सम्मानीय रवीश जी,
खबर है कि मुकुल द्विवेदी की मौत की आहट आप की कलम तक नहीं आप के दिल तक आई और आप ने पुलिस विभाग की आत्मा को जगाने का साहसिक प्रयास किया ।रवीश जी आप को खंडहर होता पुलिस विभाग तो दिखा और उसका भरभरा कर गिरना भी लेकिन क्या ये नहीं दिखा की महकमे को किसने खंडहर किया और उसे जब तक धक्का कौन मार कर गिराना चाहता है काश आप ये भी देख पाते आप ने पुलिस को आईना तो दिखाया लेकिन उस आईने के पार उसको मजबूर चेहरा नहीं दिखया । कहने को बहुत कुछ है रवीश जी आप सुन नहीं पायेंगे दुहाई देने लगेंगे और अपनी दो मिनिट में चलता कर देने वाली नौकरी का रोना शुरू कर देंगे जितना आप पुलिस वालों को अन्य के खिलाफ लड़ने के लिए बोल रहे है उतना अगर अन्य के खिलाफ आप सब पत्रकारों ने बोला होता तो पत्रकार यूं मारे न जाते । आप एक सीनियर पत्रकार है तो आप ये भी जानते होंगे की पुलिस इतनी असहाय क्यों है ? सब की खैरियत चाहने वाले आप बस इतना ध्यान रखिए किसी दिन जब किसी नेता या किसी बड़े उद्योगपति के कुकृत्यों को जब आप सब छिपाने का प्रयास कर रहे होंगे तब उन सब पत्रकारों की आत्मा आप से सवाल पूछेगी जिन्होंने सत्य की खातिर अपने प्राण त्याग दिए।
सो रवीश जी कहना बहुत आसान है वो भी कलम कलाकारों के लिए लेकिन समस्याओं के साथ जीना वो भी पुलिस विभाग की मुश्किल है आप ने कभी पुलिस वालों के चूल्हे में झांक कर देखा है एक बार देखिए जरुर । महीने के आखिरी दिनों में कई बार उससे धुंआ नहीं उठता । पुलिस लाईन में जाकर देखिये मूलभूत सुविधाओं के आभाव में 24 घंटे ड्यूटी करने वाले लोग और उनका परिवार कैसे रहता है कभी किसी पुलिस वाले से आप ने पूछा है उसने कितने त्यौहार अपने परिवार वालों के साथ मनाए है रवीश जी कई रातों को वो कई बार ड्यूटी के कारण नहीं उनके घर भी जवान बेटी बैठी इसलिए नहीं सो पाते दर्द बहुत है पर दिखाएं किसे।
पत्रकार तो हर आहट पहचान लेते है मधुरा के पार्क में कौन सा योग शिविर चल रहा था बस इसकी आहट आप लोग नहीं पहचाने ऐसा कैसे और क्यों हुआ?
आप पत्रकार समाज का वो स्तम्भ है जिन्होनें हमेशा समाज को जगाया है और उसे चेताया है।हर पुलिस वाला सांसद बनने की चहा नही रखता अगर कुछ रखता है तो सिर्फ बिना दबाव के अपने कार्य को अंजाम देना । आप की पत्रकार बिरादरी और आप से बस इतना ही कहना है अगर आप कुछ कर सकते है तो इतना कीजिए की पुलिस वालो की हमेशा आलोचना न करके कभी तो सत्य का साथ दीजिए पुलिस वाले हमेशा गलत नहीं होते । उनकी समस्याओं के लिए कभी तो आप लोग अवाज उठायें ।
आप का डाकिया गंगाजल लेकर आ गया होगा उससे पूछिए उसके विभाग में कितने सकारात्मक बदलाव हुए है बस उतने ही बदलाव पुलिस विभाग में करवा दीजिए आप की कलम कुछ तो सकारात्मक करे। सारे समाज की पीड़ा को शब्द देने वाले आप लोग पुलिस को नसीहत नहीं सहयोग दीजिए उनकी पीड़ा को स्वर दीजिए क्योंकि हर पुलिस वाला एक इंसान होता है मुकुल भी थे।
आप तक ये पत्र पहुंचने का मेरे पास कोई माध्यम नहीं इसलिए इसे मैं ने मेरे ब्लाग किरण की दुनिया पर पोस्ट कर दिया है।आशा है आप जिम्मेदार पत्रकार होने के नाते इसे पढेंगे और पुलिस वालों के लिए अवाज उठाएंगे न की आम शहरी की तरह उन्हें नसीहत देंगे।
