तुम्हारे साथ को
मैं ने अपने भीतर बूंद बूंद समेटा है
मैं ने अपने भीतर बूंद बूंद समेटा है
ये एक जादुई एहसास है
जो मेरे अन्दर सिहरन छोड़ जाता है
जो मेरे अन्दर सिहरन छोड़ जाता है
ये तो वसंत का आगाज है
अरे ओ अनमने दिन बाँध लो अपनी गठरी
एकांत की चादर मैं ने समेट जो दी है
अरे ओ दरिया की लहरों मुझे किनारा मिल गया है
मेरा ये अनायास दुखी और बेचैन होना
और एक ही पल में बेवजह मुस्कुराहटों का पिटारा खोल देना
असल में अनजाने से आगत की गंध है
जो पूरब से आ रही है
अरे मेरी रूह आज तुम मिलोगी
खुद से और मिलोगी पूरी कायनात से
आओ चले टिका दे
अपनी उम्र और अकेलापन पूरब के कंधे पर
वाह
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