Thursday, June 8, 2017

अरदास

अरे सोये होते अगर
अदवायन खिंची खाट पर
तो पड़ते निशान
दिन और रात पर
देखते चीरते जब
अपना ही मन
तब आती आवाज
परतंत्र परतंत्र
दबाओ नहीं चिंगारियां
राख में उनकी
जो चल दिये दे के
स्वतंत्र स्वप्न
दया बाया छोड़
हाथ में हाथ दो
करो उदघोष
जनतंत्र, जनतंत्र।

#किरणमिश्रा

🙄खाते, खवाई, बीज ऋण
गये उनके साथ
अब नहीं कोई अरदास।

1 comment:

  1. जनतंत्र में जन तो गायब हैं, बस तंत्र ही तंत्र व्याप्त है सब जगह
    बहुत सटीक सामयिक रचना

    ReplyDelete