड़ी मैने उसे दीदी मानने से इनकार  कर दिया और उसने भी मुझे दोस्त मान लिया वो दूब  लाते-लाते न जाने कब तेदु के फल , रंग - बिरंगी चुडिया ,रंगीन पोस्टर लाने लगी मै उससे कहा करती तुम मेरे साथ ज्यादा देर तक क्यों नहीं रहती उसका कहना होता हाईस्कूल के बाद मुझे इंटर करना है और फिर बी.ए. ,एम .ए. उसके लिए मै दोपहर को तेदु के पत्ते  इकट्ठे  करने जंगल जाती हूँ (तब मुझे पहली बार मालूम पड़ा की तेदु के पत्तो से बीडी बनती है उनका  ठेका उठाता  है ) शाम को घास बेचती थी पुरे  दिन की मेहनत के बाद उसका सपना ज़िंदा रहता  था हमेशा उसकी आँखों मे. मुझे मैने आठवी  पास की और उसने हाईस्कूल हम दोनों खुश थे उसने मुझे अपने घर पहली बार बुलाया था हमेशा की तरह ऊँच -नीच ,छोटे- बड़े को नहीं मानने वाली  मेरी माँ ने  मुझे खुशी- ख़ुशी जाने दिया  था. घर क्या था रुई धुनने का छोटा सा स्थान था. एक रसोईघर जिसमे चन्द बर्तन थे फर्नीचर के नाम पर एक मूझ की चारपाई और एक कुर्सी वो  भी टूटी.हमारी दोस्ती इन चीजो का कोई स्थान नहीं था उसके घर के पीछे  फूलो का छोटा सा बगीचा था जो उसकी मेहनत का परिणाम था वह लगे रंग- बिरंगे फूल और उन के बीच मौलश्री के पेड़ पर टगे झूले को देख कर मेरा मन खुश हो गया उस दिन मानो  मुझे दुनिया की निमायत मिल गई हो. हम घंटो झुला झूलते रहे उस दिन
हम इतना हँसे जिसकी गूंज मुझे आज भी सुनायी देती है फिर तो ये सिलसिला चल  निकला अब तो जब भी मौका मिलता में अपनी किताबे उठा कर पीछे के दरवाजे से उसके घर भाग जाती वह  हम दोनों झुला झूलते हुए ढेरों  बात करते उसने मुझ हँसते- हँसाते जंगल, फूल - फल की ढेरों  जानकारी दी कौन सा फूल कब खिलता है उसमे कितनी खाद - पानी होना चाहिए ये सब मेने उसी से सिखा दिन बीत रहे थे हमारी दोस्ती और मजबूत हो रही थी . हम दोनों ही व्यस्त थे मेरा हाईस्कूल और उसका १२ वी बोर्ड था हम दोनों ने उस बगीचे और झूले पर खूब पढाई की परिक्षाए खत्म हुई जिसका हम दोनों को इंतजार था परीक्षा परिणाम निकला शमशुन ने पुरे जिले में टाप किया था मै उसके घर दौड़ पड़ी हम बहुत खुश थे माँ ने जी भर कर हम दोनों को मिठाई खिलाई और हमें कपड़े लाकर दिए हम ने नए-नए कपड़े पहने और होशंगाबाद से लेकर पंचमढी  तक खूब घूमे  . गर्मियों की छुटिया तो हो गई ही थी,मुझे उत्तर- प्रदेश मै अपने घर एक शादी मै जाना पड़ा मेरा मन शादी मे नहीं लग रहा था मे जल्दी से जल्दी शमशुन मिलना चाहेती थी जेसे ही हम घर पहुचे मै घर से निकल पड़ी , माँ हँसी मै बिना कुछ कहे मुस्कुरा दी हम कई दिन बाद मिले इस  बार वो मुझसे मिल के बहुत रोई रोना मुझे भी आया जब उसने बताया  मेरी शादी हो रही है इतनी जल्दी और तुम्हारी पढाई मेरे मुँह से निकल पड़ा उसने उदास नजरो सेमेरी तरफ देखा कहने लगी किरण हम छोटे लोग सपने देखते है उसे आँखों मै पलने के लिए वो पुरे होंगे एसा तुमने कैसे सोचा हमारा सारा खेल -कूद, पढाई-लिखाई ,रुचि
सपने आदि सभी गृहस्थी के चक्कर में इस तरह डूब जाती है की फिर हम कभी कोई सपने देखने के लायक नहीं रहते . हमारी पूरी पहचान गोद में लटके  बच्चो  तक ही सीमित   होकर रहा जाती है. हमारे सतरंगी सपने हमें भूलने पड़ते है बस याद रखना पड़ता है नमक , तेल,
और, लकड़ी एक आह भर कर उसने कहा था अगले जन्म में मौका मिला तो खूब पढूंगी  और कभी शादी नहीं करूंगी. हर वर्ष जब भी हाईस्कूल इंटर का रिजल्ट घोषित होता है मुझे हर वर्ष  उसका ख्याल आता  है और उन सारी लडकियों का भी जिनके सपने अधूरे ही रहा जाते है. आज जिन्होंने सफलता   के सबसे ऊँचे मुकाम हासिल किये है वे यही तक ही न रुके, हर उस छोटी तक पहुंचे जंहा पहले कोई  न पहुंचा हो मन से बस यही दुआ निकल रही है.                  
                  

