Monday, November 14, 2022

भारतीय अनुभूति का प्राणतत्त्व -- प्राणवायु

नेशनल जियोग्राफिक की एक डॉक्यूमेंट्री देख कर उठी हूँ। चीन के प्रदुषण, भारत की घटती बारिश, मैक्सिको का जल संकट फ्लोरिडा अमेरिका के मौसम की विचित्रता और भी कुछ है लेकिन मैं घबरा कर अब भारत की राजधानी के राजपथ पर खड़ी हूँ भूलना चाहती देखा हुआ, जीवन को महसूस करना चाहती हूं। सांझ को विदा करना चाहती हूं सुबह का स्वागत करना चाहती हूं। 

लेकिन देखती हूँ धुंध में खोती जा रही हूँ हर तरफ धुँआ ही धुँआ, गैस चेम्बर में बदलता हुआ शहर की हालत देख जैसे ही गहरी सांस लेती हूँ तो तमाम जहरीले कणों व प्रदूषक गैसों का तमाम हिस्सा मन मस्तिष्क को जैसे हिला देता है। दिल मे गुबार होठों पर उदासी लिए मैं खोज रही हूँ उस जगह को जहां जाने पर सांसों को सुकून मिले दिल का गुबार निकले।
किसी शायर का शेर याद आता है कि

सांस लेता हूँ तो दम घुटता है
कितनी वे- दर्द हवा है।

ऐसा क्यों हुआ ???
कैसे हुआ ??
इस पर चिंतन करना बेमानी है। कैसे ठीक हो सिर्फ इस पर बात होनी चाहिए। इसलिए जान लेते है कि हमारी जान को जान आए वो चीज क्या है ? तो चलिए रूबरू होते है प्राणवायु से --

ऑक्सीजन या प्राणवायु या जारक रंगहीन, स्वादहीन तथा गंधहीन गैस है। यह एक रासायनिक तत्त्व है जिसके प्रारम्भिक अध्ययन में जे. प्रीस्टले और सी. डब्ल्यू . शेले ने महत्वपूर्ण कार्य किया है। प्रिस्टले ने मर्क्युरिक - ऑक्साइड को गर्म करके ऑक्सीजन गैस तैयार किया।एन्टोनी लौवोइजियर ने इस गैस के गुणों का वर्णन किया तथा इसका नाम ऑक्सीजन रखा, जिसका अर्थ है 'अम्ल उत्पादक' ।

ऑक्सीजन अपने प्रकार का एक अलग और महत्वपूर्ण तत्व माना जाता है वातावरण में पांचवा हिस्सा अक्सीजन का ही है अक्सीजन तकरीबन सभी तत्वों के साथ मेल कर सकती है संजीवों में ऑक्सीजन, हाइड्रोजन , कार्बन और अन्य के साथ मेल से रहती है मनुष्य के शरीर के भार का 2/3 हिस्सा पूर्णता ऑक्सीजन मिले तत्वों का ही है।

वैज्ञानिक व्याख्या है लेकिन इससे इतर प्राणवायु की विस्तृत व्याख्या हमारे ऋषियों ने की है प्राचीन ग्रंथ वेदों में। आइए जानते है जिसे हमारे ऋषि प्राणवायु कहते थे वो क्या है ? और कहाँ से गमन करती है ? 
प्राणवायु का मूल स्रोत सूर्य है, सूर्य से निःसृत ऑक्सीजन अर्थात प्राणतत्त्व समस्त विश्व को अनुप्राणित करता है। प्राणतत्त्व अति सूक्ष्म है। इसी का स्थूल रूप प्राणवायु है। प्राणों को स्थिर या संचालित रखने के इसी गुण के कारण ऑक्सीजन प्राणवायु कही जाती है।

क्या ऑक्सीजन के स्तर में वृद्वि ने प्राणियों के जीवन के विकास को बढ़ावा दिया है, या इसके विपरीत हुआ? यह एक बड़ा प्रश्न है जो जीवों के जीवन के लिए बेहद जरूरी है। यह मनुष्य के पशु- पक्षियों के कीट- पतंगों के इस पृथ्वी पर रहने रूपने की विकास यात्रा भी है।
नियोप्रोटेरोज़ोइक युग के दौरान ऑक्सीजन के स्तर में एक साधारण  वृद्धि के बजाय, वातावरण में ऑक्सीजन स्तर में काफी बदलाव आया है। दस लाख वर्षो में, ऑक्सीजन का स्तर 0•3 प्रतिशत रह गया है। वायुमंडलीय ऑक्सीजन का स्तर काम होना बेहद दुःखद है मनुष्य के लिए लेकिन डायनासोर जैसे जीवों के विलुप्त होने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।

