महज़ब की चीखें हो
या धर्मों की चिल्लाहटें
उजडती भावना के
टूटते रिश्तें पुराने
भ्रमित विश्वास के कारवा में
उम्मीदें उखडती सी दिखती है
दमन होती लज्जा मेरी
यहां गलियों और चौबारों में
इस दूभर समय में मैं
जीती आई हूं
हे शिव मैं भी तेरी तरह
हर विष
पीती आई हूं ।
या धर्मों की चिल्लाहटें
उजडती भावना के
टूटते रिश्तें पुराने
भ्रमित विश्वास के कारवा में
उम्मीदें उखडती सी दिखती है
दमन होती लज्जा मेरी
यहां गलियों और चौबारों में
इस दूभर समय में मैं
जीती आई हूं
हे शिव मैं भी तेरी तरह
हर विष
पीती आई हूं ।
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