Tuesday, May 17, 2011

मेरा मन देखे एक सपना


बहती रूकती इस जिन्दगी में कभी हरियाली होती है तो कभी पतझड़ आता है लेकिन जिन्दगी कभी रूकती नहीं. बहती जा रही इस जिन्दगी में कभी प्यार के दीप जलते है तो कभी अँधेरा छा जाता है शायद ऐसे ही अर्थ पता है जीवन हमारे अन्दर कभी- कभी एक तड़प का एहसास होता है कि कोई ऐसा हो जो बिना कहे हमारी कही को समझ ले.इसी खोज में पूरा जीवन बीत जाता है.किसी ने मुझ  से कहा था  जिन्दगी के  सारे माने  हमारे भीतर है जो जितना इसे पकड़ लेता है उतना ही जीवन का अर्थ समझ जाता है.नहीं तो हमेशा वो एक छटपटाहट  के साथ जीता रहता है.















मेरा मन देखे एक सपना 
दुनिया की भीड़ में कोई हो अपना 

मेरी धडकनों में सांसे हो उसकी 
मेरे सपने हो आँखे हो उसकी 

मेरी खामोशियों    पर बाते हो उसकी 
एहसासों पर प्यार की सौगातें  हो उसकी 

मेरी थिरकन हो पर ताल हो उसकी 
मेरी राग हो पर धुन हो उसकी 

मेरा मन बस देखे यही सपना 
दुनिया की इस भीड़ में कोई हो अपना 


Saturday, May 7, 2011

गर्मी की कड़ी धूप में पुरवाई सा माँ लगता था तेरा प्यार









गर्मी की कड़ी धूप  में
पुरवाई सा
माँ लगता था
तेरा प्यार
तेरी यादो से भरा
मेरा मन उल्लासित
होता बारम्बार
माँ ऐसा  था
तेरा प्यार
आज नहीं तू
मेरे पास
पर सपनो में
आके बंधाती आस
जब भी आँखे
मुंदती है
तस्वीर तेरी ही
दिखती है
अब कौन करेगा
माँ तेरे जैसा प्यार