पृथ्वी और प्राणी के लिए के लिए बेशक यह महत्वपूर्ण है कि ऑक्सीजन का स्तर बढ़ाने पर विचार हो। पृथ्वी और प्राणी पर यह केंद्रित दृष्टिकोण है।
पृथ्वी पर ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत एक प्रक्रिया के जरिए ही पैदा हुआ जिसे प्रकाश संश्लेषण कहा जाता है। यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा पौधे और सूक्ष्म जीव सूर्य के प्रकाश पानी और कार्बनडाइऑक्साइड का उपयोग शर्करा के रूप में ऑक्सीजन और ऊर्जा बनाने के लिए करते हैं।
वायुमंडल में उपस्थति ऑक्सीजन की 60 से 80 प्रतिशत तक आपूर्ति समुद्र में तैरने वाले छोटे हरे पौधे से होती है जिन्हें 'प्लवक' (फयटोटले कटान) कहा जाता है। शेष अपूर्ति जंगलो से होती है। विशेषकर अमेजन के विशाल एवं संघन वनों से जिन्हें "धरती का फेफड़ा" कहा जाता है। 

एक अध्ययन के अनुसार दुनिया में 03 खरब पेड़ है जो हर वर्ष 60 अरब टन ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। ऑक्सीजन के लिए पेड़ पौधों के निकट जाना कितना जरूरी है यह जितना जल्द आत्मकेंद्रित एवं भौतिकवादी इंसान समझेगा उतना ही अच्छा होगा।

वायु के महत्व को उल्लेखित करते हुए अथर्ववेद में कहा गया है कि वायु आकाशीय जल को सर्वत्र  पहुंचाने में सहायक होती है जिससे अन्नादि में समृद्वि आती है।
वेदों में वायु को सम्मान देते हुए कहा गया है कि वायु हमारी रक्षा करें
त्रायन्ता मस्तां गण:
अर्थात हे वायु हमारी रक्षा करो। प्रकृति में रहे असंतुलनों में वायु के रौद्र रूप जैसी आंधी तुफान से होने वाले नुकसान के प्रति वेदों में प्रार्थाना की गई है। कि हे वायु देवता हमारी प्रार्थना है कि आप हमेशा ही प्राणिमात्र के लिए अनुकूल रहें।
पञ्च वायु को पंच प्राणवायु के नाम से भी जाना जाता है। आकाशादि पञ्च महाभूतों के राजस अंश से समष्टि रूप में पंच वायु की उत्पत्ति होती।
एतत्प्रणादि पञ्च कमाकाशादिगतर जोडशोभ्ये मिलितेभ्य उत्पछते

जीव प्राणियों के शरीर मे विचरण करने वाली वायु ही पञ्च वायु है।
शरीर में प्राणादि पञ्च वायु के प्राण अदान, समान, त्यान और रसादि को प्रेरित करने वाली तथा सम्पूर्ण शरीर मे विचरण करने वाली त्यान वायु है। यह वायु स्वेद एवं रक्त का संचार करती है। इस वायु की पांच प्रकार की चेष्टाएं है-- 
१. प्रसारण
२.आकुंचन
३.विन्नमण
४.अन्नमन
५.तिथर्यम गमन
वायु को हम तीन तरह से समझ सकते है--
१. अधिभौतिक
२.आधिदैविक
३.आध्यात्मिक
आधिदैविक शब्द आधि उपसर्ग पूर्वक दिव धातु से निष्पन्न है। दिव का अर्थ है प्रकाशित करना या चमकना।
ऋग्वेद में वायु शब्द देवता का बोधक है। पाप विमोचक वायु समस्त पापों से मुक्ति दिलाने वाले है " विमुमुक्तमसमे।" ।
असीम शक्तियों के अधिवति होने के साथ- साथ वायु अमृत तुल्य भी है अतः वायु से प्रार्थना की गई है कि तुम्हारी जो आमरण की शक्ति है वह हमारे जीवन के लिए दो क्योंकि तुम हमारे पिता, भाई, और बन्धु हो। इस आमरण शक्ति के कारण ही तुम लोक कल्याणकारी कर्म में नियुक्त किये गये हो।
उपरोक्त बातों से हम समझ सकते है कि वेदों के ऋषि वायु के प्रति क्या अनुराग रखते थे असल मे उनकी यही संवेदनशीलता उन्हें न सिर्फ वायु जैसी जरूरी तत्व बल्कि सृष्टि के प्रत्येक तत्व के प्रति ग्रहणशील बनाती थी और ऐसा क्यों न हो क्योंकि पञ्च तत्व जीवनशक्ति, वाईटल फोर्स ही जीवन की सारी संभावनाओं को सम्भवन पर ले जाते है। इसलिए पञ्च तत्व प्राणऊर्जा है।

