हर साल की तरह दसवी बारहवी के परीक्षा परिणाम आ गए है . ज्यादातर वर्षो की तरह लडकियों ने ही बाजी मारी है. अपने घर के व अपने छोटे मोटे कामो को कर के आज फिर मुझे कई वर्षो पूर्व का वाकया याद आ गया . तब हम होशंगाबाद में रहते थे "वो" हमारे घर के पीछे बने छोटे से घर में रहती थी तब वो हाई स्कूल में पढ़ती थी उसके पिता फेरी लगाने का कम करते थे माँ रजाई धुनने का मै अपने घर की खिड़की से जो की ऊँची पहाड़ी पर था उसके कम करने को देखती रहती थी उसके घर मै उसकी बड़ी बहन जिसकी शादी हो चुकी थी और माँ पिता के आलावा कोई नहीं था वो अपने पढाई के खर्च को चलने के लिए कभी- कभी चुडिया बेचती कभी पोस्टर -कलेंडर, मेरी दोस्ती भी उससे अजीब तरह से हुई मुझे जानवर पालने का शौक था कुत्ते द्वारा सताए जाने के बाद (उसने मेरी फ्राक फाड़ डाली थी )मैने बिल्ली पाली जिसने मेरे मुंह पर पंन्जा मारा (मेरे द्वारा उसका ज्यादा मुंह साफ करने के कारण ) तब मैने घर पर घोषणा की अब मै कुत्ते - बिल्ली नहीं पालूगी माँ ने कहा तोता पाल लो नहीं तोता नहीं मैने जवाब दिया वो मुझे इसलिए अच्छा नहीं लगता था वो हरदम बोलता रहता था और मेरे साथ खेलता ही नहीं था मैने तब खरगोश पालने की इच्छा व्यक्त की मेरी इच्छा तुरंत मान ली गयी मेरा उससे मिलना भी इसी कारण हुआ मुझे खरगोश के लिए हरी -हरी दूब चाहिए थी माँ ने मुझे सुझाया पीछे शमशुन दीदी रहती है उससे कहा दो वो रोज दूब ले आएगी. वो रोज दूब लाने लगी और बस हमारी दोस्ती चल पड़ी मैने उसे दीदी मानने से इनकार कर दिया और उसने भी मुझे दोस्त मान लिया वो दूब लाते-लाते न जाने कब तेदु के फल , रंग - बिरंगी चुडिया ,रंगीन पोस्टर लाने लगी मै उससे कहा करती तुम मेरे साथ ज्यादा देर तक क्यों नहीं रहती उसका कहना होता हाईस्कूल के बाद मुझे इंटर करना है और फिर बी.ए. ,एम .ए. उसके लिए मै दोपहर को तेदु के पत्ते इकट्ठे करने जंगल जाती हूँ (तब मुझे पहली बार मालूम पड़ा की तेदु के पत्तो से बीडी बनती है उनका ठेका उठाता है ) शाम को घास बेचती थी पुरे दिन की मेहनत के बाद उसका सपना ज़िंदा रहता था हमेशा उसकी आँखों मे. मुझे मैने आठवी पास की और उसने हाईस्कूल हम दोनों खुश थे उसने मुझे अपने घर पहली बार बुलाया था हमेशा की तरह ऊँच -नीच ,छोटे- बड़े को नहीं मानने वाली मेरी माँ ने मुझे खुशी- ख़ुशी जाने दिया था. घर क्या था रुई धुनने का छोटा सा स्थान था. एक रसोईघर जिसमे चन्द बर्तन थे फर्नीचर के नाम पर एक मूझ की चारपाई और एक कुर्सी वो भी टूटी.हमारी दोस्ती इन चीजो का कोई स्थान नहीं था उसके घर के पीछे फूलो का छोटा सा बगीचा था जो उसकी मेहनत का परिणाम था वह लगे रंग- बिरंगे फूल और उन के बीच मौलश्री के पेड़ पर टगे झूले को देख कर मेरा मन खुश हो गया उस दिन मानो मुझे दुनिया की निमायत मिल गई हो. हम घंटो झुला झूलते रहे उस दिन
हम इतना हँसे जिसकी गूंज मुझे आज भी सुनायी देती है फिर तो ये सिलसिला चल निकला अब तो जब भी मौका मिलता में अपनी किताबे उठा कर पीछे के दरवाजे से उसके घर भाग जाती वह हम दोनों झुला झूलते हुए ढेरों बात करते उसने मुझ हँसते- हँसाते जंगल, फूल - फल की ढेरों जानकारी दी कौन सा फूल कब खिलता है उसमे कितनी खाद - पानी होना चाहिए ये सब मेने उसी से सिखा दिन बीत रहे थे हमारी दोस्ती और मजबूत हो रही थी . हम दोनों ही व्यस्त थे मेरा हाईस्कूल और उसका १२ वी बोर्ड था हम दोनों ने उस बगीचे और झूले पर खूब पढाई की परिक्षाए खत्म