Wednesday, February 17, 2016

वसुधैव कुटुम्बकम

अंधेरे तुम कितने खूबसूरत हो
जो आशा देते हो उजाले की
रास्ते तुम कितने सच्चे हो
जो मंजिल देते लक्ष्य की
पहाड़ तुम कितने दयावान
जो ऊंचे हो कर भी सुरक्षा देते हो
ओ बहती नदियां तुम कितनी प्यारी हो
जो बिना रुके बिना थके चलना सिखाती हो
अरे ओ दरिया तुम से मिल कर
हमने विराट होना सीखा है
और झरने तुम ने हमें देना सिखाया है
माँ वसुंधरा तुम कितनी सहनशील हो
जो हमारे पांवों की चोट सह कर
भरती हो हमारे अंदर सुन्दरता
सिखाती हो हमें बिना रुके सृजन
ओ माँ हम तुम्हारे प्यारे बच्चे तुम्हें क्या दें?
हाथों में हाथ ले कर सम्मलित हंसी दे
या माँ तोड़ दे सारी सरहदे जो तुम्हें
तुमसे ही अलग करती है
या लिख दे तुम्हारे दिल पर
वसुधैव कुटुम्बकम