Friday, April 8, 2016

पुकार माँ की

हे भवमोचनी
तुम अंत के पहले अंतिम
अनादि अनंत हो
इसलिए हे अहंकारा
हमारा अहंकार हरो
हे बुद्धि:
जाग्रत कर हमारी बुद्धि को
चिति: बन
हमारी हर सांस में बस जाओ
हे भाविनी
भव्या करो ऐसे मानव का
जो अनेकवर्णा में भी एक हो
माँ दुर्गा
ताकि सारे संसार में
हो एकता की मधुर ध्वनि
हे अनन्ता
तभी होंगे हम
मुक्त इस कलुषित लदे मन से
ओ कालरात्रि
अंत करो इस काली रात का
बन कर मैत्रेय
हमें रास्ता दिखाओ

3 comments:

  1. सटीक प्रार्थना , मा से , अच्छी कविता

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  2. नवरात्रि व नवसंवत्‍सर के सुसंयोग पर बहुत सुन्दर रचना..

    आपको भी नवसंवत्‍सर और नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं

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  3. sundar prarthana...

    welcome to my new post-->> http://raaz-o-niyaaz.blogspot.com/2016/04/blog-post.html

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