हुई जिसका हम दोनों को इंतजार था परीक्षा परिणाम निकला शमशुन ने पुरे जिले में टाप किया था मै उसके घर दौड़ पड़ी हम बहुत खुश थे माँ ने जी भर कर हम दोनों को मिठाई खिलाई और हमें कपड़े लाकर दिए हम ने नए-नए कपड़े पहने और होशंगाबाद से लेकर पंचमढी तक खूब घूमे . गर्मियों की छुटिया तो हो गई ही थी,मुझे उत्तर- प्रदेश मै अपने घर एक शादी मै जाना पड़ा मेरा मन शादी मे नहीं लग रहा था मे जल्दी से जल्दी शमशुन मिलना चाहेती थी जेसे ही हम घर पहुचे मै घर से निकल पड़ी , माँ हँसी मै बिना कुछ कहे मुस्कुरा दी हम कई दिन बाद मिले इस बार वो मुझसे मिल के बहुत रोई रोना मुझे भी आया जब उसने बताया मेरी शादी हो रही है इतनी जल्दी और तुम्हारी पढाई मेरे मुँह से निकल पड़ा उसने उदास नजरो सेमेरी तरफ देखा कहने लगी किरण हम छोटे लोग सपने देखते है उसे आँखों मै पलने के लिए वो पुरे होंगे एसा तुमने कैसे सोचा हमारा सारा खेल -कूद, पढाई-लिखाई ,रुचि
सपने आदि सभी गृहस्थी के चक्कर में इस तरह डूब जाती है की फिर हम कभी कोई सपने देखने के लायक नहीं रहते . हमारी पूरी पहचान गोद में लटके बच्चो तक ही सीमित होकर रहा जाती है. हमारे सतरंगी सपने हमें भूलने पड़ते है बस याद रखना पड़ता है नमक , तेल,
और, लकड़ी एक आह भर कर उसने कहा था अगले जन्म में मौका मिला तो खूब पढूंगी और कभी शादी नहीं करूंगी. हर वर्ष जब भी हाईस्कूल इंटर का रिजल्ट घोषित होता है मुझे हर वर्ष उसका ख्याल आता है और उन सारी लडकियों का भी जिनके सपने अधूरे ही रहा जाते है. आज जिन्होंने सफलता के सबसे ऊँचे मुकाम हासिल किये है वे यही तक ही न रुके, हर उस छोटी तक पहुंचे जंहा पहले कोई न पहुंचा हो मन से बस यही दुआ निकल रही है.
"हम छोटे लोग सपने देखते है उसे आँखों मै पलने के लिए वो पुरे होंगे एसा तुमने कैसे सोचा"
ReplyDeleteसोचने पर मजबूर करती हैं यह पंक्तियाँ.
सादर
समाज में बहुत कम मा बाप अपने बच्चों की प्रतिभा को समझ पाते है वह ज़िंदगी को एक ढर्रे पर जीते है और चाहते है कि उनके बच्चे भी उसी पर चले
ReplyDeleteथोड़ी सी फार्मेटिंग की समस्या है
ReplyDeletePar dukh ki baat ye hai inter ki pareekshaon ka ye parinam jivvan men aage chalkar bikhar sa jata hai.
ReplyDelete............
प्यार की परिभाषा!
ब्लॉग समीक्षा का 17वां एपीसोड--
सपनों को सच होने का समय आ गया है |संवेदनशील रचना कई प्रश्नों का उत्तर मांगती हुई , आभार
ReplyDeleteहम छोटे लोग सपने देखते है उसे आँखों मै पलने के लिए वो पुरे होंगे एसा तुमने कैसे सोचा हमारा सारा खेल -कूद, पढाई-लिखाई ,रुचि
ReplyDeleteसपने आदि सभी गृहस्थी के चक्कर में इस तरह डूब जाती है की फिर हम कभी कोई सपने देखने के लायक नहीं रहते .
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एक कड़वा सच जिसे आपने बखूबी बयान किया. प्रशंसनीय
एक कड़वा सच जिसे आपने बखूबी बयान किया|आभार|
ReplyDeleteमन से बस दुआ निकल रही है........
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बड़ी बातों को कहने के लिए कठिन शब्दों की जरुरत नहीं होती ,कभी स्मृतियों कभी कविताओं तो कभी कहानियों में सरल ढंग से उसे अभिव्यक्त किया जा सकता है ,ये बात ब्लॉगर किरण मिश्र से सीख सकते हैं |
ReplyDeleteकड़वा सच
ReplyDeleteआभार| विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
यही समाज की विडम्बना है...!
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