सुनो ओ
मौत के
नुमाइंदो
तुम डल झील
के किनारे हो
या हो चिनारो के दरमियाँ,
ओढ़े है जो बर्फ की चादर
उन पहाड़ो के पास
या शिकारे पर
बांध रहे हो मनसूबे
शिकार के
बस एक बार
चले जाना
नूर की मज़ार पर
शायद नूर के करम से
आने वाली नस्ल
उग्रवादी,आतंकवादी
न कहलाये,
बस कहलाये वो
आदमी।
मौत के
नुमाइंदो
तुम डल झील
के किनारे हो
या हो चिनारो के दरमियाँ,
ओढ़े है जो बर्फ की चादर
उन पहाड़ो के पास
या शिकारे पर
बांध रहे हो मनसूबे
शिकार के
बस एक बार
चले जाना
नूर की मज़ार पर
शायद नूर के करम से
आने वाली नस्ल
उग्रवादी,आतंकवादी
न कहलाये,
बस कहलाये वो
आदमी।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " रामायण की दो कथाएं.. “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसुन्दर रचना ।
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