Wednesday, May 4, 2011

जीवन क्या है ? एक बहुत पुराना प्रश्न है

जीवन क्या है ? एक बहुत पुराना प्रश्न है . जितना पुराना .जितना बड़ा .जितना  गूढ़ प्रश्न उतने ही पुराने उतने ही गूढ़  जवाब. आखिर जिन्दगी का अस्तित्व क्या है ? इसका अर्थ क्या है ? कितने बार कितने तरह से जिन्दगी को ले कर प्रश्न पूछा गया है . लेकिन आज तक इसका पुख्ता जवाब नहीं मिला है . हम कंहा जान सके है कि जीवन का क्या अर्थ क्या है ? मेरे लिए तो जीवन विश्वास है, प्यार है, श्रद्धा  है. एक वैज्ञानिक के लिए संसार कि उथल- पुथल के बाद  की रचना ही जीवन है. लेकिन सवाल ये उठता है कि ये उथल- पुथल हुई तो किसने की उसके बाद जीवन शुरू कैसे हुआ. ईश्वर ने किया एक जवाब ये हो सकता है.अलग- अलग धर्म वाले इसे मानते भी है. या ईश्वर जैसी किसी शक्ति को. हम सब जन्म लेते है जीवन जीते है फिर मर जाते है कभी- कभी लगता है क्या इसके बीच  में कही कुछ है. मेरा ये सवाल आप के भी मन में आता होगा. मुझे इन सबका जवाब शायद कुछ हद तक अध्यात्म में मिलता है असल में अध्यात्म मेरे लिए कोई धर्म या धार्मिक विचार नहीं है. अध्यात्म मेरे अन्दर विश्वास भरता है मुझे मानसिक मजबूती देता है. और  शायद मुझे समझदार बनाता है मुझे अपने और लोगो को समझने की समझ देता है. प्यार करना सिखाता है निस्वार्थ भाव से . सच कहू तो में अघ्यात्म से जुड़ के ही जरूरतमंद लोगो की दिल की समझ सकने का प्रयास करती  हूँ शायद. हो सकता है आप सब को मेरी बाते मूर्खतापूर्ण लगे या अप्रमाणिक लेकिन सच बताइए जब आप अपने सबसे मुशकिल समय में होते है तब आप को आध्यात्म ही संतुलित नहीं करता हमें अपनी तकलीफ को सहने की शक्ति इसी से मिलती है. मेरे गुरूजी से मै हमेशा पूछती थी कि हम सब इस संसार में क्यों आए है सिर्फ खाने कमाने तो उनका जवाब था हम दुनिया में इसलिए आए है कि ठीक से अपना काम  करते हुए दुसरो की अधिक से अधिक मदद करे. शायद सत्य, इश्वर अध्यात्म या अच्छा वही है जो किसी को सुख पहुचाये में समझती हूँ यही शक्ति है यही भक्ति है यही जीवन है.मेरे लिए  संसार ,अध्यात्म, भगवान का मतलब  दुसरो के होठो को मुस्कान से भर देना है यही सुख है यही जीवन है इसके बिना जीवन, जीवन नहीं है. 

Saturday, April 23, 2011

चलो दोनों चले वहां










बड़े -बड़े पहाड़ो के 
सकरे से रास्तो के बीच 
ना कोई आता जाता जंहा 
चलो दोनों चले वहां 
जहा दर्रो से निकले धवल  पानी 
जहा सन्नाटे की ही हो वाणी 
चलो चले वह 
ना कोई आता जाता जहा
जहा पैरो के नीचे पत्ते करे चरर मरर 
जहा हवा की हो सनन-मनन 
ना कोई आता जाता 
चलो दोनों चले वहा
सुन्दर -सुन्दर परिंदों का हो जहा आवास  
जंहा धरती के साथ -साथ हो आकाश 
वही करे निवास 
न  कोई आता जाता जहा 
चलो चले वहा 
अब ना रुके यहा   
चलो चले वहा 

  

Saturday, April 16, 2011

मन पर छाई धूसर धूप सी














वृक्ष्र से विलग हुई पतियों का कोई अस्तित्व ही नहीं रहता लेकिन उस छन जब पत्तिया विलग होती है वृक्ष  का भी अस्तित्व न के बराबर होता है. ऐसा ही है हमारा मन जब  प्यार नहीं पता तब हम  दुःख के सतत प्रवाह में बहने लगते  है. धरती में बिखरी पतियों के उड़ने जैसे  हमारी जिन्दगी का भी कोई अस्तित्व नहीं होता.    




