Sunday, May 1, 2022

लोरी

अँधेरे समय ने तुम्हारे हाथों  से छीन कर 
पतंग की डोर और फेक कर कंचे
रख दिये कुछ निशान गाँठों की शक्ल में, 
खेल के मैदान से दूर तुम अब कैद हो 
अब नहीं सुनाई देते तुम्हें स्कूल के घंटे 
बस सुनाई देती है सायरन की आवाज 
जो तुम्हारे दिमाग की अंधेरी गुहा में फोड़ा बन तुम्हें टीसता है 

यातना का सांघातिक प्रभाव लेकर अपने मन में
तुम अपने आप से भी बोलते नहीं 
तुम्हारा दुःख अब तुम्हारी भाषा है 
और तुम्हारी देह जिह्वा है 

तुम्हारी ढेर  सारी  जिज्ञासा तुम्हारे हथोड़े  के नीचे दम तोड़ गई है 
और तुम्हारा हँसना तुम्हारे पिता की बोतल में कैद, 

तुम्हारे हाथ पकड़ना चाहता है बचपन 
लेकिन हर बार काम से अटे होते है हाथ
आँखे देखना चाहती है रंग-बिरंगे सपने पर थकान से बोझिल होती है, 

धीरे-धीरे तुम्हारे सपने को ले उदास निराश बचपन 
समा जाता है एक और अंधेरी गली में 
जहां दिनों दिन दिन के उजाले में तुम 
थामे बैठे हो अंधेरे का हाथ

खांसते खखारते तुम अपनी आंखो पर फेरते हो हाथ 
छूना चाहते हो अपने  फूले  हुये गाल 
पर वो अब हड्डियों की शक्ल में यम को न्योता दे रहे है, 

अब तुम्हारी आँखों में हर चीज धुंधली हो रही है 
तुम नींद के मुहाने पर खड़े अपनी शिथिल देह को देख रहे हो 

सो जाओ बचपन 
तुम मुक्त हो हर मजदूरी से हर मजबूरी से 
कभी न जगाने के लिए सो जाओ 
तुम्हारे सारे सपने मैं तुम्हारे साथ विसर्जित करती हूँ 
इस अंधे युग की हर पीढ़ा से हो कर मुक्त चैन से सो जाओ।

10 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (3-5-22) को "हुई मन्नत सभी पूरी, ईद का चाँद आया है" (चर्चा अंक 4419) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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    1. बुलाने एवं आने का बेहद शुक्रिया !

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  2. तुम्हारे हाथ पकड़ना चाहता है बचपन
    लेकिन हर बार काम से अटे होते है हाथ
    आँखे देखना चाहती है रंग-बिरंगे सपने पर थकान से बोझिल होती है... मार्मिक सृजन।
    सादर

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    1. किरण की दुनिया मे आपका स्वागत है। आभार आपका !

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    2. बचपन की दुनिया अलग ही दुनिया है सुंदर अभिव्यक्ति

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  3. किरण की दुनिया 2011 से आबाद है और मैं अब तक इससे अनजान हूँ । आज रंजू जी की पोस्ट से यहाँ तक पहुँची हूँ ।
    बचपन कभी लौट कर नहीं आता । लेकिन उसे सुलाने के लिए यथार्थ से रु ब रु कराती लोरी की इतनी कठोरता क्या ज़रूरी है ? कम से कम यौवन का कुछ आनंद तो बनता है ।
    बहुत गहन भाव लिखे हैं ।

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    1. एक शोध के तहत फिरोजाबाद में चूड़ी के कारखाने में बाल मजदूर से मिलना हुआ तभी उसके जीवन को पास से अनुभव किया उस अनुभव की कसक यह कविता है। बेहद शुक्रिया मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आशा करती हूँ कि हम मिलते रहेंगे।

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    2. जी बिल्कुल मिलते रहेंगे ।

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  4. ओह! ईश्वर करे बचपन के सपने सदा बने रहें...
    गहन भाव...

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    1. आशा करती हूँ हम मिलते रहेंगे ,एक दूसरे के ब्लॉग पर। 💕

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