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Friday, December 15, 2017

बोलो पद्मावती

पद्मावती
इतिहास की वीथिका में भटकती
क्या सोच रही हो ,खिलजी चला गया ?

देह की राख से शांति के महल मत बनाओ
ठुड्डी पर बने तुम्हारे तिल की चाहत लिए
लौटता आदमखोर बांट रहा है
बाल मन को आदम वासना के विचार

अब वो
जिंदगी के गुजरते कारवां में
मौत के हरकारा बन
घर के आँगन में , आँगन के बहार
अकसर नज़र आता है,
मासूम चीखों के अशुभ पैगाम लेकर

यौवन की उछलती गलियों में
मौत की ठिठोली अब भी वैसी ही चल रही है पद्मावती
कुछ दर्द बिना नाम बिना संदर्भ के इतिहास में
कुछ नियति के तराजू के पलड़े पर झूलते
तो कुछ मुट्ठी भर राख बन न्याय मांगते दिख जाते है

रानी शायद तुम्हारा सोचना सच होता
अगर प्रतिरोध का तरीका कुछ और होता
शायद..
वेदना का अन्त: पक्ष ज्यादा पेचीदा होता है
वेदना के सामाजिक पक्ष की तुलना में
निर्दयी खिलजी परम्परा के अंत का मार्ग जौहर नहीं साका  है रानी

बचने की अनंत चेष्टाओं का अंत सिर्फ देह का परित्याग नहीं
देह की राख झाड़ कर
आओ पद्मावती
कामी सुलतानों को दंड देना है
देखो स्त्रियाँ खप्पर लिया चली आ  रही है।
कारवां बनने को है।
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#डॉकिरणमिश्रा

शाका : महिलाओं को अपनी आंखों के आगे जौहर की ज्वाला में कूदते देख पुरूष दुश्मन सेना पर आत्मघाती हमला कर इस निश्चय के साथ रणक्षेत्र में उतर पड़ते थे कि या तो विजयी होकर लोटेंगे अन्यथा विजय की कामना हृदय में लिए अन्तिम दम तक शौर्यपूर्ण युद्ध करते हुए दुश्मन सेना का ज्यादा से ज्यादा नाश करते हुए रणभूमि में चिरनिंद्रा में शयन करेंगे | पुरुषों का यह आत्मघाती कदम शाका के नाम से विख्यात हुआ |
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