खबर है कि मुकुल द्विवेदी की मौत की आहट आप की कलम तक नहीं आप के दिल तक आई और आप ने पुलिस विभाग की आत्मा को जगाने का साहसिक प्रयास किया ।रवीश जी आप को खंडहर होता पुलिस विभाग तो दिखा और उसका भरभरा कर गिरना भी लेकिन क्या ये नहीं दिखा की महकमे को किसने खंडहर किया और उसे जब तक धक्का कौन मार कर गिराना चाहता है काश आप ये भी देख पाते आप ने पुलिस को आईना तो दिखाया लेकिन उस आईने के पार उसको मजबूर चेहरा नहीं दिखया । कहने को बहुत कुछ है रवीश जी आप सुन नहीं पायेंगे दुहाई देने लगेंगे और अपनी दो मिनिट में चलता कर देने वाली नौकरी का रोना शुरू कर देंगे जितना आप पुलिस वालों को अन्य के खिलाफ लड़ने के लिए बोल रहे है उतना अगर अन्य के खिलाफ आप सब पत्रकारों ने बोला होता तो पत्रकार यूं मारे न जाते । आप एक सीनियर पत्रकार है तो आप ये भी जानते होंगे की पुलिस इतनी असहाय क्यों है ? सब की खैरियत चाहने वाले आप बस इतना ध्यान रखिए किसी दिन जब किसी नेता या किसी बड़े उद्योगपति के कुकृत्यों को जब आप सब छिपाने का प्रयास कर रहे होंगे तब उन सब पत्रकारों की आत्मा आप से सवाल पूछेगी जिन्होंने सत्य की खातिर अपने प्राण त्याग दिए।
सो रवीश जी कहना बहुत आसान है वो भी कलम कलाकारों के लिए लेकिन समस्याओं के साथ जीना वो भी पुलिस विभाग की मुश्किल है आप ने कभी पुलिस वालों के चूल्हे में झांक कर देखा है एक बार देखिए जरुर । महीने के आखिरी दिनों में कई बार उससे धुंआ नहीं उठता । पुलिस लाईन में जाकर देखिये मूलभूत सुविधाओं के आभाव में 24 घंटे ड्यूटी करने वाले लोग और उनका परिवार कैसे रहता है कभी किसी पुलिस वाले से आप ने पूछा है उसने कितने त्यौहार अपने परिवार वालों के साथ मनाए है रवीश जी कई रातों को वो कई बार ड्यूटी के कारण नहीं उनके घर भी जवान बेटी बैठी इसलिए नहीं सो पाते दर्द बहुत है पर दिखाएं किसे।
पत्रकार तो हर आहट पहचान लेते है मधुरा के पार्क में कौन सा योग शिविर चल रहा था बस इसकी आहट आप लोग नहीं पहचाने ऐसा कैसे और क्यों हुआ?
आप पत्रकार समाज का वो स्तम्भ है जिन्होनें हमेशा समाज को जगाया है और उसे चेताया है।हर पुलिस वाला सांसद बनने की चहा नही रखता अगर कुछ रखता है तो सिर्फ बिना दबाव के अपने कार्य को अंजाम देना । आप की पत्रकार बिरादरी और आप से बस इतना ही कहना है अगर आप कुछ कर सकते है तो इतना कीजिए की पुलिस वालो की हमेशा आलोचना न करके कभी तो सत्य का साथ दीजिए पुलिस वाले हमेशा गलत नहीं होते । उनकी समस्याओं के लिए कभी तो आप लोग अवाज उठायें ।
आप का डाकिया गंगाजल लेकर आ गया होगा उससे पूछिए उसके विभाग में कितने सकारात्मक बदलाव हुए है बस उतने ही बदलाव पुलिस विभाग में करवा दीजिए आप की कलम कुछ तो सकारात्मक करे। सारे समाज की पीड़ा को शब्द देने वाले आप लोग पुलिस को नसीहत नहीं सहयोग दीजिए उनकी पीड़ा को स्वर दीजिए क्योंकि हर पुलिस वाला एक इंसान होता है मुकुल भी थे।
आप तक ये पत्र पहुंचने का मेरे पास कोई माध्यम नहीं इसलिए इसे मैं ने मेरे ब्लाग किरण की दुनिया पर पोस्ट कर दिया है।आशा है आप जिम्मेदार पत्रकार होने के नाते इसे पढेंगे और पुलिस वालों के लिए अवाज उठाएंगे न की आम शहरी की तरह उन्हें नसीहत देंगे।
सत्या लिखा किरण जी, सालों से चल रहे सत्याग्रह क्या था उस तक रविश कुमार क्यों पहले नहीं पहुचे , शायद कलम बंधी थी उनकी ......?
ReplyDeleteधन्यवाद महेश कुशवंश जी fb पर मैं ने इनके वारे में बहुत कुछ लिखा है पढ़े।
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