जाग्रत सुधियां ,मौन निमंत्रण,मधुर मिलन
और बैचेन प्रतिक्षा
आदि सारी कविताएं
उसी समय
अपने होश खो देती है
जब देखती है
उजाले में सहमी उस लड़की को
जो अपने बदन से उतरते
उस आखरी कपडे को
बचा रही है
क्योंकि उसे बचाना है
अंतिम लोकतंत्र
और बैचेन प्रतिक्षा
आदि सारी कविताएं
उसी समय
अपने होश खो देती है
जब देखती है
उजाले में सहमी उस लड़की को
जो अपने बदन से उतरते
उस आखरी कपडे को
बचा रही है
क्योंकि उसे बचाना है
अंतिम लोकतंत्र
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " खालूबार के परमवीर को समर्पित ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeletejhurjhuree aa gai jism me....
ReplyDeletejhurjhuree aa gai jism me....
ReplyDeleteखरी खरी ...........
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