Monday, March 5, 2018

तुतलाते बोलों में मौत की आहट

एक अंतहीन रात में
एक औरत तोडना चाहती है दुस्वप्न के जालों को

वो छाती की दर्दनाक गांठ में दबे
उस शून्य को निकाल देना चाहती है
जो हर चीख के साथ बढ़ता जाता है
और हटाना चाहती है
इर्द गिर्द जमा डर की बीट को

वो रखना चाहती थी जिंदा
सत्य, न्याय, प्रेम की कहानियों को भी
जो पिछली रात उसने सुनाई थी
उस फूल को जिसे
टिड्डियों ने तबाह कर दिया

अब किलकारियों के साथ
कहानियां भी दफ़न है

हिंसा से बचने के नुस्खे खोजना चाहती है वो औरत
हर उस फूल के लिए जो अभी खिले नहीं
हालाँकि पिछली रात टैंकों के नीचे
एक नन्नी धड़कन दबा दी गई है

गर्भ धारण करने वालियों को नहीं पता
कंस ने फूलों पर हिंसा की शुरुआत
उसी दिन कर दी थी
जिस दिन वो देवकी के गर्भ में छुपे थे।
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1 comment:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जाकी रही भावना जैसी.... : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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