Sunday, March 1, 2015

यक़ीनन वो तेरा साया ही होगा

1.  बांसुरी  के धुन की तरह
हौले -हौले तुम मुझ में समा गए
मुझे लगा जैसे सहरा  में एक टुकड़ा मिला हो छाव का
तुमने एक मीठा सा सवाल किया
तो नन्ना सा जवाब बन महक गया मन


2. वो आज भी मेरे ज़ेहन  में है
एक किताब की तरह
कि हर बार पलटती हूँ उसके पन्ने
खिचती हूँ लाईन अपने पसंद के पैराग्राफ पर
पर उसमे कुछ नया नहीं जोड़ पाती

3 .  जब किसी रस्ते पर चलते चलते
 तुम थक जाओ
और किसी राह  पर रुक जाओ
 तो देख लेना कोई  वहां तो नहीं
यक़ीनन वो तेरा साया ही होगा 

2 comments:

  1. तीनों लघु कविताएं कहूं या पांच लाइना.....खूबसूरत हैं

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  2. अंत में तो साया ही साथ देता है ... पर घने अँधेरे में वो भी साथ छोड़ देता है ...

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