Sunday, March 8, 2015

आ धर्म निभाये

मैंने कहा नदी से
तू और मैं एक जैसे
मैं प्रीत का तूफान यादों की कश्ती  से खेती
तू भी कितने तो तूफान सहती
तू मिटती- बनाती लहरों के खेल में
मैं भंवर  में रहती गिरस्ती  के जेल में
तू खामोश बहती लहरों के साथ
मैं भी  बहती जिन्दगी के बहाव के साथ
तू नि:शब्द हो समेट लेती है सब कुछ अन्दर
मैं समेट लेती हूँ सबके दुःख अंतस
तू बंधी  है किनारो की बाधा  से
मैं बंधी हूँ समाज की मर्यादा से
नदी  तेरा मेरा सुख दुःख एक है
किनारों के पार विध्वंस  है
आ धर्म निभाये
किनारों के भीतर ही रहा जाये
सृजन धरा पर करा  जाये


2 comments:

  1. नदी और नारी का जीवन समान ही रहा हैं जिसने जैसे चहा मोड़ दिया
    आपको सपरिवार होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ .....!!
    http://savanxxx.blogspot.in

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  2. नारी मन की थाह को लिखा है ...

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