कामकाजी ज़िंदग़ी को सुखद बनाने के लिए ये ज़रूरी है कि हम कुछ पल सुबह के लिए, बारिश देखने के लिए, ओस को गिरते हुए देखने के लिए चिड़ियों को चहचहाते हुए देखने के लिए निकले. कभी बारिश में भींग कर देखे ये ईश्वर कि वो नियामत है जो न सिर्फ ज़िंदग़ी देती है बल्कि ज़िंदग़ी सुखद बना देती है (कभी राजस्थान के जेसलमेर के सुदूर इलाकों में जाकर देखे) पेड़ो को नए पत्ते पहनते हुए देखे फूलों पर रंग उतरते हुए देखे आप का मन इंद्रधनुषी हो जायेगा क्यो कि ये रंग सिर्फ प्रकृति का ही नहीं आप के सपनों का भी होगा .
आप जब सब कुछ पा कर भी एकदम अकेले महसूस करे, ज़िदगी अगर रुकी, थकी. बेमानी लगे तो ज़रूरी है उसके खोए हुए अर्थ की तलाश करे जो शायद इस. भागती-दोड़ती ज़िदगी को सुखद बनाने का ये आसन सा रास्ता है. आपने हृदय के तारों को इतना संकीर्ण मत करे. पता नहीं क्यों प्रगति एवं ज्ञान के तथाकथित पराकाष्ठा के स्तर तक के विकास के बावजूद हम इन जीवों की अभिव्यक्ति को समझ नहीं पाए या समझना नहीं चाहे.
नीचे की तस्वीरे पचमढी और इटारसी के रास्ते के प्राकृतिक दृश्यो की है
पेड़ ,पौधे, आकाश ,पशु-पक्षी .वर्षा ,वन, नादिया जिस दिन से आप इनके हो गए उसी दिन आप बिना कुछ खोये अपने पूरे अस्तित्व को पा लेंगे. रूमानी हो जाये धीरज के साथ ,धीरज रखिये ज़िदगी का लुफ्त ले .
नीचे की तस्वीरे पचमढी और इटारसी के रास्ते के प्राकृतिक दृश्यो की है
मैंने देख ही लिया एक दिन
सूरज को आँखें मलते
सूरज को आँखें मलते
नदियो को इठलाते हुए
चिड़ियों को चहचहाते हुए
फूलों में रंग आते हुए
फिर देखा उनको शरमाते हुए
सारस को देखा प्यार में खो जाते हुए
पेड़ो को देख झूम-झूम के गीत गाते हुए
इन सबको देख कर धरती को मुस्कुराते हुए
और एक दिन मैंने देखा अपने को
इन सब में खो जाते हुए ,
अपनी जिन्दगी को बच्चो सा मुस्कुराते हुए
मैंने देखा.........
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