भारतीय सविधान में शिक्षा को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है . फिर भी सरकार की नीति उच्च शिक्षा में कम खर्च करने की रही है .उच्च शिक्षा में सरकारी भागीदारी को कम किये जाने के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि इससे शिक्षा के स्तर और गुण्वत्ता में बढ़ोत्तरी होगी . निजीकरण की वकालत करने वाली यह मानसिकता खुद में काफी संशिलष्ट हैं . स्ववित्तीय शिक्षा संस्थाएं नई आर्थिक एवं शिक्षा नीति का परिणाम हैं . स्ववित्तीय शिक्षा संस्थाओं से शिक्षा में व्यापारीकरण की वृत्ति और प्रवृत्ति को वेग मिला है .
निजीकरण किन स्थिति में उत्पन्न होता है इसकी तीन बड़ी वजह है पहली सरकार के पास इसके लिए पर्याप्त धन न हो दूसरा सरकार की प्राथमिकता शिक्षा को लेकर बदल रही हो तीसरे पुरनी शिक्षा पद्धतियों में कुछ ऐसी कमियाँ देखी गई हो जिन्हें निजीकरण के दवरा दूर किया जा सकता हो .
पूरा विश्व बाजार उत्पादन की बजाय सेवा विस्तार में हम फैलते हुए देख्र रहें हैं . कुल निर्यात का लगभग 90 प्रतिशत सेवायें है और उत्पादों का निर्यात मात्र 10 फीसदी है . भूमंडलीकरण होने के कारण अर्धविकास अब बोझ नहीं अवसर है जिसका बाजार फायदा उठा रहा है जिसकी परिणाम 'ग्रोथ विदाउट इम्प्लायमेंट" है और "ग्रोथ विदाउट इम्प्लायमेंट" का परिणाम "नालेज सोसाइटी" है इसीलिए प्राथमिक , माध्यमिक और उच्च शिक्षा तीनों स्तरों में समस्या और गिरावट देखने को मिल रही है . स्ववित्तीय शिक्षा से समाज में कई विधेयात्मक और अविधेयात्मक परिणाम द्रष्टिगोचर हो रहें हैं .
उच्च शिक्षा में स्वालंबन एक राष्ट्रीय उपलब्धि है जिसके जरिये सामाजिक गतिशिलता व जनतांत्रिक सपनों को उर्जा मिलती है . इसका व्यवसायिकरण वंचित वर्गों के लिए शिक्षा के जरिए उभरी सम्भावनाओं के विस्तारशील क्षेत्र को तुरंत समाप्त कर जायेगा .
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