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Friday, October 23, 2015

बीते पल राहगुजर

अक्टूबर का माह मुझे कोमल सा लगता है.इस माह में ठंड धीरे- धीरे दस्तक देती है .किसी का हौले-हौले यू आना कितना सुकून देता है . संधि के बाद का मिलन हमेशा सुखद होता है वो फिर ऋतू- संधि ही क्यों न हो .ये महिना मुझे ऐसा लगता है मनो अलाप ले रहा हो धूप का, बदली हुई हवा का उत्सव का और दस्तक देता है वर्ष के जाने का मनो अपने विगत होने का जश्न मना रहा हो .....वैसे ही जैसे कितने ही लम्हें विगत होते है .वक्त की ठहरी परछाइयां को हटाकर आओ आशाओं की रहा पर निकल जाए ऐसा ही कुछ कहता है ये माह, पर हैं इतना याद रखना बीते बरस की सुखद स्मृतियों को तह कर के रखना है...... क्यों ?
अरे ये बीते पल ही तो राहगुजर है आने वाले पल के........