फेसबुकी औरते!
उम्र की ढलान को पीछे छोड़ बन जाती हैं सोलह साला
रहती है परियों की दुनिया में जहाँ आते हैं उन्हें
खुली आँखों से देखे जाने वाले सपने
उम्र की ढलान को पीछे छोड़ बन जाती हैं सोलह साला
रहती है परियों की दुनिया में जहाँ आते हैं उन्हें
खुली आँखों से देखे जाने वाले सपने
जिसमे होती हैं वो शहजादियों से भी कमसिन
लगाती है सजा के अपने बीते लम्हें
और कॉलेज आइडेंटिटी कार्ड के पिक
फेसबुक प्रोफाइल पर
आने लगते है लाइक और कमेंट
खो जाती हैं फेसबुकी परी- कथा में
इस तरह खुद को जोड़ती हैं आज के समय में
खालीपन की जमी हुयी काई
खुरचती हैं, बनाती हैं हवा महल
झूलती रहती हैं कल्पनाओं के हिंडोले में
फेसबुकी औरतें जैसे सावन में लौटी हों बाबुल के घर
हो जाती हैं अल्हड़ और शोख
खोखले राजाओं और राजकुमारों से घिरी
जो उसके एक हाय पर लाइन लगा देते है
हजारों पसंद के चटके
वाह, बहुत खूब, उम्दा, दिल को छू गयी!
वह मुस्कराती इतराती खेलती है,पर अचानक
एक दिन ऊब कर बदल देती हैं पात्र
और फिर निकल पढ़ती हैं नई खोज में फेसबुकी औरतें
अच्छा??ऐसा भी होता है ??
ReplyDelete😃😃😃😃👌👌👌
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