Showing posts with label आदमी. Show all posts
Showing posts with label आदमी. Show all posts

Monday, September 28, 2015

मशीन से आदमी

आधी रात को तुम 
थके अनमने से 
लौटते हो घर को 
कहीं कोई आँखे 
राह पर तुम्हारी टिकी है 
तुम्हारे एक एक पग के साथ चलती
तुम्हारे रस्ते को बुहारती
तुम्हें निहारती,
दूर कहीं वंशी की धुन
भंग कर देती है तुम्हारी तंद्रा
और तुम निकल आते हो
अपनी रोज रोज की जद्दोजहद से
देखते हो बुहारे रास्ते को
सोचते हो निहारती आँखों को
फिर भर लेते हो
वंशी के सातो सुर
ह्र्दय में अपने
और बन जाते हो
मशीन से फिर आदमी