अचानक हर गली में
सहिष्णुता और सहिष्णुता गुथमगुथा हो
असहिष्णुता में बदल रही है।
हटा रही है तीनो बंदरो के
आँखों कानो और मुह से हाथ ।
अब तीनो बन्दर दे रहे है विचार,
उनके विचारो से त्रस्त हो
भाग रहे है गाँधी
बुद्ध समाधिस्थ हो लोप हो गए है ।
अनोखे असहनशील वक्तव्य पर
नरेन्द्र परेशान हो
समेट रहे है सारे कुटुंब को
ले जाने ऐसी जगह
जहां साझा चुल्हा की मिट्टी मिलती हो।
सहिष्णुता और सहिष्णुता गुथमगुथा हो
असहिष्णुता में बदल रही है।
हटा रही है तीनो बंदरो के
आँखों कानो और मुह से हाथ ।
अब तीनो बन्दर दे रहे है विचार,
उनके विचारो से त्रस्त हो
भाग रहे है गाँधी
बुद्ध समाधिस्थ हो लोप हो गए है ।
अनोखे असहनशील वक्तव्य पर
नरेन्द्र परेशान हो
समेट रहे है सारे कुटुंब को
ले जाने ऐसी जगह
जहां साझा चुल्हा की मिट्टी मिलती हो।
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