परिपथ से राजपथ तक
संवेदना दिखाई पड़ती है
किसी मचलती तारिका की तरह
अपनी अदाओं से
उत्तेजना फैलाती
तूफान खड़ा कर देती है
संवेदना जो पूरी तरह बदल गई है वेश्या में
लगाती है अपनी कीमत
त्रिवर्ग की सिद्धि में लगे लोग
बोली लगा खरीदते है
और संवेदना चल देती है उनके साथ
दुकान चमकाने
घटना हतप्रभ हो देखती है तमाशा
उसकी चीड़ फाड़ में लगा समाज
संवेदना पर लिखता है इतिहास
विशेष बन संवेदना
इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज होती है
बिछती है नेता,अभिनेता,कवि,कलाकार
के बिस्तर पर
रुपजीवा की भाती बिस्तर बदलती ये
पूरे करती है मनोरथ
घटना किसी अंधेरे कोने में
मुंह छिपाये सुबकती है
संवेदना पण्यस्त्री बन
बैठ जाती है फिर बाज़ार में
संवेदना दिखाई पड़ती है
किसी मचलती तारिका की तरह
अपनी अदाओं से
उत्तेजना फैलाती
तूफान खड़ा कर देती है
संवेदना जो पूरी तरह बदल गई है वेश्या में
लगाती है अपनी कीमत
त्रिवर्ग की सिद्धि में लगे लोग
बोली लगा खरीदते है
और संवेदना चल देती है उनके साथ
दुकान चमकाने
घटना हतप्रभ हो देखती है तमाशा
उसकी चीड़ फाड़ में लगा समाज
संवेदना पर लिखता है इतिहास
विशेष बन संवेदना
इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज होती है
बिछती है नेता,अभिनेता,कवि,कलाकार
के बिस्तर पर
रुपजीवा की भाती बिस्तर बदलती ये
पूरे करती है मनोरथ
घटना किसी अंधेरे कोने में
मुंह छिपाये सुबकती है
संवेदना पण्यस्त्री बन
बैठ जाती है फिर बाज़ार में