आँखों की कोरों से कुछ गीला -गीला गिरता है
दिल से भी कुछ रुकता- रुकता झरता है
कसक सी उठती है दिल में,
बसंत में पतझड़ सा लगता है
आँखों की कोरों.................................
हर बार कहा हर बार रहा
उनसे मेरा जो नाता है,
ना माना मीत मेरा वो सब,
उसे बंधन , जकड़न सा लगता है
आँखों की कोरों................................
ना जाने वो प्यार की भाषा
ना जाने मन की अभिलाषा
कसक सी उठती है दिल में
ये शहर अंजाना लगता लगता है
आँखों की कोरो..................................
ना समझ सकी अब तक उनको
ना समझ सकी अब तक अपने को
ये प्यार बेगाना लगता है
ये रोग पुराना लगता है
आँखों की कोरों. ...................................
ना समझ सकी अब तक उनको
ReplyDeleteना समझ सकी अब तक अपने को
ये प्यार बेगाना लगता है
ये रोग पुराना लगता है
आँखों की कोरों.....
kya bat hai.....
Bahut sundarta se dard ukera hai kagaj par.
ReplyDeletekya baat hai kiran jee....
ReplyDeletegehree rachna!
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteना समझ सकी अब तक उनको
ReplyDeleteना समझ सकी अब तक अपने को
ये प्यार बेगाना लगता है
ये रोग पुराना लगता है
आँखों की कोरों. .............बहुत ही खुबसूरत कविता....
बसंत में पतझड़ सा लगता है
ReplyDeleteआँखों की कोरों..........
sunder abhivyakti.
shubhkamnayen.
खूबसूरती सहेजे हैं मन के भाव
ReplyDeleteआँखों की कोरों. ......ने हर बात खूबसूरती से बयाँ कर दी जी अब कुछ कहने को बाकि कहाँ रहा |
ReplyDeleteसुन्दर रचना |
सुन्दर भावाव्यक्ति.............
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