क्या आप ने चिडियों को चाह -चाहते हुए देखा है ?सुबह की ओस को पत्तों से गिरते हुए ? पेड़ो को हवाओं के साथ झूमते हुए ? कितने दिनों से नंगे पैर घास पर नहीं चले है . कितने दिन पहले अपने उगते हुए सूर्य को देखा था .क्या डालती शांम को पक्षियों को उनके घर जाते देखा ? सूर्य को उसके घर जाते हुए ? आप सब कहेगे नहीं इस भागती - दोड़ती जिन्दगी में फ़ुरसत कहाँ मेरा भी ऐसा ही विचार था अगर मेरे साथ कुछ ऐसी घटना ना घटती. मुझे स्कालरशिप कि परीक्षा देने पंचमढ़ी से इटारसी जाना था अगर आप पहाड़ पर कभी कुछ दिन तक रहे हो तो आपको पता ही होगा पहाड़ी मौसम का कुछ पता नहीं होता वो तो बस बच्चों कि तरह होता है , खैर जिस दिन हम चले उसके दूसरे दिन हमारा पेपर होना था ये तब कि बात है जब मैं कक्षा आठ में थी . हम बस से चार बजे पंचमढ़ी से निकले पंचमढ़ी से इटारसी का रास्ता करीब ढाई- तीन घंटे का है इसलिए कोई जल्दी नहीं थी हमें सात बजे तक इटारसी पहुंच जाना था इसलिए हम सब निश्चिंत थे. छोटे- छोटे सपने आँखों में ले कर हम चल पढ़े . अरे ..... ये क्या कुछ दूर जाकर बस रुक गई सपने टूटे आशा छूटी मैं सबसे आगे बडबडाते हुए बस से उतरी बाधा किसी को अच्छी नहीं लगती लेकिन बस से उतरने के बाद जो मैंने देखा वो अविस्मरणीय था. पहाड़ों के बीचो- बीच में हम थे आस-पास अंगिनित पेड़ जिन पर जाते हुए सूर्य कि रौशनी पड़ रही थी मनो जैसे पेड़ो ने स्वर्ण आभूषण पहन रखा हो पत्ते ऐसे झूम रहे थे मानो उन पर सुरूर छा गया हो . सूर्य अपनी किरणों को अपनी बहो में समेटते हुए पहाड़ों के पीछे छुप रहा था . पक्षी आकाश में ऐसे मस्ती में विचरण कर रहे थे, जैसे ससुराल में नयी नवेली दुल्हन अल्हड़ता के साथ लेकिन अनुशासित होकर डोलती है . पास में बहती हई छोटी सी पहाड़ी नदी को तो मैंने पहली बार ध्यान से देखा लगा जैसे किसी नव यौवना ने अपने पैरो में डेर सारे घुंघरू बांध कर नटराज का रूप धारण कर लिया हो. तभी चीतल (हिरण की तरह होता है ) का झुंड अपने बच्चों को ऐसे चिपकाये नजर आए जैसे माँ अपने छोटे बच्चों को साँझ होने पे अपने आँचल में ले लेती है. तभी दूर कंही चिड़िया ने अपनी मधुर वाणी से मुझे स्वप्न लोक से धरातल पर ला दिया बस का ड्राइवर हमें बुला रहा था में शुक्रगुज़ार थी उस ड्राइवर कि जिसने हमें उस पुरानी बस में बिठाया वो अगर ख़राब नहीं होती तो में उन एहसास से नहीं गुजरती जिनसे गुज़री. सच कहूं उस यात्रा के बाद से ही मेरे ज़िंदग़ी जीने के नज़रिया में फर्क आ गया .
