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Monday, September 17, 2018

उदगीथ 🌾🌾🌾

भूख के रूदन को
शांत कराती स्त्री रचती है गीत
और इस तरह
भूख के भय को करती है कम
उदगीथ, रचिता को अन्न से कर धन्य
चल पड़ता है
गुंजाते गूंजते
तमाम युद्धों, बर्बरता से
सभ्यताओं को सुरक्षित
बचाने के लिए

कंगूरे पर बंधा उदगीथ*
अब निश्चेष्ट है लेकिन निराश नहीं
वो तोड़ता है छंद ,ललकारता है कंगूरे को

सदियों से तपते सूर्य की किरणों को सहती
आंसुओ में भींगती नीव की ईंट को,
नमन कर बचा ले जाता है
सजीव और चेतन प्रसार जीवन तत्व को।
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*उपनिषद काल में अन्न प्राप्ति के लिए गये जाने वाला गीत उद का अर्थ था श्वास, गीत का अर्थ था वाक् और था का अर्थ था अन्न अथवा भोजन ।
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