ज़िन्दगी की यात्रा में लगे कांटो को अपने ही हाथों निकालते हुए आंसुओंके सैलाब को मन में गठरी बना कर जो हमने रख छोड़ा था ,एक दिन न जाने कैसे उस गठरी की गाँठ खुली और बिखर गए आंसू , दर्द कागज पर हम डरे लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे पर दर्द था कि अब गठरी बन दिल में समाना ही नहीं चाहता था| हमने भी जी कड़ा किया और बिखेर दिए अपने दुःख -दर्द , गगन से चमन तक।
जहां अपने को लिख कर हमने सौन्दर्य की उपमाओं को पार किया वही दूसरी ओर हमारी लेखनी ने जीवन के सख्त सौन्दर्य को रचना शुरू किया।
औरतों के लिए लिखने का सफर आसान नहीं रहा | चूल्हे पर रोटी बनाते हुए से लेकर
काम लेकिन फिर भी हमने लिखा अपने सुख - दुःख को पूरी ईमानदारी से । खाना बनाते हुए घर के काम करते हुए दफ्तर की जिम्मेदारी उठते हुए लिखा।
हमारा लिखना सिर्फ हमारा ही नहीं था | हमने सारी दुनिया के लिए लिखा और सारी दुनिया अपने इर्द -गिर्द समेट ली । हमारे लिखे को खतरा समझ समाज ने हमें दंड भी दिया पर हमने अपनी कलम नहीं छोड़ी हमने नया विधान लिखा
कविता के मापदंड तोड़े, बिना किसी लालच और किसी वाहवाही के लिखा । हमें प्रशंसा नहीं चाहिए प्रशंसाओं का भ्रामक धनुष तो सीता स्वयंवर में तोड़ दिया था । आज उपन्यास , कविता , कहानी , फेसबुक व ब्लॉग पर
हम अभिव्यक्ति के हथियार थामे लगातार खुद को व्यक्त कर रहे हैं । हम सबका लिखना हमें कितना सुकून देता है ।मत परिवर्तित करो किसी के कहने पर
अपने भावों को, अपने विचारो को अपनी भाषा को क्योकि हमारे लेखन में हमारी खुशबू है ।आज नारी के कारण यथार्थ लेखन सुरक्षित है । मानते है इस तरह के लेखन में भरपूर चुनौतियों पर हमने इससे भी बड़ी -बड़ी चुनौतियों का
सामना किया है और जीत हमारी ही हुई है क्योंकि हमें सच को सच और झूठ को झूठ लिखना आता है ।
जहां अपने को लिख कर हमने सौन्दर्य की उपमाओं को पार किया वही दूसरी ओर हमारी लेखनी ने जीवन के सख्त सौन्दर्य को रचना शुरू किया।
औरतों के लिए लिखने का सफर आसान नहीं रहा | चूल्हे पर रोटी बनाते हुए से लेकर
काम लेकिन फिर भी हमने लिखा अपने सुख - दुःख को पूरी ईमानदारी से । खाना बनाते हुए घर के काम करते हुए दफ्तर की जिम्मेदारी उठते हुए लिखा।
हमारा लिखना सिर्फ हमारा ही नहीं था | हमने सारी दुनिया के लिए लिखा और सारी दुनिया अपने इर्द -गिर्द समेट ली । हमारे लिखे को खतरा समझ समाज ने हमें दंड भी दिया पर हमने अपनी कलम नहीं छोड़ी हमने नया विधान लिखा
कविता के मापदंड तोड़े, बिना किसी लालच और किसी वाहवाही के लिखा । हमें प्रशंसा नहीं चाहिए प्रशंसाओं का भ्रामक धनुष तो सीता स्वयंवर में तोड़ दिया था । आज उपन्यास , कविता , कहानी , फेसबुक व ब्लॉग पर
हम अभिव्यक्ति के हथियार थामे लगातार खुद को व्यक्त कर रहे हैं । हम सबका लिखना हमें कितना सुकून देता है ।मत परिवर्तित करो किसी के कहने पर
अपने भावों को, अपने विचारो को अपनी भाषा को क्योकि हमारे लेखन में हमारी खुशबू है ।आज नारी के कारण यथार्थ लेखन सुरक्षित है । मानते है इस तरह के लेखन में भरपूर चुनौतियों पर हमने इससे भी बड़ी -बड़ी चुनौतियों का
सामना किया है और जीत हमारी ही हुई है क्योंकि हमें सच को सच और झूठ को झूठ लिखना आता है ।
सच लिखा आपने , स्त्री लेखन की सच्ची कहानी वर्णित की है आपने
ReplyDeleteधन्यवाद महेश कुशवंश जी
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 31 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteमत परिवर्तित करो किसी के कहने पर
ReplyDeleteअपने भावों को, अपने विचारो को अपनी भाषा को क्योकि हमारे लेखन में हमारी खुशबू है ।
बिलकुल सही कहा आपने .. आप इसीतरह अपनी मंजिल की आर बढ़ती रहे यही हमारी शुभकामनाये है :) शुभ दोपहरी jsk