झरने लगा पत्ते जैसे  मन 
बढ़ने  लगी उदासी मन की 
उड़ने लगी चेहरे की रंगत 
बुझने लगी मन की रंगीनी 

मन पर छाई धूसर धूप सी 
मन की सुधियाँ  हुई अनबनी 
उन से बिछड़ के रुक गई
जैसे  प्रगती  जीवन की 

साँस रुकी हम खड़े है जैसे 
पतझड़ के बाद खड़े वृछ जैसे 
लुटी -लुटी सी प्रकति जैसे  
मन मेरा तरसा हो ऐसे  

चिल चिली धूप  में बिन पानी के 
साँस अटकती गौरैया  सी 
मन ऐसे  तरसा है जैसे  
ठहर  गई गरम दुपहरिया जैसे  

आग बरसती मन में ऐसे  
गरम लू चलती हो जैसे  
मन के इस वीराने में 
अब न हरियाली छाई 

छ गई यादो की  पतझड़ 
बीत गई रहनुमाई बसंत की      
          

Monday, April 11, 2011

हे मानव यात्रा चल चला चल



साधारण सी यात्राओं पर जाने को हम छुट्टियाँ  मानाने का साधन भर मानते है . शायद  ये ठीक नहीं है, यात्रा एक ख्वाब की तरह होती है . एक अच्छा ख्वाब जो पूरा होने  पर आप को एक सुखद अहसास में भर देता  है .

अगर हम सभ्यता की यात्रा की गहराई में उतरे तो पाएंगे की यात्रा ही वह चीज है जिसने मानव समाज को विकसित किया . यात्रा ने विज्ञान ,कला ,व्यापार  संस्कृति  के साथ-साथ मूल्यों का भी विस्तार दिया . हमारे अन्दर विचार भरे उन विचारो को विश्लेषित करके कारणों तक पहुचाया।
ये विचार ही तो थे की एक राजकुमार बुद्ध बन गया और संसार को एक नया धर्म दिया , बोध की इस यात्रा ने न जाने कितने संत, महात्मा हमें दिए।
एक बार फिर हमें यात्रा के खोये अर्थ तलाश करने होंगे . आज हमारी यात्राएँ कर्मकांडो या शायद व्यस्त जीवन से कुछ फुर्सत के समय बिताने के लिए छुटिया मानाने का एक माध्यम भर है पर हमें यात्रा के इस मानसिकता को थोड़ा बदल कर देखना होगा।
असल में यात्रा हमें धरा से जोडती है इतिहास ,संस्कृति आप से बाते करने को बेताव  रहते है लेकिन तब जब आप एक यात्री होते हैं ,पर्याटक नहीं । यात्रा एक तलाश है, अपने को जानने की समझने की , ये प्रकृति की
पुकार है जो आप को पहाड़ो की चोटिया नापवाती अजनवी घाटियों में घुमती है।  महल ,झीले किले, दर्रे . मंदिर मीनारे . सागर . गंगा सागर से गंगोत्री जहाँ भी जाये इनके बीच  इनकी बाते सुनिए ध्यान से, ये कुछ कहते है।
ये अपनी कहानी कहते है अपनी व्यथा अपनी कथा आप को सुनाएगे अगर आप सिर्फ इन्हें देखने जाते है तो ये खामोश खड़े रहेगे। इस बार इनको भी सुनिए ,यात्रा करिए।
ये यात्राए पसंद नहीं तो अनंत की यात्रा कीजिये आप अनंत के यात्री हैं  ध्यान करिए यह यात्रा अंतहीन है। परमात्मा अनंत है उसकी कोई सीमा नहीं ये यात्रा भोगोलिक नहीं ये अंतर -मन की यात्रा है। अब ये आप के ऊपर है की आप को कौन सी यात्रा पसंद आती है भौगोलिक या अनंत से अनंत की।

