Wednesday, May 13, 2015

माँ



जब उड़ने लगती है सड़क पर धूल
और नीद के आगोश में होता है फुटपाथ 
तब बीते पलों के साथ 
मैं आ बैठती हूँ बालकनी में 
अपने बीत चुके वैभव को अभाव में तौलती 
अपनी आँखों की नमी को बढाती
पीड़ाओं को गले लगाती 
तभी न जाने कहां से 
आ कर माँ पीड़ाओं को परे हटा 
हँस कर 
मेरी पनीली आँखों को मोड़ देती है फुटपाथ की तरफ
और बिन कहे सिखा देती है 
अभाव में भाव का फ़लसफा 
मेरे होठों पर 
सजा के संतुष्टि की मुस्कान 
मुझे ले कर चल पडती है 
पीड़ाओं के जंगल में 
जहाँ बिखरी पडी हैं तमाम पीड़ायें 
मजबूर स्त्रियां
मजदूर बचपन
मरता किसान 
इनकी पीड़ा दिखा सहज ही बता जाती हैं 
मेरे जीवन के मकसद को 
अब मैं अपनी पीड़ा को बना के जुगनू 
खोज खोज के उन सबकी पीड़ाओं से 
बदल रही हूँ 
माँ की दी हुई मुस्कान
और सार्थक कर रही हूँ 
माँ के दिए हुए इस जीवन को

Saturday, May 9, 2015

अंतराल



कोई गतिशील बिंदु 
किसी बिंदु से मिले 
उस अंतराल के बीच 
उसे बांधने के भ्रम में खड़ी मैं 
बट गई हूँ 
पहरों, घंटो, मिनिट और सेकेण्ड में 
देख रही हूँ एक मीठी दोपहर को 
कोई शायद गुजरा है बिना किसी आहट के 
वो जो अविरल, अनत है 
सन्निकट था मेरे 
अब किसी दूरदराज के खेतों में 
विहंसती सरसों की पीली बालियों के 
बीच झूम रहा है 
और मैं 
एक एक बोझिल पालो को समेट रही हूँ 
इस आस में 
कि इन पलों पर फिर छिटकेगी मुस्कान उसकी 
जो कर देगी मुझे लींन 
उस अनूठी लय में 
जिसमे कालचक्र अनवरत घूमता है

Tuesday, May 5, 2015

अक्षर



कुछ मिलने, कुछ होने की कामना का अंत कर
वासना का कर विसर्जन
सुन पा रही हूँ प्रकृति के कण-कण का संगीत
सूखे पत्तो की मीठी राग
फूलो की पंखुड़ियों का थरथराना
वर्षा की बूँदों की झनकार
अंतस के गीत
इस तरह
वाक्यों और शब्दों के बंधनों से मुक्त
अक्षर बन जाती हूँ मैं
और पहुंच जाती
उस विराट उर्जा के पास
घुल जाती हूँ सृष्टि के प्रत्येक परमाणु में
यही मेरी नियति, प्रारब्ध और आध्यात्म है।

Friday, May 1, 2015

शिव और शक्ति



भौतिक शास्त्र के अनुसार गति और लय किसी भी पदार्थ का आधारभूत गुण है हम सभी इस जगत में एक लय में जीते है और प्रकृति के साथ उस लय में उसके नृत्य में शमिल होते है । यह नृत्य "सृजन और विनाश की एक ऐसी स्पंदनकारी प्रक्रिया है जहां केवल पदार्थ ही नहीं बल्कि सृजनकारी एवं विनाशकारी ऊर्जा का अंतहीन प्रतिरूप शून्य भी जगत नृत्य में हिस्सा लेता है इसको आप हिन्दू धर्मग्रन्थो में शिव के नटराज छवि के प्रतीक रूप में देख सकते हैं ।

ये रचना कविता , गीत आदि कि तरह है पर एक विज्ञान है जिससे जगत का प्रत्येक पदार्थ संचालित होता है ।
लेकिन ये लय पूर्ण होती है शक्ति से क्योकि शिव मृत है एक शव , प्राण फूंकने वाली स्वर ध्वनि शक्ति के बिना जीवन संभव नहीं शिव की शक्ति तो देवी है उनका बल उनकी स्त्रैण उर्जा उनकी दिव्य क्रीड़ा उनकी माया का कारण और प्रभाव दोनों हैं । शिव जिस उर्जा को अपने तप में प्रयोग करते हैं शक्ति उन सभी क्रियाओं को धारण करती है ।

हमारी पुरानी कथाएं हमें जटिल भले ही लगे पर उन्हें पढ़ कर हमें स्त्री- पुरुष के समाकृति रूप की गहरी समझ और लैंगिकता दोनों का व्यापक स्वर बोध होता है ।