हे भवमोचनी
तुम अंत के पहले अंतिम
अनादि अनंत हो
इसलिए हे अहंकारा
हमारा अहंकार हरो
हे बुद्धि:
जाग्रत कर हमारी बुद्धि को
चिति: बन
हमारी हर सांस में बस जाओ
हे भाविनी
भव्या करो ऐसे मानव का
जो अनेकवर्णा में भी एक हो
माँ दुर्गा
ताकि सारे संसार में
हो एकता की मधुर ध्वनि
हे अनन्ता
तभी होंगे हम
मुक्त इस कलुषित लदे मन से
ओ कालरात्रि
अंत करो इस काली रात का
बन कर मैत्रेय
हमें रास्ता दिखाओ
तुम अंत के पहले अंतिम
अनादि अनंत हो
इसलिए हे अहंकारा
हमारा अहंकार हरो
हे बुद्धि:
जाग्रत कर हमारी बुद्धि को
चिति: बन
हमारी हर सांस में बस जाओ
हे भाविनी
भव्या करो ऐसे मानव का
जो अनेकवर्णा में भी एक हो
माँ दुर्गा
ताकि सारे संसार में
हो एकता की मधुर ध्वनि
हे अनन्ता
तभी होंगे हम
मुक्त इस कलुषित लदे मन से
ओ कालरात्रि
अंत करो इस काली रात का
बन कर मैत्रेय
हमें रास्ता दिखाओ
सटीक प्रार्थना , मा से , अच्छी कविता
ReplyDeleteनवरात्रि व नवसंवत्सर के सुसंयोग पर बहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteआपको भी नवसंवत्सर और नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं
sundar prarthana...
ReplyDeletewelcome to my new post-->> http://raaz-o-niyaaz.blogspot.com/2016/04/blog-post.html