Monday, March 26, 2012

खामोश यादे

मेरी सोती हुई आँखों में जगते हुए तुम ,
 मेरे ख्वाबों में रोज ही चले आते हो .

हर आहट, हर खुशबू, हर खबर में तुम ,
यादो के तसव्वुर से जाते न हो .

मेरी खामोशी में हरसिंगार से झरते तुम ,
मेरे वजूद में क्यों छ  जाते हो .

कैसे लब खोलू क्या कहूं उनसे ,
ये मन तुम क्यों नही समझ पते हो .


बस ठहर , रूक जा ये मन ,
बार- बार तुम क्यों बहक जाते हो .

सुन मन तू सूखा है , तू सूखा ही रह ,
उनसे मिल के क्यों महक जाते हो .
खामोश यादे

6 comments:

  1. yaadein to hamesha khamosh hi hoti hain, shor to unke peeche hota hai....

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  2. बहुत खूब मैम!

    सादर

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  3. बस ठहर , रूक जा ऐ मन ,
    बार- बार तुम क्यों ....

    सुंदर रचना...
    सादर।

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  4. खूबसूरत रचना.

    आभार.

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  5. सुंदर रचना... !!

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  6. kya baat hai....urdu ke shabdon ka kya lajawab upyog kiya hai!

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