हे मानव यात्रा पर चल,
चला चला चल 
यात्रा ने संस्कृति  का विस्तार किया , 
विज्ञानं और विचार दिया.
तेरी यात्रा से संहार हुआ ,
युद्द हुआ विध्वंस हुआ .
सम्वेदना दी ज्ञान दिया 
बुद्ध दिया बोध  दिया . 
खुद को जाना खुद को माना 
तलाश की अछोर जीवन की ,
यात्रा की विराट प्रकृति की  
मंदिर से माजिद से , 
हर पग से हर डग से 
कुछ मिला कुछ सीखा  ,
इसलिए हे मानुष यात्रा कर ,
यात्रा पर चल ,चला चल .

Friday, April 8, 2011

बसंत में पतझड़

आँखों के कोरो से कुछ गीला- गीला गिरता है.
दिल से भी कुछ रुकता-रुकता झरता है .
कसक सी होती है दिल में , 
बसंत में पतझड़ सा लगता है .
आँखों के कोरो से कुछ गीला- गीला गिरता है .
हर बार कहा हर बार रहा ,
उनसे मेरा जो नाता है 
ना माना मीत मेरा वो सब ,
उसे बंधन भी जकड़न लगता है .
आँखों की कोरो से कुछ गीला- गीला गिरता है .
ना जाने वो प्यार की भाषा ,
ना जाने मन की अभिलाषा ,
कसक सी होती है दिल में ,
शहर अन्जाना लगता है .
आँखों के कोरो से कुछ गीला-गीला गिरता है .
ना समझ सकी ना समझा सकी उनको ,
ये प्यार बेगाना लगता है .
आँखों की कोरो से कुछ गीला-गीला गिरता है .       
      

Monday, April 4, 2011

भष्टाचार के विरुद्ध : दे घुमा के

एक सबसे बड़े गुनाह की कोई सजा नहीं है . भ्रस्टाचार एक एसा गुनाह है जिसमे देश की अदालतों में करीब १७ हजार से ज्यादा मामले लंबित पड़े है . एन मामलो के हल होने की रफ्तार इतनी धीमी है की साल दो साल में एक हजार भ्रष्टलोगो को भी सजा नहीं मिल पति .एन .सी .आर .बी . की तजा रिपोर्ट ये बताती है की आई पीसी की धाराओ के तहत लगभग २९११७ लोगो पर मामले चल रहे है .वर्ष २००९ में इनमे से करीब ३२२८ लोगो के मामले की सुनवाई तो हुयी लेकिन मात्र ९६३ ही दोषी करार दिए गये . एस समय अकेले सी .बी .आई . के पास ९९१० भ्रस्ताचार के मामले लंबित पड़े है .एन मामलो में सबसे ज्यादा १७५९ दिल्ली और १०६२ महारास्ट में है एन आकड़ो का ये मतलब नहीं क़ि अन्य प्रदेश पाकसाफ है बल्कि वहाँ भ्रस्टाचार इतना है क़ि भ्रस्टाचार के मुकद्दमे भी दर्ज नहीं हो पाते .                
                  भ्रस्टाचार में अंकुश लगाने के लिए ये जरुरी ही जाता है क़ि हम भ्रस्टाचार निरोधक कानून १९८८ को बदले क्योकि एस कानून के प्रावधान के तहत मात्र पाँच वर्ष क़ि सजा का प्रावधान है पर इसमे मुजरिम की सम्पति को जब्त करने का कोई प्रावधान नहीं . एक इंटरनेश्नल रिपोर्ट का कहना है कि भारत में सरकारी महकमो में कम करने के लिए कम से कम ५० फीसदी लोगो को अपना वाजिब काम  निकलने  के लिए अधिकारियो को घूस   देनी पडती है .एस कारन भ्रटाचार की सूचि में भारत ८७ वे स्थान पर है पि. आर. सी. का सर्वे यहा बताता है कि भारत नंबर ४ पर एशिया प्रशांत के सबसे भ्रष्ट १६ देशो में है .लगभग ७० लाख करोड़ रूपये जमा है भारत का स्विस बैंक के खातो में ये एस बात का गवाह है कि हमारे देश के तथाकथित बड़े लोग कितने भ्रष्ट है. आज हमें जरूरत है गाँधीवाद कि सच्ची परम्परा के अनरूप आचरण करने की. क्रिकेट की तरह एकजूटता के साथ यह वक्त हम सब के उठ खड़े होने का है .भ्रस्टाचार के खिलाफ . अन्ना हजारे की आपिल पर धयान दीजिए यहाँ वक्त आपके आत्मबलिदान का है .आप एक ,दो दिन या जैसी सुविधा हो ५ अप्रैल से उपवास राखिये ,उपवास के साथ भ्रस्टाचार से देश मुक्त हो भगवान से कहे . प्रधानमन्त्री से अनुरोध कीजिए की जन लोकपाल विधेयक को पारित कराये नहीं तो अगले चुनाव में हम मजबूरन उनकी पार्टी को वोट नहीं देगे .शांत रहा कर अपनी बात कहे . एक बार फिर भ्रस्टाचार से स्वतंत्र होने के लिए इस अगले स्वतंत्रता आन्दोलन में जेल जाने का साहस जुटाए. आप हम सब जिस जुनून की हद से क्रिकेट को प्यार करते है उसी जुनून से भ्रस्टाचार को ख़त्म करने की मुहिम में अन्ना हजारे की टीम का साथ दीजिए .भ्रस्टाचार को ख़त्म करके भ्रष्ट मुक्त समाज का विश्वकप जीतिये दीजिये दे घुमा के .
                                                                                                                                                                                       