हे धावा पृथिवी, मधु मिमिक्षत्तम 

प्रकृति की सभी शक्तियां एक सुनिश्चित विधान में चलती है। ऋत नियमों से बड़ा कोई नही होता। वायु से आयु है। लेकिन दूषित वायु से आयु खोते हम जीवन- मरण के प्रश्न में उलझ गए है। 
विश्व का यह प्रश्न कितना जरूरी यह हम कोरोना काल मे देख चुके है। 
पूर्ण से पूर्ण को अगर घटा दिया जाए तब भी पूर्ण ही बचता है। यह प्राण को अगर समझना हो तो केवल आधात्म से ही समझा जा सकता है और प्राणवायु को भी। प्राण ब्रह्मांड का स्पंदन है। यह ब्रह्मांड ग्रहों व नक्षत्रों के माध्यम से सांस लेता है और मनुष्य भी अपनी सांसों के माध्यम से इस ब्रह्माण्ड से जुड़ा है प्राण के कारण ही जीव को प्राणी कहा जाता है और सांस को प्राणवायु।
जीवन नृत्य की शुरुआत क्या प्राणवायु बिना की जा सकती है। प्राण-वायु का संयोग जीवन और वियोग मृत्यु है। सघन वायु है तो गहन है जहां है तो अन्न है। शरीर के भिन्न अंगों में प्रवाहित पांच वायु का वर्णन चरक संहिता में आता है जो हमारे विनाश और विकास, सुख और दुख का भी कारण बनती है।
 
ऑक्सीजन का महत्व एवं उपयोग --
१.धातुओं को जोड़ने एवं तोड़ने के लिए ऑक्सीजन का उपयोग किया जाता है।
२.ऑक्सीजन जल में घुलनशील होती है जो श्वसन के लिए उपयोगी है।
३. वो लोग जो पर्वतारोही होते है वो अथवा अधिक ऊंचाई पर उड़ान में  सिलेंडर का उपयोग किया जाता है।
४.रॉकेट ईंधन में द्रवित ऑक्सीजन का उपयोग किया जाता है।
५.सल्फर से सल्फ्यूरिक अम्ल व अमोनिया से नाइट्रिक अम्ल के उत्पादन में ऑक्सीजन का उपयोग किया जाता है।
६. वैल्डिंग के लिए प्रयुक्त की जाने वाली ऑक्सी-- एसिटिलीन में भी ऑक्सीजन का प्रयोग होता है।
७.सल्फर से सल्फ्यूरिक अम्ल व अमोनिया से नाइट्रिक अम्ल के उत्पादन में ऑक्सीजन का उपयोग किया जाता है।

इन उपयोग से भी बढ़कर ऑक्सीजन का उपयोग प्राणों को संजोने के लिए किया जाता है । जीवों की उत्पत्ति उनके जीवित रहने के लिए इस प्राणवायु का होना कितना जरूरी है यह बताने की जरूरत नही। अब जबकि हम प्राकृतिक युग से निकल कर भौतिकयुग में भटक रहे है और कोरोना जैसी महामारी से दो- चार हो चुके है तो हमें यह समझ लेना चाहिए कि माशूका की सांसों की खुशबू के आगे की महत्वपूर्ण चीज है ऑक्सीजन या प्राणवायु सभी प्राणियों का जीवन है इसलिए शेर सिर्फ सांसों तक नही जीवन की आस तक हो, नही तो जीवन नृत्य की शुरुआत, शुरुआत होने से पहले ही खत्म हो जाएगी।

