Tuesday, February 21, 2012

अनंत की यात्रा

कुछ यात्राये , यात्राये ना होकर ज़िंदगी का अर्थ तलाश लेती है कोई शंका नही सम्पूर्ण  समर्पण अपने आप में मुकम्मल होने का एहसास। यात्रा ज्ञान भी है, विश्वास और आस्था का सबब भी. में ऐसी यात्रा की बात कर रही हूँ जिसने मेरे चेतन और अवचेतन मन को एक कर दिया। वो यात्रा मेरे पलकों पर अभी तक जमी है. कहा से शुरू करू अपनी यात्रा की कहानी का सफर ऐसी यात्रा जिसकी मंजिल  न  जाने कहा ले जायेगी. बांदा जिले की केन नदि के किनारे चलते चले जाये तो एक छोटा सा गाँव है पडेरी, मेरी यात्रा बस कानपुर से वह तक की थी।छोटा सा गाँव पडेरी गाँव के बाहरी क्षेत्र में बनी बैकल बाबा की समाधी और उसके आस- पास का क्षेत्र ऐसा लगताहै कि स्रष्टि का संचालन करने वाले ने प्राक्रतिक नियमो का अद्र्ष्ट रूप में मगर बड़े व्यवस्थित  और स्वभाविक तौर पर स्रजनात्मक गुणों के साथ नियमित संचालन बाबा के माध्यम  से किया है।
लाखो लोगो की तरह सनातन प्रश्न जो मेरे मन में सदा से था ईश्वर क्या है ? वह जाकर लगा जर्रे - जर्रे में है भगवान .आप कहेगे मैंने ही उस अनुभूती को वह महसूस किया ऐसा नही उस जगह की खास बात तो यही है की वो जगह सभी को अपने भीतर डुबकी लगाने पर मजबूर कर देगी . न कोई भाषा न कोई शब्द सिर्फ और सिर्फ चेतना का उस स्तर तक अपने आप उठ जाना जिसे आप अनुभूति कहते है न प्रश्न उठता है कौन हूँ में न अपना अस्तित्व सब शून्य शांत बस तब एक अनुभूति यही अनुभूति उस यात्रा को सुखद व अलग बनाती है . हम विज्ञानं की भाषा में बोले तो असख्य प्राक्रतिक नियम स्वत: स्फूर्त तौर पर अपनी अपार स्रजनात्मकता के साथ विद्यमान है वो प्राक्रतिक वातावरण आप के अन्दर आपकी चेतना में अपार स्रजनात्मक गुण भर देता है आप यात्रा करते हुए ध्यान में चले जाते है और जाग्रत अवस्था में करने लगते है अनंत से अनंत की यात्रा . है न अन्य यात्राओ से अलग मेरी ये यात्रा . जब  भी जीवन में बदलाव की जरुरत महसूस   हो इस यात्रा को करे जीवन का सच अपने पुरे रूप के साथ आपके सामने होगा ......... आमीन