मेरी सोती हुई आँखों में जगते हुए तुम ,
मेरे ख्वाबों में रोज ही चले आते हो .
हर आहट, हर खुशबू, हर खबर में तुम ,
यादो के तसव्वुर से जाते न हो .
मेरी खामोशी में हरसिंगार से झरते तुम ,
मेरे वजूद में क्यों छ जाते हो .
कैसे लब खोलू क्या कहूं उनसे ,
ये मन तुम क्यों नही समझ पते हो .
बस ठहर , रूक जा ये मन ,
बार- बार तुम क्यों बहक जाते हो .
सुन मन तू सूखा है , तू सूखा ही रह ,
उनसे मिल के क्यों महक जाते हो .
खामोश यादे
मेरे ख्वाबों में रोज ही चले आते हो .
हर आहट, हर खुशबू, हर खबर में तुम ,
यादो के तसव्वुर से जाते न हो .
मेरी खामोशी में हरसिंगार से झरते तुम ,
मेरे वजूद में क्यों छ जाते हो .
कैसे लब खोलू क्या कहूं उनसे ,
ये मन तुम क्यों नही समझ पते हो .
बस ठहर , रूक जा ये मन ,
बार- बार तुम क्यों बहक जाते हो .
सुन मन तू सूखा है , तू सूखा ही रह ,
उनसे मिल के क्यों महक जाते हो .
खामोश यादे
yaadein to hamesha khamosh hi hoti hain, shor to unke peeche hota hai....
ReplyDeleteबहुत खूब मैम!
ReplyDeleteसादर
बस ठहर , रूक जा ऐ मन ,
ReplyDeleteबार- बार तुम क्यों ....
सुंदर रचना...
सादर।
खूबसूरत रचना.
ReplyDeleteआभार.
सुंदर रचना... !!
ReplyDeletekya baat hai....urdu ke shabdon ka kya lajawab upyog kiya hai!
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