Tuesday, January 30, 2018

घनघोर अंधेरे में

घनघोर अंधेरे में जो दिखती है,
वो उम्मीद है जीवन की

हिंसक आस्थाओं के दौर में प्रार्थनाएं डूब रही है
अन्धकार के शब्द कुत्तों की तरह गुर्राते
भेड़ियों की तरह झपट रहे है
उनकी लार से बहते शब्द
लोग बटोर रहे है उगलने को

जर्जर जीवन के पथ पर पीड़ा के यात्री
टिमटिमाती उम्मीद को देखते है
सौहार्द्र के स्तंभ से क्या कभी किरणें फूटेंगी

उधेड़बुन में फँसा बचपन
अँधेरे  की चौखट पर ठिठका अपनी उँगली से
मद्धिम आलोक का वृत खींचना चाहता है

एक कवि समय की नदी में
कलम का दिया बना कविताओं का दीपदान कर रहा है।
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#यहदेशहैवीरजवानोंका
कैसे -कैसे सपन सँजोय,
टुकड़ा-टुकड़ा गगन समोय।

Saturday, January 27, 2018

सागर लहरी सा प्रेम

ले चल मुझे भुलावा दे कर मेरे नाविक धीरे-धीरे
जिस निर्जन में सागर लहरी, अम्बर के कानों में गहरी
निश्चल प्रेम कथा कहती हो तज कोलाहल की अवनि रे”
( जयशंकर प्रसाद) कभी कभी नाविक अकेला ही सागर पार किसी अनजाने गांव का दरवाजा खटखटा देता है💕❤🍁

किसी अनजाने गाँव में
अनजाने घर की कभी न कभी
सांकल खटकती ही है
खिड़की खुलती है तो शुरू होती है 
दास्ताने उल्फ़त
आँखों एहसास करती है दिल एतबार करता है
फिर दोनों का
न होने से टकराता है
शायद रूह ने साथ छोड़ा है जिस्म का
शुरू होता है रतजगा
ठिठुरी लम्बी रातों का
कहानी आगे बड़ती है
एक तारे की सिसकी 
ध्यान की कश्ती से दरिया पार करती है
उल्फ़त के तराने गूंजते है
साहिबान की दास्तान
अंगड़ाई लेती है 
चनाब से गंगा तक
फूलता है झरता है
महुआ घटवारिन के 
किस्से सा प्रेम
सदियों से बहता है।
💗💕

💟प्रेम आदि न अंत ,हज़ारों ख़्वाहिशें पे दम ।