Sunday, April 3, 2011

बेटियों को अपने घरों में आने दीजिये

हर बार की जनगणना में शुन्य से छह साल के शिशुओं का लिंग  अनुपात ये बताता  है की हमने कन्या भ्रूण  हत्या रोकने के लिए प्रसव  पूर्व निदान तकनीक अधिनियम (पी .एन .डी.टी. एक्ट) को सख्ती से लागु किया उसके  बावजूद  हम बेटियोको बचा नहीं पाए .सारे   उपाय   कानून बेअसर साबित हुए . आंकड़े बताते  है की देश में प्रति एक हजार लडको पर लडकियों की संख्या सिर्फ ९१४ है.जबकि दस साल पूर्व यहा ९२७ थी .२०११की जनगणना के आंकड़ो के अनुसार पिछली जनगणना की तुलना में शून्य  से छह साल के बच्चो की संख्या घटी  है लेकिन लडको की संख्या बड़ी है . ये आजादी के बाद से सर्वाधिक गिरावट है जो हमारे लिए शर्म की बात है. पंजाब ,हरियाणा में पहले से ही लडकियों की संख्या कम है . एस बार की जनगणना में प्रति हजार पुरुषो पर महिलाये दमन व दीव में ,दादर ओर नगर हवेली में भी लगातार अनुपात कम होता जा रहा है .प्रति हजार पुरषों पर ७७५ महिलाये है .एक दशक पहले ये आंकड़े १००० पुरषों पर ९३३ था जबकि २०११ में १००० पुरषों पर मात्र ९४० महिलाये है . एस बार उतर - प्रदेश में महिलाओं की तादाद ठीक है . २००१ में १००० पुरषों पर ८९६ महिलाये थी आज २०११ में १००० पुरषों पर ९०८ महिलाये है . महिला एवं पुरुष बराबर अनुपात के लिए हमे पी. एन. डी. टी . एक्ट के साथ -साथ लोगो की सोच को बदलना पड़ेगा उन्हें ये समझाना होगा  की एक महिला अधिक जागरूक अधिक कर्मशील एवं अधिक जिम्मेदार होती है वो किसी भी हल में समाज से   अपना तारतम्य बिठा कर घर -परिवार की जिम्मेदारी का  निर्वहन कती है . जरूरत है समाज में रहने वाले सभी उन लोगो को अपनी सोच बदलने की जो लडके को अपना पालनहार समझते है और  लडकी को बोझ आएये नए सिरे से समाज की एस समस्या लिंग अनुपात पर विचार करे .स्त्री ओर पुरुष इश्वर ने इसलिए बनाये है की वे सृष्टि  को चला सके फिर हम क्यों होते है ये तय करने वाले की दोनो में कौन श्रेष्ठ है है और दूसरे का आना ही इस  धरती पर बंद करा दे अगर हम ऐसा   करते है तो खालीपन ,कुछ छुट जाने का एहसास हमेशा इस  धरती पर कायम रहेगा . बेटियों  को अपने घरों में आने दीजिये यकीन मानिये आपके घर ,आपकी ,जिन्दगी खुबसूरत ,व्यवस्थित और  सम्पूर्ण  बन जाएगी .                       
डॉ पवन कुमार मिश्र की ये दो पंक्तियाँ सारे समाज की सोच हो
"कई जनम के सत्कर्मो का जब मुझको वरदान मिला
  परमेश्वर से तब मैंने सीता सी बेटी मांग लिया"


