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Sunday, August 27, 2017

स्त्री स्वर्ग का फाटक

पीड़ा की नीव में दबी वासना सुखी हो उठी
जब जब स्त्री कराही ,चिल्लाई
और इस तरह बर्बर दंड ने जन्म लिया इस पृथ्वी पर
हर कराहने के बाद शिकारी बढते गए
पहला शिकारी कोई आदि अमानुष था

ढेंकुल ने मधुर वचनों के दंड में फरेब घोला
प्रेम की रस्सी से वासना का कुंड भरा
कुइयां अब रीती थी
ये बुद्धिजीवी थे

धर्म की कृपालु आत्माओं ने कहा
स्त्री तेरे शरीर में स्वर्ग का फाटक है
हम उसे स्वर्ग की कुंजी से बंद करेंगे
तब वो विभिन्न धर्मों के साथ
स्वर्ग की कुंजी से ताले जड़ते गये
ये धर्म के ठेकेदार थे

वेश्यालयों की दीवारें धर्म के पत्थरों से सजी थी
मंदिर अक्षत योनि से
फिर सारे बर्बर दंड
कराहने ,चिल्लाने से निकल कर
फैल गये धर्म ग्रंथों तक

कारागार खड़े हुए न्याय की नींव पर
सारी निर्दयता का अंत
स्त्री की जांघ पर जा बैठा
अब स्त्री की उतनी ही जरुरत थी
जितनी खाट की ,सवारी की, छत की।

स्त्री अब कोई चीज बड़ी है मस्त मस्त थी।