रूह को भी उसका एहसास न हुआ जिस्म समझ नहीं पाया आँखे देख न सकी बस उसका होना हमारे होने से टकराया और हमारा होना न होना होकर रहा गया। मानो रूह ने साथ छोड़ा हो जिस्म का। ऐसा ही होता है प्रेम किसी अनजाने से गाँव की पगडंडी से चलता हुआ एक उदास घर में एक उदासी से मिलता है , फिर आदान प्रदान होता है ' शेखर एक जीवनी" या 'गुनाहों का देवता' का और रात भर बारिश होती है कहानी भींगती है। ठिठुरी हुई लम्बी रातों में दो तारे बारी - बारी से जागते हैं।
कही दूर किसी सिसकी का जवाब होता है तेरे नाम और तेरे ध्यान की कश्ती से मैं दरिया पार कर लूँगा .ऐसा ही होता है प्यार चाहे तीन रोज का हो या तीन सौ पैसठ दिन का ।
किसी ने आवाज दी
जिन्दगी मुस्काई
कली ने पखुडियाँ खोली
और उदासी ढल गई
जिन्दगी मुस्काई
कली ने पखुडियाँ खोली
और उदासी ढल गई
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