Thursday, February 23, 2017

शिव बिन शक्ति शव

हर धुन, हर गंध, हर ताल
हर सुर, हर सत्य, हर सुन्दरता
शिव तुम हो
तुम्हारे रसतत्व में
तत्व की शक्ति
तो शक्ति है
हैं न शिव
नहीं तो तुम शव हो
लेकिन शक्ति के छंद में दर्द
तो वो क्या करे
अपने आंसुओं से
निकाल जल तत्व
क्या स्थापित करे
अपने अन्दर वो उर्जा
जो आज तक पुरुष को देती आई।

Tuesday, February 21, 2017

हम


जीवन
नयन, मन तार
बज उठा सितार
लीन हुई मैं
तुम में।

अंग सिहरन
रहस्मय गति
तुम सत्य ज्ञान
मैं जड़ सी पड़ी।

सात लोक
सात स्वर
सप्तसदी
बिन तुम्हारे
मैं शून्य हो खडी।

अभिमान, स्वाभिमान हुए आलिंगित तब सभ्यता हुई नूतन

Monday, February 20, 2017

वसंत के बहाने

हर काबिल हर कातिल तक अपनी महक अपना हरापन फैलाते वसंत स्वागत है तुम्हारा....

मधुमास लिखी धरती पर देख रही हूँ एक कवि बो रहा है सपनों के बीज । किसके सपने है महाकवि मैं पूछती हूं और ग्रीक देवता नहीं अपोलो नहीं.. बोल पड़ा चतुरी चमार । ये कैसा मेल महाप्राण ? कोई मेल नहीं कोई समानता नहीं लेकिन साथ-साथ जैसे पतझर के साथ वसंत।
मैं स्तब्ध !!
लाल रेखाओं से पूर्ण समस्त मानव समाज में फैले हुई रुढियों को तोड़ते नेत्र जो वसंत की दस्तक से बेखबर चला जा रहा है विवाद और विकास के द्वंद्व में घिरे कालखंड की तरफ । क्या ये छायावाद है?
किसने भेजा है उसे बोलो कवि यूं ही नहीं इस धरा पर में शिक्षा देने चली आई चले तो शिवमंगल सिंह सुमन जैसे कवि भी आए थे । हर कोई चला आता है तुम्हें खोजता इस धरा पर आज भी तुम्हारी पगध्वनि सुनाई देती है और सुनाई देता है मनोहरा का
श्री रामचंद कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणं... राम अर्चन उनके कंठ से फूट रहा है और फूट रही है रुलाई मेरी कंठ से आँखे बहा ले जा रही है मेरे अहंकार को मेरी श्रेष्ठा को तभी मनोहरा देवी का स्पर्श मेरे कंधे पर होता है मुक्त हो किरण इन झूठे राग से और मैं कॉलेज प्रांगण में खड़ी उनकी प्रतिमा के आगे नत हूं।
निराला गा रहे है
छल-छल हो गए नयन, कुछ बूंद पुन: ढलके दृग जल, रुक कंठ!!
जा रही हूं महाकवि नौकरी का बोझ अब सह नहीं जाता दस साल बिताये उन क्षणों में अगर आप न होते तो कैसे समझ पाती वसंत में पतझड़ मिला होता है। कहाँ समझ पाती कविता स्त्री की सुकुमारता नहीं, कवितत्व का पुरुष गर्व है।
कहाँ उतार पाती मन का अनकहा कहाँ कर पाती कागज की धरती को धानी कहाँ समझ पाती रिश्तों को जिन्होंने कच्चे सूत से आप को भी बांध लिया था।
नमन तुम्हें मनोहरा
अब चाहे तर्कों के बुने हुए जाल
विरोध का झेलूं भाल स्नेह का नहीं मिले प्रतिदान चाहे भुला दे मुझे जीवन मनोहरा के समान फिर भी शूलों के रवि पथ पर चलती जाउंगी उनके लिए जिनके लिए वसंत पतझड़ में भेद नहीं...छिना हुआ धन, जिससे आधे नहीं वसन तन, आग तापकर पार कर रहे है गृहजीवन।
बांधो न नाव इस ठांव बंधु.

दस साल डलमऊ के पास बिताए कॉलेज में रहते हुये कुछ सुनी कुछ पढ़ी बातों पर आधारित संस्मरण।


Sunday, February 19, 2017

सुप्रीम मिस्ट्रेट ऑफ़ द यूनिवार्स

सिबल ऑफ़ द लिवरेटिंग पॉवर्स ऑफ़ फीमेल सेक्सुअलिटी ! सुप्रीम मिस्ट्रेट ऑफ़ द यूनिवार्स ।
मृत्युजयी निरावरण श्यामवर्ण काली, कालजयी आदि शक्ति जिसके अस्तित्व से जन्मी है प्रलय क्योंकि उस शक्ति ने साधा है काल को और उसे सहा भी है। विरोध स्वरुप जिसका जन्म हुआ हो उसे काल की क्या चिंता वो तो उसके आगे असहाय है।
संयुक्ति से जन्मे त्रिकाल सत्य, शिव सुंदर होता है बिना शक्ति शिव शव है दोनों का मिलन ही अद्धैत की आत्मा है।
स्त्री सदा से प्रेममय है काल से मुक्त पर पुरुष
 ने अपनी रोपित अकांक्षाओ से उसे तोड़ दिया है उसके भीतर की शक्ति असहाय हो या तो ख़त्म हो रही है या विध्वंस करने को बाध्य हो रही है। नकली जिन्दगी जीती स्त्री मानवीय संवेदना खो रही है।
सहअस्तित्व से संसार चक्र चलेगा लेकिन उससे पहले स्त्री को प्रेम में रहने देना होगा क्योंकि उसका प्रेम और उसका  खुद से समर्पण ही उसकी स्वाधीनता है अगर आदिकालीन स्वभाव व स्वरुप नष्ट कर दिये जाएंगे तो आदते नए अधिकार पाने की चेष्टा करेंगी जो शायद मानवता के लिए स्रष्टि के लिए ठीक नहीं होगा ।
उसे सजग और निर्दोष रहने दो ।समय से मुक्ति के लिय जरुरी है  बेशर्त प्रेम में होना। शिव की उर्जा को धारण करने वाली शक्ति ही है हमें इसे नहीं भूलना चाहिये।