Wednesday, February 25, 2015

मेरी तुम्हारी हथेलियों की छाप

तुमने जो फूल मेरे बालो में टांका था
वो कल रात न जाने कैसे
उस डायरी से गिर गया
जिसपे तुमने,
मेरी तुम्हारी हथेलियों की छाप ली थी

मेरी हथेली की छाप तो तुम ले गए 
लेकिन अपनी महक उस हरसिंगार पर  छोड़ गए 
जहाँ मैंने बदली से  निकलते  चाँद  देख कर,
तुम्हारे पहलू में अपना चेहरा छिपा लिया था
और  तुमने हौले से मेरा माथा चूम लिया था

उस एहसास को  मैं  अपने साथ ले आई 
लेकिन दिल उसी हरसिंगार पर  छोड़ आई 
जो  आज भी वहीं  टंगा है। 

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