वो जब मिला था
मुझे ऐसा लगा कि
मानो उसके अन्दर बुद्ध हो
फिर ईशु की तरह लगने लगा
दुनिया का सबसे अच्छा और सच्चा आदमी
मुझे उससे मिलकर एक साथ
कई महान आत्माओं के दर्शन होने लगे
मेरी तो जैसे दुनिया ही बदल गई
मैं दूसरी दुनिया मैं थी
जहाँ प्रेम था शांति और दर्शन था
अर्थ का कोई नामोनिशान नहीं
मैंने मन ही मन कहा
मतलबी दुनिया तुझे सलाम
मैं चली मेरी दुनिया में
हम घंटो नदी किनारे या किसी दर्रे में बैठे
बात करते जिसमे सब कुछ होता
गीत कविता दर्शन संगीत
फिर एक दो तीन ...न जाने कितने दिन उसने मुझे
प्रेम का दर्शन बताया
दर्शन ने आकार लेना शुरू किया
और मेरे अस्तित्व में दिखाई देने लगा
और अचानक एक रात
वो अपने दर्शन के साथ अकेला छोड़
किसी नए दर्शन की तलाश में जो गया
तो नहीं लौटा
मैं आज कल सुबह सात से शाम सात बजे
मिल की मशीनों के बीच रहती हूँ अर्थ दर्शन को
और रात दर्शनशास्त्र की किताबों को फाड़ लिफाफे बनाती हूँ
अच्छी रचना !
ReplyDeleteसबसे बड़ा दर्शन जीवन दर्शन ,,अर्थ दर्शन ...
ReplyDeleteऐसा दर्शन भी किस काम का जो प्रेम को समझ न सके ...
ReplyDeleteगहरी रचना ...