मुझे भी साधना के पथ पर चलना सिखा दो तुम , मेरे " मैं " को मेरे मन से हटा दो तुम
मैं अब इस संसार में रुकना नहीं चाह रही हूँ , चाह कर भी इसकी नहीं बन पा रही हूँ
मुझे उस संसार का पता बता दो तुम
मुझे भी साधना के पथ.....................................................................
.जो साधन -पथ तुम ने सुझाया उस से लौट आई मैं, उस साधन- पथ साधना को कहाँ जान पाई मैं
.जो साधन -पथ तुम ने सुझाया उस से लौट आई मैं, उस साधन- पथ साधना को कहाँ जान पाई मैं
मुझे "साधना" का बोध करा दो तुम
मुझे भी साधना के पथ............................................................................................
बहुत कुछ जानते हो तुम पर ना जान पाई मैं, समझ , समझ के भी ना समझ पाई मैं
मुझे भी आलौकिक संसार के दर्शन करा दो तुम
मुझे भी साधना के पथ.................................................................................
ज्ञान के जिस पथ पे ना जा पाई मैं, तुम्हारे चरणों के अतरिक्त ना कुछ देख पाई मैं
उस के प्रथम पथ से दिव्य साधना का ज्ञान दे दो तुम
मुझे मुझे भी साधना के पथ ............................................................................................
सदा जाग्रत और सतत रहना मैंने तुम से ही जाना है, समय का सदुपयोग हो ये भी माना है
मेरी क्षुद्र द्रष्टि को व्यापक रूप दे दो तुम
मुझे भी साधना के पथ.........................................................................................................................
मेरी दशा और परिस्थितियों को सार्थक दिशा ना दे पाई मैं, ध्यान की गंभीरता के रस तत्व को कहाँ जान पाई मैं
मुझे बस श्वास - क्रिया रस चक्र का रस चखा दो तुम
मुझे भी साधना के पथ ..................................................................................................
तुम्हारे चरणों में गहन निष्ठा और अडिग आस्था मेरी, हर कामना मैं अब कामना मेरी
मुझे उस दिव्य प्रेम का एहसास करा दो तुम
मुझे भी साधना के पथ ..................................................................................................................
चित्त शुध्दि और आत्मा को कहाँ पवित्र कर पाई मैं, अपने जीवन में कर्तव्य- निष्ठा, सयंमशीलता ना ला पाई मैं
मेरे मस्तिष्क की हर बाधा हटा दो तुम
मुझे भी साधना के पथ..............................................................................................
तुम्हारे चरणों में मेरा जो ध्यान केन्द्रित होता है, मन का हर कोना दिव्य ज्योति से रोशन होता है
उस दिव्य -ज्योति को मन में हर पल बसा दो तुम
मुझे भी साधना के पथ ..........................................................................................................
मेरी वो दिव्य- ज्योति मेरी आराधना है , बस अभी यही मेरी साधना है
मेरी आराधना से साधना को मिला दो तुम
मुझे भी साधना के पथ................................................................................................
वाह, अध्यात्म के रंग में रंगी सब के लिए प्रेरक रचना के लिए बधाई किरण .....
ReplyDeleteमेरी आराधना से साधना को मिला दो तुम
ReplyDeletebahut sunder bhav ...samarpan ke ...
badhai is rachna ke liye ..
बहुत अच्छी अभिलाषा है आपकी।
ReplyDeleteबेहतरीन कविता।
सादर
बहुत सुन्दर अभिलाषा संजोये एक प्रेरक अभिव्यक्ति...
ReplyDeletebahut see sundar prasang....
ReplyDeleteदर्शन के रंग में रंगी खुबसूरत प्रस्तुति....
ReplyDeleteसादर बधाई...
behad khoobsoorat abhilasha jaroor poorna hogi jab itni shiddat se ki hai.
ReplyDeleteबहुत ही बढि़या ।
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक और सुन्दर रचना ...
ReplyDeletenice...
ReplyDeleteजीवन से भरी अभिलाषा....
ReplyDelete♥
ReplyDeleteआदरणीया डॉ.किरण मिश्र जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
मेरी वो दिव्य- ज्योति मेरी आराधना है ,
बस अभी यही मेरी साधना है
मेरी आराधना से साधना को मिला दो तुम
मुझे भी साधना के पथ पर चलना सिखा दो तुम ,
मेरे " मैं " को मेरे मन से हटा दो तुम
इंसान जब स्वतः ही यह सब कह रहा होता है तो स्पष्ट है कि उसने सही मार्ग को समझ लिया है , अपना लिया है …
ऐसे भाव मन की पावनता के प्रतीक होते हैं !
आध्यात्मिकता और दर्शन के रंग में रंगी सुंदर रचना के रसास्वादन का अवसर देने के लिए आभार !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत ही सार्थक और सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteगहन दार्शनिक अभिव्यक्ति
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