Friday, March 6, 2015

मालवा की होली और मेरा बचपन

मेरा बचपन मालवा में बीता है हर होली पर मैं वही पहुच जाती हूँ इस होली आप भी चले। 
मालवा में बसंत ऋतु की शुरुवात में होली को त्यौहार मनाया जाता है।  होली के एक महीना पहले पूनम पर डंडा रोप दिया जाता है ठीक एक महीना बाद होली मनाने का रिवाज है।  होली वहां जिन सामान से बनाई जाती थी उस सामान का उपयोग नहीं होता था।  मोहल्ला के लोग कंडा,लकडी,टूटी फूटी खाट ,खेती बाडी का टुटा फुटा सामान के साथ कस्लो नाम की घास भी होली के डंडे पर बाँध देते हैं (जिसको जानवर भी नहीं खाते हैं ) कोई भी काम कि चीज होली में नहीं जलाई जाती थी लोग स्वेछा से अपने घर के बेकार सामान को होली के लिए देते थे | लेकिन हमारी बानर सेना को ये कहां मंजूर था हमें तो अपनी होली बहुत ही ऊंची करनी थी सो घर के पास बने हुए गराज के टूटे दरवाजे से घुस कर सलीम भाई की सारी बल्ली पार कर दी गई ये आईडिया इस नाचीज का था, शिकायत भी मेरी ही हुई सजा क्या मिली लिखने वाली बात नहीं है लेकिन हम तो हम ही थे मन में विचार आया अरे अब शिकायत ही होनी थी तो क्यों थोड़ी सी बल्ली छोड़ी चलो अगली होली पर
मालवा क्षेत्र में युवा लड़कियों के समूह द्वारा गाये जाने वाले गीत, लोक संगीत एक पारंपरिक मधुर और लुभावना उत्सव है। समृद्धि और खुशी का आह्वान करने हेतु लड़कियां गाय के गोबर से संजा की मूरत बनाती है और उसे पत्ती और फूलों के साथ सजाती है तथा शाम के दौरान संजा की पूजा करती है। 18 दिन के बाद, अपने साथी संजा को विदाई देते हुए यह उत्सव समाप्त होता है। 
बस हमारी काम वाली बाई की बेटी को देख कर हमारा भी मन डोल गया पहले तो माँ ने मना किया की ये स्थानी लोगो का उत्सव है तुम इसका आनंद इसे देख कर लो पर नहीं हम तो अड़ ही गए गोबर को कैसे छुए ये एक समस्या थी पर संजा खेलने का भी मन था फिर शुरू हुआ गोबर से आकृती बनाना अठारह दिनों तक चाँद, सुरज, तारे, लड़की, लड़का, सीडी ,बैलगाड़ी आदि बना बना कर उसे रंगबिरंगी पन्नी मोटी फूल पत्ती से सजाते -सजाते न जाने कब हम कला में इतने दक्ष हो गए की फैशन डिज़ाइनिग करते हुए ड्रेस डिज़ाइनिग में फस्ट पुरूस्कार मिला .(संजा के 18 दिनों वाली आकृति बना दि थी ) .


मालवा में पहली बारिश के लिए बाकायदा उत्सव होता है मालवा क्षेत्र के गीत सुनना मन को बेहद भाता है। हिड गायन में कलाकार पूर्ण गले की आवाज के साथ और शास्त्रीय शैली में आलाप लेकर गाते हैं। मालवा क्षेत्र में मानसून के मौसम के दौरान ‘बरसाती बरता' नामक गायन आमतौर पर होता है। संजा गीत भी बारिश के पहले गया जाता है .होली के आठ दिन के बाद तक फाग गाते हैं | होली गीत को अपनों महत्व है इन गीतों में देवी देवता और आपसी रिश्तो के गीत गये जाते हैं | इसमे मुख्य रूप से जो गीत गए जाते हैं वो है -गोरा थारो भाग बड़ा शिवशंकर खेले होली ......,होली खेलत हे नन्दलाल .......जमना जल भरन चली रे गुजरी जमना जल ....म्हारी बाई सा होली खेलना आई.... .होली दिवाली दुई बहना ...रंग गुलाल घना खेलो रे होली , दे दो चिर मुरारी अजी कान्हा हम जल माहि उघारी... |

अब की बार आप समझ ही गए होंगे की कौन सा रंग चढा था माँ ने गाना सीखने के लिए एक टीचर की व्यवस्था कर दी थी भाई बोला किरण मालवा में कुश्ती भी होली में होती है वो नहीं सीखेगी और मेरे नादान बचपन ने मासूमियत से हाँ कर दिया था सब हस पढ़े थे . आज माँ नहीं कितना तो कुछ है जो मैं सीखना और अपनी बेटी को सिखाना चाहती हूँ . इस होली में आप सब को शुभकामनाएं देते हुए भगवान विष्णु से यही मांगती हूँ बेटियों की लाज बचाने एक बार फिर फिर चले आए बेटियां अपना बचपन तो जी लेंगी .

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