उस भीगी रात मे
बादल से मैने कहा
इस बार मेरा एक काम कर दे
प्यार की महफिल मे
मेरा भी नाम कर दे
मेरा भी एक पैगाम पहुंचा दे
इस भीगी रात मे उन्हे मेरे पास बुला दे
कुछ देर उलझन मे ठहरा बादल
फिर ठुमक कर बोला,
ना वो यक्ष है ना तुम यक्षिणी
तुम्हारा पैगाम तुम्हारे प्रिय तक
क्यो पहुचाऊँ
उनको तुमसे क्यो मिलवाऊँ
तुम लोगो ने इन हवाओ मे जहर घोला
मै कभी पानी का था आज धुयें का गोला
अब मै ना किसी का सन्देश ले जाऊंगा
ना किसी यक्षिणी का डाकिया कहलाऊंगा
कडवे सच को हम रोज सुनते है लेकिन हमारे कण पर जूँ नहीं रेंगती . संवेदनशील और बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteकडवे सच को कहती सुन्दर रचना
ReplyDeleteजाने पहचाने बिम्बों जरिये समकालीन यथार्थबोध को उकेरती नूतन शिल्प की कविता
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