Wednesday, June 28, 2017

उनींदे समय में शब्द

इस उनींदे समय में
शब्द जाग रहे है
वो बना रहे है रास्ता
उन के विरुद्ध
जो जला कर देह को
सुर आत्मा से निकाल रहे है

वो ख़ामोश हो जाते है
उन चुप्पियों के विरुद्ध
जो उपजी है
गली गली होती हत्या के बाद

बहरूपिया होते है शब्द,
झूठ को लेकर
चढ़ाते है उस पर चमकदार मुलम्मा
फिर उसमें भरते है रंग , मन चाहा

शब्द अपने भीतर और भीतर से
कर रहे है विस्फोट
ताकि मुर्दे बाहर निकल लड़े
ज़मीन ,जंगल के लिए
फिर शब्द
ख़त्म करते है
महान सभ्यताओं , संस्कारों को

शब्द अब पैने है
समय को अपने भीतर छिपाये
वो उसे भेद रहे है
और भविष्य लहूलुहान पड़ा
आखिरी सांसे ले रहा है।

क्या शब्दों से मोर्चा संभव है ??

1 comment:

  1. शब्दों के रंग अनेक .... जोड़ते भी , तोड़ते भी | सुंदर लिखा

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