कामकाजी ज़िंदग़ी को सुखद बनाने के लिए ये ज़रूरी है कि हम कुछ पल सुबह के लिए, बारिश देखने के लिए, ओस को गिरते हुए देखने के लिए चिड़ियों को चहचहाते हुए देखने के लिए निकले. कभी बारिश में भींग कर देखे ये ईश्वर कि वो नियामत है जो न सिर्फ ज़िंदग़ी देती है बल्कि ज़िंदग़ी सुखद बना देती है (कभी राजस्थान के जेसलमेर के सुदूर इलाकों में जाकर देखे) पेड़ो को नए पत्ते पहनते हुए देखे फूलों पर रंग उतरते हुए देखे आप का मन इंद्रधनुषी हो जायेगा क्यो कि ये रंग सिर्फ प्रकृति का ही नहीं आप के सपनों का भी होगा .
आप जब सब कुछ पा कर भी एकदम अकेले महसूस करे, ज़िदगी अगर रुकी, थकी. बेमानी लगे तो ज़रूरी है उसके खोए हुए अर्थ की तलाश करे जो शायद इस. भागती-दोड़ती ज़िदगी को सुखद बनाने का ये आसन सा रास्ता है. आपने हृदय के तारों को इतना संकीर्ण मत करे. पता नहीं क्यों प्रगति एवं ज्ञान के तथाकथित पराकाष्ठा के स्तर तक के विकास के बावजूद हम इन जीवों की अभिव्यक्ति को समझ नहीं पाए या समझना नहीं चाहे.
नीचे की तस्वीरे पचमढी और इटारसी के रास्ते के प्राकृतिक दृश्यो की है
पेड़ ,पौधे, आकाश ,पशु-पक्षी .वर्षा ,वन, नादिया जिस दिन से आप इनके हो गए उसी दिन आप बिना कुछ खोये अपने पूरे अस्तित्व को पा लेंगे. रूमानी हो जाये धीरज के साथ ,धीरज रखिये ज़िदगी का लुफ्त ले .
नीचे की तस्वीरे पचमढी और इटारसी के रास्ते के प्राकृतिक दृश्यो की है
मैंने देख ही लिया एक दिन
सूरज को आँखें मलते
सूरज को आँखें मलते
नदियो को इठलाते हुए
चिड़ियों को चहचहाते हुए
फूलों में रंग आते हुए
फिर देखा उनको शरमाते हुए
सारस को देखा प्यार में खो जाते हुए
पेड़ो को देख झूम-झूम के गीत गाते हुए
इन सबको देख कर धरती को मुस्कुराते हुए
और एक दिन मैंने देखा अपने को
इन सब में खो जाते हुए ,
अपनी जिन्दगी को बच्चो सा मुस्कुराते हुए
मैंने देखा.........
प्राकृतिक सुंदरता का बेजोड चित्रण। सच है इस भागमभाग के बीच हमें इन चीजों के लिए भी वक्त निकालना चाहिए।
ReplyDeletesunder prakriti varnan aur kavita bhi ...
ReplyDeletejust wow
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत, बधाई.
ReplyDeleteह्म्म्म....सच कहा किरण, बड़ा सुंदर लेख लिखा तुमने, प्रकृति से सुंदर ओर शांत भी भला कुछ होता है, जानती हो मेरा घर ऐसे जगह पर है जहाँ शहर के बीचो-बीच होते हुए भी मैं प्रकृति के बेहद करीब हूँ...घर के सामने एक प्राईमरी स्कूल है, जिसमें पेड़ हैं, मेरे घर के सामने ही बरगद का पेड़ है ओर आस पास भी काफी वृक्ष हैं जिन पर चहचहाते पक्षी सूरज के आने का सन्देश काफी पहले ही लेकर आ जाते हैं, मेरी बालकोनी पर दाना चुगते हैं, दिन निकलने के बाद बच्चों की प्रार्थना और राष्ट्र-गान से दिन की शुरुआत होती है......चारों और हरियाली मन को मोह लेती है.....बहुत सुकून मिलता है.......
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रकृति ही सही मायने में हमको जीवन जीना सिखाती है और उसी जीवन का नाम ज़िंदगी है ....प्रकर्ति सुंदरता की छटा बिखेरती सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसमय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/.
bahut hi sundar prasstuti.... abhar.
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