सकरे से रास्तो के बीच
ना कोई आता जाता जंहा
चलो दोनों चले वहां
जहा दर्रो से निकले धवल पानी
जहा सन्नाटे की ही हो वाणी
चलो चले वह
ना कोई आता जाता जहा
जहा पैरो के नीचे पत्ते करे चरर मरर
जहा हवा की हो सनन-मनन
ना कोई आता जाता
चलो दोनों चले वहा
सुन्दर -सुन्दर परिंदों का हो जहा आवास
जंहा धरती के साथ -साथ हो आकाश
वही करे निवास
न कोई आता जाता जहा
चलो चले वहा
अब ना रुके यहा
चलो चले वहा
खुबसुरत रचना के लिए बधाई के पात्र है। धन्यवाद।
ReplyDeleteजिन्दगी चलने का नाम है बहुत अच्छी सुन्दर रचना, बधाई
ReplyDeleteप्रकृति के प्रति आसक्ति भव उकेरे है . सुँदर सुरम्य कविता .
ReplyDeleteआपने बहुत सुंदर शब्दों में मन के भावों को अभिव्यक्त किया है ..!
ReplyDeleteअन्तर्मन की भावनाओं को अभिव्यक्त करती उम्दा रचना...
मुझॆ खुशी हुई कि आप समाजशास्त्र विषय से पी.एच.डी की हॆ..
बहुत ही बेहतरीन लिखा है आपने.
ReplyDeleteसादर
थॆक्स अपने विचार देने के लिये..मुझे संवाद के लिये आपकी इस बहुमूल्य रचना का सहारा लेना पड रहा हॆ उसके लिये माफ कीजियेगा...आपने कहा कि आपके सामने जो सच आता हॆ वो आधा सच होता हॆ..क्या आप इस विषय पर स्वस्थ सवांद करना पसन्द करेगी? आपसे विचार-विमर्श करने का इच्छुक हू..मात्र इसलिये नही कि आपने कमेन्ट किया हॆ मुझे कमेन्ट की कोई चाह नही हॆ..पर आप समाजशास्त्र की अध्यापिका हॆ इसलिये आपसे बात करने के लिये इच्छुक हू..
ReplyDeleteहो सके तो मेल कीजीयेगा.
mr.ashishpal@gmail.com
बहुत खूब ...., शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteवही करे निवास
ReplyDeleteन कोई आता जाता जहा
चलो चले वहा
अब ना रुके यहा
चलो चले वहा
वाह!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सुन्दर शब्द, भाव भरे.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर शब्दों और भावो से सजी रचना....
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