Saturday, May 9, 2015

अंतराल



कोई गतिशील बिंदु 
किसी बिंदु से मिले 
उस अंतराल के बीच 
उसे बांधने के भ्रम में खड़ी मैं 
बट गई हूँ 
पहरों, घंटो, मिनिट और सेकेण्ड में 
देख रही हूँ एक मीठी दोपहर को 
कोई शायद गुजरा है बिना किसी आहट के 
वो जो अविरल, अनत है 
सन्निकट था मेरे 
अब किसी दूरदराज के खेतों में 
विहंसती सरसों की पीली बालियों के 
बीच झूम रहा है 
और मैं 
एक एक बोझिल पालो को समेट रही हूँ 
इस आस में 
कि इन पलों पर फिर छिटकेगी मुस्कान उसकी 
जो कर देगी मुझे लींन 
उस अनूठी लय में 
जिसमे कालचक्र अनवरत घूमता है

1 comment:

  1. बहुत सुंदर पंक्तियाँ...

    ReplyDelete