Monday, March 12, 2018

सुनो परदेसी !

वो जहाँ हम मिलते थे
खेत कितने होते थे हरे पीले
और किसान कितने होते थे खुश

गुड की मीठी खुशबू हवा में तैरती
चिपक जाती थी हमारे चेहरे पर
उसका जायका जैसे कच्ची उम्र का हमारा प्रेम

खेत के बीचो बीच खड़ा वो बिजूका
जिसके न जाने कितने नाम रख छोड़े थे तुमने
जिसे देख कर हमारे साथ साथ
धान लगाती बालाएं कितना हँसी थी परदेसी

गेंहूँ की हरी हरी बालियाँ जब झूमती थी
तब मैं भी इठलाकर वैसी ही
चूनर लाने की तुमसे जिद्द करती थी
और बदले में तुम हँस कर
लगा के एक चपत
दिखा के फूल चंपा का कहते
वैसी चूनर होनी चाहिए तेरे लिए
और लजा के मैं
तुम्हारी लाई हरी पीली चूड़ी कलाई में घुमाने लगती

पर अब परदेसी
यहाँ के खेत धानी चूनर नहीं ओढते
न मिलती है किसी गोरी को चंपई चूनर
और गुड की मिठास सिर्फ रह गई है यादों में
किसान  मुरझाए हुए पीले चेहरे के साथ
विजूका हो गए हैं
अपनी फ़सल का मुआवजा मांगते मांगते
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Thursday, March 8, 2018

पुरुषों के नाम पत्र

पुरुषों के नाम पत्र
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एक पत्र जो आप को वो पात्र बना देगा जिसकी कोशिश आप एक युग से कर रहे है....

सारी दुनिया औरत के इर्द गिर्द
औरत की दुनिया चूल्हे के इर्द गिर्द।

आप श्रेष्ठ है और हम हीन इस भावना से मुक्त हो...
जरुरी है बेहतर समाज के लिए

श्रम की परिभाषा मानवीय मूल्यों पर आधारित नहीं है। अगर होती तो निःसंदेह स्त्री के योगदान को पहचान मिलती और उसका मूल्यांकन भी होता।
जाने दीजिए हम मांग नहीं रहे लेकिन हमारे श्रम को उचित सम्मान तो दीजिए अगली बार जब आप से कोई पूछे की आप के घर की महिलाएं क्या करती है तो ये मत कहिए कुछ नहीं , पत्नी से तो बिलकुल भी नहीं कि तुम्हारा क्या ? दिन भर घर पर ही रहती हो...मैं काम करके आया हूं ।
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शुभकामनाएं हम आपस में ले - दे लेंगे आप तो बस अपना एटीट्यूड बदलो
#किरण

Monday, March 5, 2018

तुतलाते बोलों में मौत की आहट

एक अंतहीन रात में
एक औरत तोडना चाहती है दुस्वप्न के जालों को

वो छाती की दर्दनाक गांठ में दबे
उस शून्य को निकाल देना चाहती है
जो हर चीख के साथ बढ़ता जाता है
और हटाना चाहती है
इर्द गिर्द जमा डर की बीट को

वो रखना चाहती थी जिंदा
सत्य, न्याय, प्रेम की कहानियों को भी
जो पिछली रात उसने सुनाई थी
उस फूल को जिसे
टिड्डियों ने तबाह कर दिया

अब किलकारियों के साथ
कहानियां भी दफ़न है

हिंसा से बचने के नुस्खे खोजना चाहती है वो औरत
हर उस फूल के लिए जो अभी खिले नहीं
हालाँकि पिछली रात टैंकों के नीचे
एक नन्नी धड़कन दबा दी गई है

गर्भ धारण करने वालियों को नहीं पता
कंस ने फूलों पर हिंसा की शुरुआत
उसी दिन कर दी थी
जिस दिन वो देवकी के गर्भ में छुपे थे।
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