Sunday, March 27, 2011

the success mantra

जीवन मैं सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति कटिन परिश्रम करता है .किन्तु इसके लिए कोई समय का तो कोई  उचित मार्गदर्शन के आभाव का रोना रोता है जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए निम्न सुझाव की मदद ले सकते है 
. १ प्राथमिकता तय करे 
 २ लक्ष्य  को लिखे जो आप पहले प्राप्त करना चाहते है , उनको श्रेणीबद्ध  करे .
३कार्य योजना को लिखे लिखित लछ्य के साथ इसको प्राप्त करने के लिए अपनाये जाने वाले कायो को लिखे
 ४ सफल लोगो से मिले अपने लछ्य ओर कार्य योजना को किसी सफल व्यक्ति को दिखाय ओर उनसे सलाह  लेने की कोशिश करे .समझोता न करे आप उन चीजो से कभी समझोता न करे जो आपके लिय सबसे ज्यादा महत्वपूण है .
५.   दुसरो की गलतियों से सीखे वो ज्यादा आसन होता है
 6. महत्व का अहसास दिलाये आपका समय अमूल्य है उसका सदुपयोग करते हुए उसके महत्व से लोगो को अवगत कराए
 ७ . स्वास्थ्य रहे अपने स्वास्थय को टीक रखने के लिए हर सम्भव प्रयास करे. 
८ धीरज रखे कोई भी काम शंतिपूर्ण  तरीके से करे एस तरह आप व्यापक बुदिमानी के साथ काम कर सकते है
 ९ आराम भी जरूरी है उर्जावान तरीके से कम करने के लिए ओर शरीर की स्फुर्ती के लिए इसके साथ साथ ज्यादा से ज्यादा पानी पीये 
१० अनुभव के लिए यात्रा भी करे यह आप को सिखाता है की दुसरे लोग  कैसे  जीवन जीते है.
११ जोखिम उठाना सीखे जब आप जोखिम लेते है तो कम नुकसान के साथ ज्यादा पाने की स्थिति  में होते है १२. कम्प्युटर  का प्रयोग करे इसके प्रयोग से आप अपनी सर्जनात्मक शक्ति के साथ साथ अपने जीवन को भी व्यवस्थित बना सकते है .त्वरित गति से कम करने के लिए कम्पुटर एक बेहतर विकल्प है 
१३. तुलना करने से बचे ये एक एसा  रोग है जिसमे कुंठित हो कर आप हर कम करना बंद कर देते है 
१४. जीवन यादगार बनाये जो चीज आपके लिए महत्वपूण है उसको समय दे .
१५ रोज व्यायाम करे प्रकति का आनंद लेते हुए अपनी प्राथमिकताओ और लक्ष्यों को  तय  करे.खुद को पुरुस्कृत करे यह आपको प्रत्येक  दिन ओर अच्छा करने के लिए प्ररित करता है .
१६ जीतने के बारे में सोचें आप हमेशा विजय के बारे में सोचें तथा दूसरों के प्रेरणा स्रोत बनने प्रयत्न करें 
१७ ज़िंदगी को पूरी तरह स जिए. सभी को क्षमा  करने के लिए एयर रहे इस तरह जीवन बिना बोझ के चल सकता है
१८. दुसरे के लिए योगदान करे इस तरह आप स्वयं अपनी सहायता करे है.      

