Wednesday, April 15, 2015

आग का दरिया

गली में आते जाते वो मिला मुझे
देखा और मुस्कुराया
मैं समझी उसे प्रेम है मुझसे
और एक दिन सच में उसने
रोक कर मेरा रस्ता 
बना कर मुझे राजकुमारी
कदमो में मेरे गिर कर कहा
मैं प्रेम करता हूँ तुम से
मुझे विश्वास नहीं हो रहा था खूद पर
क्या मुझ से भी कोई प्रेम कर सकता है 
वो राँझा मजनू और न जाने क्या क्या बन गया 
ऐसा लगा मानो, 
आग का दरिया पार कर लेगा 
मैंने कहा तू अकेले नहीं 
मैं भी तेरे सफ़र में तेरी हमसफर हूँ 
और मैं अपनी पहचान, अपनी दृष्टि, अपनी समझ 
कपड़ों के साथ रख किनारे 
दरिया पार करने के लिए आग में कूद पढ़ी 
उसके साथ उसके ही तरीकों से तैरने के लिए
अचानक एक दिन उसने कहा, 
तू अच्छी तैराक नहीं 
तू कभी मेरी तरह तैर ही नहीं सकती
और जो मैं इतना तैरी?
उसने कहा बहस फ़िजूल है 
मैंने एक और तैराक खोज ली है 
और मुझे आग के दरिया के बीचो बीच छोड़ कर चलता बना
तब से मैं फीनिक्स की तरह उस आग के दरिया में जल जल कर 
ईजाद कर रही अनगिनत तरीके तैराकी के 
बचाना है उन सभी को, 
जिसे उसने एक एक कर छोड़ा है
आग के दरिया में बीचोबीच.

1 comment:

  1. बहुत दिनो बाद 8इतनी अच्छी रचना पढ्ने को मिली ! औरत और मर्द के रिश्ते की सही तस्वीर । शुभकामनायें

    ReplyDelete