भौतिक शास्त्र के अनुसार गति और लय किसी भी पदार्थ का आधारभूत गुण है हम सभी इस जगत में एक लय में जीते है और प्रकृति के साथ उस लय में उसके नृत्य में शमिल होते है । यह नृत्य "सृजन और विनाश की एक ऐसी स्पंदनकारी प्रक्रिया है जहां केवल पदार्थ ही नहीं बल्कि सृजनकारी एवं विनाशकारी ऊर्जा का अंतहीन प्रतिरूप शून्य भी जगत नृत्य में हिस्सा लेता है इसको आप हिन्दू धर्मग्रन्थो में शिव के नटराज छवि के प्रतीक रूप में देख सकते हैं ।
ये रचना कविता , गीत आदि कि तरह है पर एक विज्ञान है जिससे जगत का प्रत्येक पदार्थ संचालित होता है ।
लेकिन ये लय पूर्ण होती है शक्ति से क्योकि शिव मृत है एक शव , प्राण फूंकने वाली स्वर ध्वनि शक्ति के बिना जीवन संभव नहीं शिव की शक्ति तो देवी है उनका बल उनकी स्त्रैण उर्जा उनकी दिव्य क्रीड़ा उनकी माया का कारण और प्रभाव दोनों हैं । शिव जिस उर्जा को अपने तप में प्रयोग करते हैं शक्ति उन सभी क्रियाओं को धारण करती है ।
हमारी पुरानी कथाएं हमें जटिल भले ही लगे पर उन्हें पढ़ कर हमें स्त्री- पुरुष के समाकृति रूप की गहरी समझ और लैंगिकता दोनों का व्यापक स्वर बोध होता है ।
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