Friday, September 7, 2012

मेघ अब दूत नही












उस भीगी रात मे
बादल से मैने कहा
इस बार मेरा एक काम कर दे
प्यार की महफिल मे
मेरा भी नाम कर दे
मेरा  भी एक पैगाम पहुंचा दे
इस भीगी रात मे  उन्हे मेरे पास बुला दे
कुछ देर उलझन मे ठहरा बादल
फिर ठुमक कर बोला,
ना वो यक्ष है ना तुम यक्षिणी
तुम्हारा पैगाम तुम्हारे प्रिय तक
क्यो पहुचाऊँ
उनको तुमसे क्यो मिलवाऊँ
तुम लोगो ने इन हवाओ मे जहर घोला
मै कभी पानी का था आज धुयें  का गोला
अब मै ना किसी का सन्देश ले जाऊंगा
ना किसी  यक्षिणी का डाकिया कहलाऊंगा


Sunday, August 26, 2012

जिन्दगी अनसुलझे प्रश्न सी उलझे से उत्तर सी













ज़िन्दगी एक सोपान और कुछ नियति सी,
कुछ अनसुलझे प्रशन सी
कुछ उलझे से उत्तर सी.
ज़िंदगी एक गहरी उदासी सी,
और निरूद्देश जीवन भी
कभी सागर सी
कभी छोटे झरने सी.
जिन्दगी कभी माँ की ममता सी
कभी दुश्मन की नफरत सी,
कुछ गहरी शांति सी
कुछ प्रेम की पुण्यता सी.
कुछ यादो की गठरिया सी
कुछ वादों की पोटली सी,
कुछ स्नेह की सैगातो सी
कुछ परम्परागत संस्कारो सी.
जिन्दगी कुछ दादी के किस्सों सी,
कुछ माँ की लोरी सी,
कुछ पापा की डाट सी
कुछ दादा के प्यार सी .
कुछ रुकती सांसो सी,
कुछ सांसो की सरगम सी.
जिन्दगी कुछ रंगहीन पतझड़ सी 
कुछ रंगीन बसंत सी, 
कुछ ठंडी बर्फ सी 
कुछ गर्म होती जेठ सी.
जिन्दगी कभी सच्चे सपनो सी,
कभी टूटते सपनो सी,
कुछ गहरी संतुष्टि सी 
कुछ गहरी असंतुष्टि सी. 
जिन्दगी को हमने  देखा 
कितने ही रंगो में कितने ही रूपो में , 
फिर भी ना समझे फिर भी ना जाने क्यों ............
क्योकि जिन्दगी अनसुलझे प्रश्न सी उलझे से उत्तर सी

Monday, March 26, 2012

खामोश यादे

मेरी सोती हुई आँखों में जगते हुए तुम ,
 मेरे ख्वाबों में रोज ही चले आते हो .

हर आहट, हर खुशबू, हर खबर में तुम ,
यादो के तसव्वुर से जाते न हो .

मेरी खामोशी में हरसिंगार से झरते तुम ,
मेरे वजूद में क्यों छ  जाते हो .

कैसे लब खोलू क्या कहूं उनसे ,
ये मन तुम क्यों नही समझ पते हो .


बस ठहर , रूक जा ये मन ,
बार- बार तुम क्यों बहक जाते हो .

सुन मन तू सूखा है , तू सूखा ही रह ,
उनसे मिल के क्यों महक जाते हो .
खामोश यादे

Tuesday, February 21, 2012

अनंत की यात्रा

कुछ यात्राये , यात्राये ना होकर ज़िंदगी का अर्थ तलाश लेती है कोई शंका नही सम्पूर्ण  समर्पण अपने आप में मुकम्मल होने का एहसास। यात्रा ज्ञान भी है, विश्वास और आस्था का सबब भी. में ऐसी यात्रा की बात कर रही हूँ जिसने मेरे चेतन और अवचेतन मन को एक कर दिया। वो यात्रा मेरे पलकों पर अभी तक जमी है. कहा से शुरू करू अपनी यात्रा की कहानी का सफर ऐसी यात्रा जिसकी मंजिल  न  जाने कहा ले जायेगी. बांदा जिले की केन नदि के किनारे चलते चले जाये तो एक छोटा सा गाँव है पडेरी, मेरी यात्रा बस कानपुर से वह तक की थी।छोटा सा गाँव पडेरी गाँव के बाहरी क्षेत्र में बनी बैकल बाबा की समाधी और उसके आस- पास का क्षेत्र ऐसा लगताहै कि स्रष्टि का संचालन करने वाले ने प्राक्रतिक नियमो का अद्र्ष्ट रूप में मगर बड़े व्यवस्थित  और स्वभाविक तौर पर स्रजनात्मक गुणों के साथ नियमित संचालन बाबा के माध्यम  से किया है।
लाखो लोगो की तरह सनातन प्रश्न जो मेरे मन में सदा से था ईश्वर क्या है ? वह जाकर लगा जर्रे - जर्रे में है भगवान .आप कहेगे मैंने ही उस अनुभूती को वह महसूस किया ऐसा नही उस जगह की खास बात तो यही है की वो जगह सभी को अपने भीतर डुबकी लगाने पर मजबूर कर देगी . न कोई भाषा न कोई शब्द सिर्फ और सिर्फ चेतना का उस स्तर तक अपने आप उठ जाना जिसे आप अनुभूति कहते है न प्रश्न उठता है कौन हूँ में न अपना अस्तित्व सब शून्य शांत बस तब एक अनुभूति यही अनुभूति उस यात्रा को सुखद व अलग बनाती है . हम विज्ञानं की भाषा में बोले तो असख्य प्राक्रतिक नियम स्वत: स्फूर्त तौर पर अपनी अपार स्रजनात्मकता के साथ विद्यमान है वो प्राक्रतिक वातावरण आप के अन्दर आपकी चेतना में अपार स्रजनात्मक गुण भर देता है आप यात्रा करते हुए ध्यान में चले जाते है और जाग्रत अवस्था में करने लगते है अनंत से अनंत की यात्रा . है न अन्य यात्राओ से अलग मेरी ये यात्रा . जब  भी जीवन में बदलाव की जरुरत महसूस   हो इस यात्रा को करे जीवन का सच अपने पुरे रूप के साथ आपके सामने होगा ......... आमीन