Saturday, April 23, 2011

चलो दोनों चले वहां










बड़े -बड़े पहाड़ो के 
सकरे से रास्तो के बीच 
ना कोई आता जाता जंहा 
चलो दोनों चले वहां 
जहा दर्रो से निकले धवल  पानी 
जहा सन्नाटे की ही हो वाणी 
चलो चले वह 
ना कोई आता जाता जहा
जहा पैरो के नीचे पत्ते करे चरर मरर 
जहा हवा की हो सनन-मनन 
ना कोई आता जाता 
चलो दोनों चले वहा
सुन्दर -सुन्दर परिंदों का हो जहा आवास  
जंहा धरती के साथ -साथ हो आकाश 
वही करे निवास 
न  कोई आता जाता जहा 
चलो चले वहा 
अब ना रुके यहा   
चलो चले वहा 

  

10 comments:

  1. खुबसुरत रचना के लिए बधाई के पात्र है। धन्यवाद।

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  2. जिन्दगी चलने का नाम है बहुत अच्छी सुन्दर रचना, बधाई

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  3. प्रकृति के प्रति आसक्ति भव उकेरे है . सुँदर सुरम्य कविता .

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  4. आपने बहुत सुंदर शब्दों में मन के भावों को अभिव्यक्त किया है ..!
    अन्तर्मन की भावनाओं को अभिव्यक्त करती उम्दा रचना...
    मुझॆ खुशी हुई कि आप समाजशास्त्र विषय से पी.एच.डी की हॆ..

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  5. बहुत ही बेहतरीन लिखा है आपने.

    सादर

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  6. थॆक्स अपने विचार देने के लिये..मुझे संवाद के लिये आपकी इस बहुमूल्य रचना का सहारा लेना पड रहा हॆ उसके लिये माफ कीजियेगा...आपने कहा कि आपके सामने जो सच आता हॆ वो आधा सच होता हॆ..क्या आप इस विषय पर स्वस्थ सवांद करना पसन्द करेगी? आपसे विचार-विमर्श करने का इच्छुक हू..मात्र इसलिये नही कि आपने कमेन्ट किया हॆ मुझे कमेन्ट की कोई चाह नही हॆ..पर आप समाजशास्त्र की अध्यापिका हॆ इसलिये आपसे बात करने के लिये इच्छुक हू..
    हो सके तो मेल कीजीयेगा.
    mr.ashishpal@gmail.com

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  7. बहुत खूब ...., शुभकामनायें आपको !

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  8. वही करे निवास
    न कोई आता जाता जहा
    चलो चले वहा
    अब ना रुके यहा
    चलो चले वहा
    वाह!
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  9. सुन्‍दर शब्‍द, भाव भरे.

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  10. बहुत ही सुंदर शब्दों और भावो से सजी रचना....

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