Thursday, March 24, 2011

आवाहन

















रूठ गया  जो मुझसे
 क्या कभी ना अपना सकुगी
 में वो तो मेरे अपने थे अपना मानू  किसको में
 हे  पमेश्वर मुझसे क्या  कोई भूल हुई
 केसे पाउगीमें उनको
 ये भूल तो शूल हुई 
उन्होंने मुझसे मुख मोड़ा 
मुझे निर्धन कर डाला 
बिनउनके के जीवन केसा 
अब जीवन  विष का हाला 
 रिश्तो को जो ना समझे
 उसको केसे समझाऊ 
उनके बिना अब जीवन केसा
 केसे इसको निभाऊ
 बीच मझधार में नय्या
 मेरी केसे पार में पाऊ
 ना मुझे जीना है जीवन से प्यार 
मेरे  जीवन स्पंदन बंद  कर दो इसी समय तुम आ
 घनघोर निरशा की   बेला में इसी समय तुम आओ
 हे परम पिता मुझे भी अपने साथ भी ले जाओ  

Friday, March 18, 2011

तुम्ही में डूब जाती हूँ















श्रद्धा  और विश्वास तुम पर
 तुम्हारे गीत गाती हूँ
 मन जब भी घबराता है
 तुम्ही में डूब जाती हूँ


 कोई चीज चुभे मुझे जब
 ह्दय तुम्हे लगाती  हूँ
 जग की कृत्रिमता से ऊबकर 
 तुम्ही   में  डूब जाती हूँ 

तुम्हारा नाम लेने पर
 प्रिय मस्ती मुझ पर छाती है 
 पानी पर रश्मि जेसी
 वो मस्ती मुझे नचाती  है . 

रश्मि जेसी नाच नाच कर
 मै इठलाती जाती  हूँ 
 हर बार प्रिय मै
 तुम्ही में डूब जाती हूँ 

Monday, March 14, 2011

मेरी भावोक्ति








हो रहा था ज़िंदगी में जब अँधेरा
लग रहा था न होगा अब कभी सवेरा
तब उन्होंने मुझे एक नई पहचान दी
अपने प्यार से मुझमे नई जान दी

उनके प्यार ने रचनात्मकता सिखाई
मेरे अन्दर की कमी भी बताई
उस कमी को स्वयम दूर भी किया 
श्रद्धा प्यार को नया अर्थ दिया 

उनका प्यार ऐसा प्यार है संसार में
उमंग भरे जो मेरे हर विचार में
सृष्टि के नए अर्थ गढ़ता उनका प्यार है
जीवन को नयी दिशा देता उनका प्यार है

उस सृष्टि करता से उन्होंने मिलाया है
भक्ति की शक्ति की महिमा बताया है
अपने को समझो अपने को जानो
जिन्दगी सरल हो जायेगी मानो

 घृणा क्रोध लोभ छोड़ोगे जब ही 
 परमेश्वर से जाकर मिलोगे तब ही
 ऐसे शुभ विचार जिसके होते है संसार में
  मानव नहीं महामानव है आधार में