सब कहते है मन बंधता है , ना बांधू उनसे मैं मन को
बंधी गाठ खुल जाये ,वो तो ना घुल पाए
ना बांधू .............................................
जग में तो सब बंधते है , बंधन से ही सब चलते है
ऐसा जग में सब कहते है, में ना मानू इन सब को
ना बांधू ....................................................
अगर तू सुनता है मौला, इतनी फ़रियाद मेरी सुन ले
उनके मन से मेरा मन ,ऐसे घुल जाये
नदिया सागर में जैसे मिल जाये
ना बांधू .......................................
बंधन में विश्वास नहीं , ऐसे जीने की आस नहीं
बंधी - बंधाई ये परिभाषा , मेरी समझ में ना आये
ना बांधू .......................
Expressed beautifully
ReplyDeleteहमारी भी शुभकामनायें है की आप उनके मन में समायी रहें चाहें नदी या पवन .........
ReplyDeleteबंधन में विश्वास नहीं , ऐसे जीने की आस नहीं
ReplyDeleteबंधी - बंधाई ये परिभाषा , मेरी समझ में ना आये...बहुत बहुत खुबसूरत....
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDelete---------
कल 09/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
bhaut hi sundar abhivaykti....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeletesahi baat...bandhan mein vishwaas bhii nahin hona chaahiye...
ReplyDeleteअगर तू सुनता है मौला, इतनी फ़रियाद मेरी सुन ले
ReplyDeleteउनके मन से मेरा मन ,ऐसे घुल जाये
नदिया सागर में जैसे मिल जाये
Kya kamaal ki baat kahee hai aapne!!
वाह ...बहुत ही बढि़या ... ।
ReplyDeleteखूबसूरत रचना
ReplyDelete.
ReplyDeleteकिरण जी
सादर अभिवादन !
सुंदर रचना है आपकी -
मौला, इतनी फ़रियाद मेरी सुन ले
उनके मन से मेरा मन ,ऐसे घुल जाये
नदिया सागर में जैसे मिल जाये
आमीन ! परमात्मा आपकी मनोकामना पूर्ण करे :)
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस की मंगलकामनाओ के साथ
-राजेन्द्र स्वर्णकार