घनघोर अंधेरे में जो दिखती है,
वो उम्मीद है जीवन की
हिंसक आस्थाओं के दौर में प्रार्थनाएं डूब रही है
अन्धकार के शब्द कुत्तों की तरह गुर्राते
भेड़ियों की तरह झपट रहे है
उनकी लार से बहते शब्द
लोग बटोर रहे है उगलने को
जर्जर जीवन के पथ पर पीड़ा के यात्री
टिमटिमाती उम्मीद को देखते है
सौहार्द्र के स्तंभ से क्या कभी किरणें फूटेंगी
उधेड़बुन में फँसा बचपन
अँधेरे की चौखट पर ठिठका अपनी उँगली से
मद्धिम आलोक का वृत खींचना चाहता है
एक कवि समय की नदी में
कलम का दिया बना कविताओं का दीपदान कर रहा है।
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#यहदेशहैवीरजवानोंका
कैसे -कैसे सपन सँजोय,
टुकड़ा-टुकड़ा गगन समोय।
वो उम्मीद है जीवन की
हिंसक आस्थाओं के दौर में प्रार्थनाएं डूब रही है
अन्धकार के शब्द कुत्तों की तरह गुर्राते
भेड़ियों की तरह झपट रहे है
उनकी लार से बहते शब्द
लोग बटोर रहे है उगलने को
जर्जर जीवन के पथ पर पीड़ा के यात्री
टिमटिमाती उम्मीद को देखते है
सौहार्द्र के स्तंभ से क्या कभी किरणें फूटेंगी
उधेड़बुन में फँसा बचपन
अँधेरे की चौखट पर ठिठका अपनी उँगली से
मद्धिम आलोक का वृत खींचना चाहता है
एक कवि समय की नदी में
कलम का दिया बना कविताओं का दीपदान कर रहा है।
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#यहदेशहैवीरजवानोंका
कैसे -कैसे सपन सँजोय,
टुकड़ा-टुकड़ा गगन समोय।