Wednesday, June 28, 2017

उनींदे समय में शब्द

इस उनींदे समय में
शब्द जाग रहे है
वो बना रहे है रास्ता
उन के विरुद्ध
जो जला कर देह को
सुर आत्मा से निकाल रहे है

वो ख़ामोश हो जाते है
उन चुप्पियों के विरुद्ध
जो उपजी है
गली गली होती हत्या के बाद

बहरूपिया होते है शब्द,
झूठ को लेकर
चढ़ाते है उस पर चमकदार मुलम्मा
फिर उसमें भरते है रंग , मन चाहा

शब्द अपने भीतर और भीतर से
कर रहे है विस्फोट
ताकि मुर्दे बाहर निकल लड़े
ज़मीन ,जंगल के लिए
फिर शब्द
ख़त्म करते है
महान सभ्यताओं , संस्कारों को

शब्द अब पैने है
समय को अपने भीतर छिपाये
वो उसे भेद रहे है
और भविष्य लहूलुहान पड़ा
आखिरी सांसे ले रहा है।

क्या शब्दों से मोर्चा संभव है ??

Thursday, June 8, 2017

अरदास

अरे सोये होते अगर
अदवायन खिंची खाट पर
तो पड़ते निशान
दिन और रात पर
देखते चीरते जब
अपना ही मन
तब आती आवाज
परतंत्र परतंत्र
दबाओ नहीं चिंगारियां
राख में उनकी
जो चल दिये दे के
स्वतंत्र स्वप्न
दया बाया छोड़
हाथ में हाथ दो
करो उदघोष
जनतंत्र, जनतंत्र।

#किरणमिश्रा

🙄खाते, खवाई, बीज ऋण
गये उनके साथ
अब नहीं कोई अरदास।

Thursday, June 1, 2017

भाग-1
सबसे अंधकार समय में 🇮🇳 (भाग-1) / किरण

तुम्हें समझना चाहिए था
लेकिन तुम नहीं समझे
और तोड़ बैठे
शब्दों को आवाज़ों में
विभिन्न आवाजो को तुमने सुना
फिर उन्हें जोड़ा
तुम्हें लगा
खून देकर तुम्हें आज़ादी मिल गई
इसलिए तुम आवाजों को जोड़ने का
कौशल दिखा सकते हो
और तुमने उस रात दिखाया
ये जागरूकता कौशल था
ध्वनि जागरूकता
तुमने ध्वनि का परावर्तन किया
लेकिन तुम भूल गये
सुपरनोवा समाज से
बच पाना इतना आसान नहीं
तुम नहीं बचे
तुम्हें बचना ही नहीं था
सदियों से नीव में दबे
तुम भूल गये थे
तुम्हारे वर्ग ने अपना खून दे
आज़ादी किसी और वर्ग को दी थी
जिन्होंने तुम्हारी सारी संभावनाओं को
बीच चौराह मार गिराया
लेकिन फिर भी तुमने बचा लिया
उन ध्वनि तरंगों को
जो किलोहार्ट्स पर न सही
हार्ट्स पर चली
तुम्हारे जाने के बाद,
हालांकि उन्हें चलना था
तुम्हारे रहते हुये
तुम जैसो के कारण
ध्वनि तरंगे अब
हो कर आज़ाद
कर रही है यात्रा आगे की।

#रवींद्ररिक्शाचालकदिल्ली