 वो कहा गया है न कि -
पहली साँस पे मैं रोया या आख़िरी साँस पे दुनिया
इन साँसों के बीच मे हम ने क्या खोया क्या पाया।

मनुष्य प्रकृति का योग है। शरीर प्रकृति की शक्तियों से ही निर्मित है। शरीर को त्यागकर प्राणवायु सूत्रात्मा को प्राप्त होने की चाहत भारतीय मरणोन्मुख साधक की प्रार्थना है लेकिन जीवन से मृत्यु के बीच जो हम ठहरे रहते है उसके लिए प्रार्थना ऐसी हो जिसमें पांच तत्वों का सर्जन होता रहे क्योकि इन तत्वों का विसर्जन प्रत्यक्ष मृत्यु है। मृत्यु के बाद प्राण वायु से जा मिलते है लेकिन उससे पहले जीवन की बात करें ,वायु से ही हम तक प्राण आते है तो यह जरूरी हो जाता है कि वायु शुद्ध हो।

जीवन उत्सव को कायम रखने के लिए यह जरूरी है कि शरीर मे वायु की उपस्थिति शुद्ध हो सही मात्रा में हो। प्राण मूल शक्ति है उनकी शक्ति वायु है। प्रकृति से सतत सृजन इन से ही चलता है। ऋग्वेद में सृष्टि सृजन के पहले देवता नही है लेकिन प्राण है। ऋषि कहते है दिन - रात भी नही है, लेकिन साँस है मतलब वायु है।

अनादीवातं स्वधया...
दो तरह की वायु हमारे पास है एक मनुष्य के शरीर को संचालित करने वाली और दूसरी अनिल सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त वायु। हमारी वायु जब अनिल से मिलती है तो हम जीवन- मरण के चक्र से झुटते है। यद्यपि जीवधारी में विद्यमान वायु सम्पूर्ण प्रकृति की वायु से भिन्न नहीं है लेकिन जीवधारी में विद्यमान वायु शरीर बन्धन में है और प्रकृति में सब तरफ उपस्थित वायु सर्वव्यापी है। यह और कुछ नही अनुभूत प्राण है। प्राणियों को पुनर्नवा प्राण शक्ति देते है और जगत का प्राण समृद्ध होता है। मनुष्य के भीतर की वायु को प्राण, अपन, समान,व्यान और उदान कहा गया है। यह एक प्राण ही पाँच रूप में कहा जाता है।
मनुष्य में प्राण है इसलिए वह प्राणी है । सारी शक्तियां प्राणवायु के कारण ही किसी न किसी रूप में बनी रहती है।हमारा लेहकन महकना प्राणवायु की देन है। यह ऐसा देव है जो अंधविश्वास नहीं प्रत्यक्ष अनुभूती है।

प्राण अग्नि है, यही सूर्य है ,यही पर्जन्य- वर्ष्या के मेघ है और यही वायु भी है। प्राणवायु को अनेक आयामों में हमें देखना चाहिए अंतर्जगत का भाव बनाना ध्यान देने योग्य है।
भारती ऋषि तभी तो बारम्बार 'नमस्ते वयो, त्वमेव प्रत्यक्ष ब्रहमासि, त्वामेव प्रत्यक्ष ब्रहा वदिष्यामि।' कहते नही थकते। वो इसे सर्वशक्तिमान यूँ ही तो नहीं बताते।क्या अब भी आप कहेंगे भारतीय अनुभूति का ब्रह्म अंध आस्था है ? मैं कहूंगी यह प्रत्यक्ष है।

मानव की प्रथम ध्वनि बनी रहे, जीवन उत्सव यूँ ही चलता रहे, साँस, साँस ॐ का उदघोष होता रहे। मानव जाग्रत बना रहे पंच तत्वों के प्रति, पंचघा स्वरूपों में प्राण जगत से सम्बद्ध रहे । यही हमारी सयुक्त प्रार्थना हो। यही शिव संकल्प है--
तन्मे मन: शिव संकल्पमस्तु ।













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