पतंग की डोर
और फेक कर कंचे
रख दिये कुछ निशान गाँठों की शक्ल में,
खेल के मैदान से दूर तुम अब कैद हो
अब नहीं सुनाई देते
तुम्हें स्कूल के घंटे
बस सुनाई देती है सायरन की आवाज
जो तुम्हारे दिमाग की अंधेरी गुहा में
फोड़ा बन तुम्हें टीसता है
यातना का सांघातिक प्रभाव
लेकर अपने मन में
तुम अपने आप से भी बोलते नहीं
तुम्हारा दुःख अब तुम्हारी भाषा है
और तुम्हारी देह जिह्वा है
तुम्हारी ढेर सारी जिज्ञासा
तुम्हारे हथोड़े के नीचे दम तोड़ गई है
और तुम्हारा हँसना तुम्हारे पिता की बोतल में कैद,
तुम्हारे हाथ पकड़ना चाहता है बचपन
लेकिन हर बार
काम से अटे होते है हाथ
आँखे देखना चाहती है
रंग-बिरंगे सपने
पर थकान से बोझिल होती है,
धीरे-धीरे
तुम्हारे सपने को ले
उदास निराश बचपन
समा जाता है
एक और अंधेरी गली में
जहां दिनों दिन
दिन के उजाले में
तुम
थामे बैठे हो अंधेरे का हाथ
खांसते खखारते तुम
अपनी आंखो पर फेरते हो हाथ
छूना चाहते हो अपने फूले हुये गाल
पर वो अब
हड्डियों की शक्ल में
यम को न्योता दे रहे है,
अब तुम्हारी आँखों में हर चीज
धुंधली हो रही है
तुम नींद के मुहाने पर खड़े
अपनी शिथिल देह को देख रहे हो
सो जाओ बचपन
तुम मुक्त हो
हर मजदूरी से
हर मजबूरी से
कभी न जगाने के लिए
सो जाओ
तुम्हारे सारे सपने
मैं तुम्हारे साथ विसर्जित करती हूँ
इस अंधे युग की हर पीढ़ा से
हो कर मुक्त चैन से सो जाओ।